Friday 7 October 2016

पेटभर हंस लेने के बाद अपनी जीभ निकालकर शर्माते हुए कहें ‘माफ करना’


राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का खेल कैसे चलता है? और कैसे मुख्य मुद्दा घुमा दिया जाता है? देश में इस समय चल रही बयानबाजी से समझा जा सकता है।

राहुल गांधी ने कल कहा ‘शहीदों के खून की दलाली कर रहे हैं मोदी। ’ आज दोपहर अमित शाह ने जवाब दिया ‘यह आर्मी का अपमान है, देश की सवा अरब जनता का अपमान है।’ शाम को अमित शाह को कपिल सिब्बल ने उत्तर दिया ‘आतंकी मसूद अजहर को बीजेपी ने रिहा किया।’  मायावती का बयान है ‘ सेना की जय हो, नेताओं की नहीं।’ लालू प्रसाद यादव ने भी ऐसा ही कुछ कहा।

मुद्दा कल कुछ और था। आज कुछ और हो गया है।

 राहुल गांधी के भाषण  में कहीं सेना के खिलाफ बात नहीं है। उनका कहना था ‘ हमारे जवानों ने जम्मू और कश्मीर में अपना खून दिया है। उनके खून के पीछे मोदी छिपे हैं। मोदी उनके खून की दलाली कर रहे हैं।’
उनके भाषण का एक महत्वपूर्ण वाक्य सामने ही नहीं आ पाया, जो था ‘सेना ने अपना काम किया, आप अपना करो। ’

इस पर अमित शाह ने राहुल गांधी को चारों खाने चित्त करने का मन बनाया और वो कहा जिसका राहुल के बयान से लेना-देना नहीं है। शाह का पलटवार राहुल के आरोप का उत्तर नहीं है। उनका कहना है ‘दलाली शब्द सेना का मनोबल तोडऩेवाला है। ’
जहां तक मेरे और आपके जैसे आम लोगों की समझ है, राहुल के कहने का मतलब है कि मोदी सेना की सर्जिकल स्ट्राइक का ज्याती फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।

यह तो मोदी का अपमान है। सेना या देश का कहां?
अमित शाह ने राहुल के बयान का बिल्कुल मायने ही बदल दिया।

अमित शाह की प्रेसवार्ता के बाद कपिल सिब्बल आए। उन्होंने पब्लिक का जनरल नॉलेज बढ़ाना शुरू कर दिया। वे बताने लगे कि ‘ भाजपानीत सरकार  ने मसूद अजहर को रिहा किया था।’ वह यह नहीं बताते कि यह विमान में सवार यात्रियों की सलामती के लिए किया गया था। उनके कहने से लग रहा है, भाजपा के नेता जेल के अंदर गए और मसूद अजहर की हथकड़ियां खोलकर बोले ' जा दढ़ियल ' ।

 हमारे नेताओं का स्तर क्या है? वे बाल की खाल निकालकर उस पर बाल लगाने की कोशिश करते हैं। राहुल ने उत्तरप्रदेश में किसान रैली के समापन पर (जहां सर्जिकल स्ट्राइक पर बोलने की जरूरत नहीं थी) सेना और मोदी की बात कही। अमित शाह ने राहुल की बात को तोड़-मरोड़ दिया। अंत में कपिल सिब्बल मामले को दिल्ली से कंधार ले गए।

इधर सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगकर फंसे अरविंद केजरीवाल ने इस बार खुद का वीडियो बनाने के बजाय एएनआई (न्यूज एजेंसी) को बुलाया और कहा ‘ राहुल ने गलत शब्दों का उपयोग किया। ’
बताओ भाषा की मर्यादा कौन बता रहा है।


असल में सभी पार्टियों के नेताओं की नजर उत्तरप्रदेश के चुनाव पर है। वे सर्जिकल स्ट्राइक की घटना को सियासी फायदे-नुकसान के रूप में देख रहे हैं। तय है कि भाजपा इसका फायदा उठाने में पीछे नहीं रहेगी। भाजपा के विरोधी सारे दलों की यही चिंता है। इसलिए वे भी सेना की तारीफ करते हुए मोदी को निशाना बना रहे हैं।

लगता है राहुल को यकीन हो गया है कि सर्जिकल स्ट्राइक से भाजपा को फायदा मिलनेवाला है। हो सकता है उन्होंने भाजपा के वो पोस्टर देखे हों, जिनमें प्रभु राम की तस्वीर में मोदी का चेहरा लगा है। सामने रावण के रूप में नवाज शरीफ हैं।

और उन्होंने चिढक़र दलालीवाला बयान दे दिया। वे अंग्रेजीदां हैं। मेरे लिखे को अभी अंडरलाइन कर लीजिए, उन्हें मालूम ही नहीं होगा कि दलाली शब्द का वास्तविक अर्थ क्या होता है? अमित शाह को इसी शब्द पर अधिक आपत्ति थी। आरोप लगाते हुए उन्होंने भी यही कहा ' बोफोर्स दलाली, कोयला दलाली, टूजी दलाली किसने की?'

