Saturday 17 September 2016

अफ्रेड टू बी रांग (गलत साबित हो जाने का डर) part 1

 पहले तो धन्यवाद आप सभी का। मुझे इतने कम समय में स्वीकारने के लिए। अफ्रेड टू बी रांग (गलत साबित हो जाने का डर) को मैंने बहुत पहले लिख लिया था। आप इस कहानी को अपनी यात्रा के रूप में पढ़ें। अगर पसंद आए तो इसे शेयर जरूर करें। यह करीबियों के लिए एक अच्छा उपहार है। 

अफ्रेड टू बी रांग (गलत साबित हो जाने का डर)


 1.आरंभ

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‘‘सारी जिंदगी हमारा सबसे बड़ा डर होता कि हमसे कोई गलती न हो जाए। हमारी तरह गलतियों की भी अपनी नियति होती है।  गलत साबित हो जाने के डर को जीत लेना जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य होना चाहिए।
मृत्यु के बाद की स्थिति को नहीं जाना जा सकता।  हम गलती न करने के डर को जीत जाएं तो यह जिंदा रहते मोक्ष के मिलने जैसा है। ’’
- ‘‘ममंत्र, क्या जानबूझ कर की गई गलतियां भी इस श्रेणी में आती हैं?’’
- ‘‘जानबूझकर  मूर्खता होती है। गलती का अपना वजूद होता है। वह होने के लिए होती है। हमें गलत साबित होने के डर को मिटाना चाहिए।’’
- ‘‘मैं क्या करुं ममंत्र, अपना डर जीतने के लिए।’’
-‘‘ विचारों की तलाश में निकल जाओ। ध्यान रखना इसका कोई समय नहीं होता। जब जी में आए निकल पडऩा। ’’
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दोस्तों की बहस गरम हो गई थी। बात नकलीपन से छिड़ी थी, जो हाथापाई में बदलती दिख रही थी। हमउम्र दोस्तों के उस समूह में दो लड़कियां भी थीं। एक थोड़ी ज्यादा हसीन थी। नाम था वारिका। वारिका का कद सामान्य से अधिक था। आंखें पीपल के पत्तों की तरह एक लचकदार कोण बनाती थीं। उसकी खूबसूरती में गहरे भूरे लंबे बाल और छरहरे-सांवले बदन का आकर्षण शामिल था। वारिका ने झगड़े पर उतारू सुघड़ शरीरवाले युवक की बांह जोर से पकड़ी और उसे झिंझोड़ा- ‘‘तुम विचारों की लड़ाई इसी तरह लड़ोगे क्या?’’
युवक का नाम जिंग था। उसने वारिका की प्रतिक्रिया देखकर कदम पीछे हटा लिए। दरअसल बहस को मुठभेड़ में बदलने की कोशिश जिंग ही कर रहा था।
वारिका ने देखा कि जिंग के पीछे हटने से वत्र्यसेन और गौरव भी शांत होने की मुद्रा में आने लगे। वे जिंग के उकसावे में आ गए थे, उनके चेहरे पर इस कृत्य का पश्चाताप दिख रहा था।
वारिका को आयन नहीं दिखाई दिया। आयन उनसे दूर एक जमीन में फंसी हुई चट्टान पर बैठा पहाड़ी से नीचे देख रहा था। उसे वहां के तनाव में दिलचस्पी नहीं थी। वह हमेशा की तरह शांत बैठा था, अपनी सोच में गुम।
वारिका ने हंसते हुए माहौल को हल्का किया- ‘‘अच्छा ये बताओ, बहस किस बात की थी? कहीं तुम सब फिर विचारों की तलाश करने की योजना तो नहीं बना रहे।’’
दुबले-पतले और झड़ते बालों की वजह से परेशान वत्र्यसेन ने कहा- ‘‘हां, विचार खोज यात्रा शुरू हो, इससे पहले ही ये जिंग हमारा मजाक उड़ाने लगता है। इसे लगता है आध्यात्मिक यात्राएं पाखंड हैं। यह गलत तरीके से अपने तर्क प्रस्तुत करता है। इसकी कोशिश लड़ाई की होती है ताकि हम यात्रा का मकसद भूल जाएं। ’’
गौरव ने हामी भरी-‘‘ वारिका तुम जानती हो जिंग को। उसे हमें भडक़ाने में मजा आता है। शायद ये सब वो अपनी संतुष्टि के लिए करता है। बदन दिखाना उसकी इकलौती काबिलियत है।’’
उसने यह कहते हुए उसने जिंग की ओर उठती भंवों से इशारा किया। जिंग उस इलाके के जमींदार का बेटा था। बात सच थी कि उसे अपने बलिष्ठ शरीर को दिखाने में रोमांच महसूस होता था। जमींदारों का खून होने की वजह से वह गर्मी जल्दी खाता था और अपनी बात मनवाने के लिए हिंसा पर उतर आता था। उसके लिए सारी चीजें आसान थीं, इसलिए उसने कभी बदलाव की आवश्यकता महसूस नहीं की।
 जिंग ने गलती मानते हुए पहल की- ‘‘देखो, मैं तुम सभी का दोस्त हूं। हम सभी यहां खुश हैं। क्यों हम उस बहस में उलझ रहे हैं, जिसका नतीजा नहीं मिलनेवाला? विचारों की खोज कोरी कल्पना है। हमें वहीं खुश रहना चाहिए जहां हमने जन्म लिया है। ईश्वर हमारे लिए रास्ते बनाता है। हम क्यों इतिहास में दर्ज होने के लिए विचार खोज रहे हैं! ’’
गौरव ने उत्तर दिया-‘‘ विचार हमारे होने का कारण बताएंगे जिंग। तुम्हें दौलत और सुख के साथ सोच भी मिली होती, तो समझ जाते।’’
जिंग चिढ़ गया। वारिका ने एक बार फिर उसकी भुजाओं को जोर से पकड़ा। जिंग ने चेहरा नीचे झुका लिया। वारिका ने आयन को आवाज दी- ‘‘तुम आ रहे हो? यहां लड़ाई चल रही है और तुम तलहटी के नजारे देखने में खोए हो! इतना खुद में रहना ठीक नहीं। ’’