हमारे प्रतिनिधि नेताओं को देश, सेना और जनता से पहले पॉलिटिकल एज की चिंता है। इसलिए अगर अगली बार आप सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीतिक बयान सुनें, तो अनसुना कर दें। इससे सिर्फ दिमाग ही खराब होगा। नेताओं पर सर्जिकल स्ट्राइक करने का मन बन जाएगा।

इसलिए प्लीज.. .प्लीज .. .प्लीज .. . सर्जिकल स्ट्राइक पर बोलता कोई नेता सामने पड़ जाए तो उसे देखकर हंसने लग जाइए। धीरे-धीरे मुसकाते हुए, एकदम से ठहाका मारने लगिए।
पेटभर हंस  लेने के बाद अपनी जीभ निकालकर शर्माते हुए कहें ‘माफ करना’।
इससे बढिय़ा सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हो सकती।

Thursday 6 October 2016

एक नेता शांत है, अपने अंदाज में चुप है...



भारत की सर्जिकल स्ट्राइक पर आज शरद पवार बोले हैं। उन्होंने कहा ‘मेरे रक्षामंत्री होते हुए भी चार बार सर्जिकल स्ट्राइक की गई, हमने प्रचार नहीं किया। ’

आजकल भारत-पाकिस्तान मुद्दा नहीं हैं। हम सर्जिकल स्ट्राइक के होने, न होने पर भिड़े हुए हैं। बार्डर पार की नीति भी देशी राजनीति में फंस गई है। भाजपा के नेताओं और ‘लोकल नेताओं’ को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि अब कुछ ज्यादा ही हो रहा है।
देश की भावना का सरकार ने सम्मान किया। बहुत ही अच्छा किया। अब भावना से खिलवाड़ न हो।

इस मसले का मैं और आप व्यापक विश्लेषण करें। सब समझ आ जाएगा। भारत और पाकिस्तान दोनों कहते हैं, हम युद्ध नहीं चाहते। दूसरी तरफ दोनों देश के हुक्मरान अपनी जनता को बता रहे हैं कि हम तैयार हैं। हम डरनेवाले नहीं हैं। हम करारा जवाब दे रहे हैं।
मीडिया आग में घी डालने का काम कर रहा है। इलेक्ट्रानिक मीडिया ने इतने रिपोर्टर लगा रखे हैं कि लगता है युद्ध कवरेज चल रहा है ।
इससे फायदा दोनों देशों की सरकारों को हुआ है। उन्हें अब केवल आक्रामकता दिखानी है। देश में चल रही परेशानियों का जवाब नहीं देना।
दोनों राष्ट्रों की गरीबी-बेरोजगारी खत्म हो गई है। भारत और पाकिस्तान की सारी अंदरुनी समस्याएं जड़समेत उखड़ गई हैं। भारत-पाकिस्तान का हर चैनल खुश है। न्यूज एंकर मुंह से रॉकेट लांचर दाग रहे हैं।
विश्लेषकों की फौज चैनलों के आफिसों में डटी हुई है। 