आयन ने उसकी ओर देखा। वारिका उससे प्रेम करती थी। आयन सामान्य कद-काठी होने के बावजूद स्त्रियों को पसंद आनेवाली छवि रखता था। उसमें पौरुष सौंदर्य भरा हुआ था। उसके हल्के घुंघरालू बाल कंधों तक गिर रहे थे। उसका धूसर कुर्ता गर्दन के नीचे से पूरी छाती तक खुला हुआ था। साथ ही उसने पहाड़ों में पहना जानेवाला आरामदायक पजामा पहन रखा था। उसका वेश पहाड़ी पोशाक वाले युवा संत सा था। 
आयन का ध्यान वारिका की ओर अधिक था, चट्टान के उस हिस्से पर कम, जहां वह उठने के लिए हथेली रखने जा रहा था। आयन की हथेली फिसल गई। फिसलने से लगा झटका इतना तेज था कि तकरीबन 500 मीटर की ऊंचाई से आयन का शरीर नीचे खाई में जा गिरा।  एक सेकंड नहीं लिया हादसे ने होने में।
वहां खड़े सारे लोग स्तब्ध थे। वारिका की आंखें फटने को आ रहीं थीं। जिंग ने पहले हरकत की। वो पहाड़ी से नीचे को जाती पगडंडी पर दौडऩे लगा।
वारिका के आंसू पहाड़ के झरने से बिछड़ी धाराओं की तरह बह रहे थे।
इसी बीच वत्र्यसेन ने ध्यान दिया कि उनके बीच त्रिशा भी नहीं थी। त्रिशा उनके मित्रमंडल की छठीं और सबसे कम उम्र सदस्य। परियों सा भोला चेहरा रखनेवाली दूध के रंग की त्रिशा इस अनायास कालचक्र में गायब थी।
एकाएक दो बड़ी घटनाएं हुईं थीं। त्रिशा के मामले को गौरव मामूली मान रहा था। वो इसे घटना के रूप में नहीं देख रहा था। उसे चिंता थी कि आयन का क्या हुआ होगा?
वत्र्यसेन से वो नीचे खाई में जाने की उम्मीद लगा रहा था। वत्र्यसेन ने ऐसी मंशा नहीं दिखाई। गौरव तो उसी समय जिंग के पीछे भाग जाना चाहता था। उसे वारिका की चिंता ने रोक लिया था। वारिका को संभालना वत्र्यसेन के बस का नहीं था। वत्र्यसेन शारीरिक रूप से जितना दुर्बल था उससे कहीं अधिक मानसिक तौर पर। वारिका बदहवास थी। गौरव को एक बार भी त्रिशा के नहीं होने से कोई खटका नहीं लगा। 
वत्र्यसेन को शून्य में देखता पाकर गौरव ने सोचा, तो क्या आयन मर गया होगा? इतनी ऊंचाई से गिरकर बचना चमत्कार ही होगा। उसने खुद को आयन की लाश देखने के लिए तैयार कर लिया। आयन उसका सबसे अच्छा दोस्त था।
तभी नीचे से जिंग की चीखती आवाज आई।
-‘‘नीचे आओ सब।’’
गौरव से पहले वत्र्यसेन ने वारिका को अपना हाथ दिया। जिंग की चीख से वारिका में हलचल हुई थी। तीनों तेजी से खाई की पगडंडी में चलने लगे।
नीचे आयन उन्हें सकुशल मिला। वारिका उसे देखकर चिंहुक उठी। उसकी तीखी नाराजगी का सामना करने से पहले ही आयन बोलने लगा- ‘‘हम अपनी विचार खोज यात्रा शुरू करने जा रहे हैं, आज, अभी, इसी समय से। कोई सवाल नहीं करेगा। नहीं तो ऊपर हुई बहस की तरह तलवारें खिंच जाएंगी। हम निकल रहे हैं।’’
वत्र्यसेन ने टोका- ‘‘लेकिन हमारे सामान, यात्रा के खर्च के लिए पर्याप्त रुपए, हमारे घरवालों की अनुमति और.. .
आयन ने मुस्कुराकर कहा- ‘‘बस.. बस.. रुक जाओ। इन्हीं कारणों से हमारी यात्रा शुरू नहीं हो पा रही। हम इन कारणों का अक्षरश: हल ढूंढ़ते रहे तो ये जिंदगी बीत जाएगी। विचार खोज यात्रा का पहला उसूल है स्वयं को भूलकर चल पडऩा। हम वैसे भी देर कर चुके हैं।’’
इस बार गौरव बोला-‘‘और त्रिशा..!!’’
आयन ने उसकी आंखों में आंखें डालकर कहा- ‘‘हम अपनी विचार खोज यात्रा अभी से शुरू करने जा रहे हैं। जो उपलब्ध नहीं हैं या जो इसमें शामिल नहीं होना चाहते, उनके लिए हम कुछ नहीं कर सकते.. !’’
आयन का इशारा त्रिशा और जिंग ही नहीं, वारिका की ओर भी था। मूलत: विचार खोज यात्रा उसकी, वत्र्यसेन और गौरव की योजना थी। वारिका, त्रिशा और जिंग उनके मित्रमंडल में होने की वजह से इस यात्रा की चर्चा का हिस्सा मात्र थे।
गौरव बोलना चाह रहा था, फिर चुप हो गया। असल में वो आयन से पूछना चाह रहा था कि इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं हुआ, कैसे?
आयन आगे बढऩे लगा। वत्र्यसेन ने एक आदर्श अनुशरणकर्ता की तरह उसके पीछे कदम बढ़ाए। गौरव उनकी ओर बढ़ा और पाया कि वारिका उससे पहले यात्रा पथ पर चलने लगी है। पीछे एक जोड़ी पांव ही अपनी जगह पर जस के तस बने हुए थे, जिंग के..
जमींदार का लडक़ा अपने इलाके का आसान जीवन छोडक़र नहीं जा सकता था। सुरक्षित जीवन ईश्वर हर किसी को नहीं देता, उसका मानना था। उसे यह सब अतिनाटकीय और अव्यवहारिक लगता था। उसने यह सीखा  था कि मनुष्य को वह स्थिति हासिल करनी चाहिए जहां पर गलतियों से नुकसान न हो।
पीछे खड़ा जिंग भी यह जानना चाहता था कि आयन बच कैसे गया? आयन ने उसे भी इस चमत्कार के बारे में नहीं बताया था! उसने खाई में पहुंचने के बाद आयन को झरने के कुंड से निकलते देखा था। वह घबराहट में आयन से सवाल कर नहीं पाया था।

ज़मीन से अचानक फूट पडऩेवाले अंकुर की तरह चार सदस्यीय दल की विचार खोज यात्रा शुरू हो चुकी थी।

वारिका के पीछे चल रहा गौरव आखिरकार त्रिशा के बारे में सोच रहा था क्योंकि उसे मालूम था विचार खोज यात्रा में जाने के बाद लौटना असंभव है..त्रिशा पीछे छूट गई...
‘विचार खोज यात्रा तो अनंत है.. गलत साबित होने के भय से मोक्ष दिलानेवाला सफर ’
.. क्रमश:
क्या है विचार खोज यात्रा- पढ़ें अगले अंक में.

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