पाकिस्तान के नेता एक से एक हैं, हमारे भी कम नहीं हैं। अरविंद केजरीवाल को ही लीजिए। बंदा दिल्ली का मुख्यमंत्री है। अपने राज्य में डेंगू-मलेरिया उनसे संभल नहीं रहा। वे भारत-पाकिस्तान पर वीडियो जारी कर "अपारंपरिक"  राजनीति का प्रदर्शन कर रहे हैं। केंद्र सरकार उन्हें उपराज्यपाल नजीब जंग की एलओसी तक ही सीमित रखती है इस पर अरविंद केजरीवाल का कान्फिडेंस देखो। आम आदमी पार्टी के विधायकों के वीडियो पूरे देश में सनी लियोन से ज्यादा हिट हैं। उस पर भी बंदा दिल्ली में बैठ कर। मुख्यमंत्री के कामकाज का सारा झंझट मनीष सिसोदिया को सौंप कर। उस सरकार को सबूत पेश करने की सलाह दे रहा है जो उसकी बैंड बजाती रहती है।
पाकिस्तानी मीडिया ने केजरीवाल का वीडियो देखा और भारत के इस आम आदमी को पाकिस्तान में हीरो बना दिया। आगबबूला रविशंकर प्रसाद ने केजरीवाल को प्रसाद खिलाया। उधर राजनाथ ने लेह से शब्दबाण चलाए। रवि (रविशंकर प्रसाद)  और राजू (राजनाथ सिंह) को केजरीवाल की सलाह पर प्रतिक्रिया नहीं देनी थी। उनको कहना था " हमने केजरीवाल का वीडियो नहीं देखा। हम गंदे वीडियो नहीं देखते। पिछली बार उसके एक मंत्री का वीडियो देख लिया था। प्रायश्चित करने के लिए उपवास करना पड़ा।"
फिर क्या? केजरीवाल हड़बड़ा जाते। शंका में अपना ही वीडियो जांचने लगते। कहीं इधर-उधर का कुछ जुड़ तो नहीं गया।
थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब, आपके मंत्री के वीडियो डर लगता है। केजरीवाल को एक आम सलाह "ओ भाई..तुम बोलते ही क्यों हो? तुम्हारी खांसी ठीक हो गई है, बधाई। लेकिन डॉक्टर ने यह तो नहीं होगा कि जहां फंदा देखो वहां गर्दन दे देना। "
केजरीवाल से आगे निकलर शिवसेना से कांग्रेस में आए संजय निरूपम ने सीधे-सीधे सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जी कहा। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला फटाक से सफाई देने आए "कांग्रेस का संजय निरूपम के बयान से कोई लेना-देना नहीं है। "
अब हम क्या समझें, सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जी कहनेवाले निरूपम स्वयं फर्जी हैं।

निरूपम  केंद्रीय स्तर के नेता नहीं हैं। उनका फेसियल एक्सप्रेशन देखिएगा, ध्यान से। बेचारे कब्ज से परेशान दिखते हैं। टॉयलेट में पूरा घंटा बितानेवालों का प्रतिनिधित्व संजय निरूपम की भाव-भंगिमाओं में नजर आता है। निरूपम को मोदी के स्वच्छता अभियान से चिढ़ है! पटरीपार कहीं बैठे होंगे। निवृत्त होने के बाद उन्हें कहीं राकेट-मिसाइल नहीं दिखे होंगे। भोले-भाले निरूपम ने कह दिया " सर्जिकल स्ट्राइक फेक लगती है। "

केजरीवाल और निरूपम से कहीं बड़े नेता सीताराम येचुरी ने इन दोनों से पहले शक जाहिर किया था। उन्हें ट्विटर, फेसबुक में इतने कमेंट मिले कि अब उन्हें सपने में अपने पर सर्जिकल स्ट्राइक होती दिखती है
अब सीताराम येचुरी से भी बड़े नेता शरद पवार के बोल फूटे हैं। वे ज्यादा संभलकर बोले। बीसीसीआई से धकियाए जाने के बाद उन्हें सुर्खियों में बने रहने की आवश्यकता है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद इस देशकाल-परिस्थिति में हर नेता बोल रहा है।
एक नेता शांत है। अपने चिरपरिचित अंदाज में चुप है, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह।
पक्ष-विपक्ष के बयानों को सुनकर वे मुस्कुराते होंगे। मन ही मन कहते होंगे-
"बेटा हमको सब पता है। दस साल चलाया है देश।"


मिले कि वे इंटरनेट का नाम सुनकर स्वयं पर सर्जिकल स्ट्राइक हो रही है, सोचने लगते हैं। डर जाते हैं।

Tuesday 4 October 2016

बिहार का कानून, हम और गांधीजी


दुनिया जानती है शराब के  राजस्व से सरकारी खजाना जितना भरता है, उससे तीन गुना ज्यादा पैसा कमीशन के कोटे में आता है। इसको ऐसे समझें कि यदि बोतल पैमाना है , तो उसमें भरी शराब के चौथाई हिस्से का रेवेन्यू ही रिकार्ड में लिखा जाता है, बाकी का हिस्सा व्यवस्था को सुचारू रखनेवाले रख लेते हैं। सर्वाधिक काला धन शराब के धंधे में है। इस समंदर की सबसे छोटी मछली ठेकेदार है और सबसे बड़ी सरकार।
पैसे और शराब से किसको नहीं खरीदा जा सकता?

सोशल मीडिया में बहस छेडऩेवाले हमारे प्रबुद्धजनों के पास नक्सलवाद से लेकर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद तक, सारे मुद्दों पर विचार हैं। पर क्या ये प्रबुद्धजन शराबी हैं? क्योंकि वे शराबबंदी पर अधिक नहीं बोलते। प्रबुद्ध बुरा न मानें। मैं सभी को शराबी नहीं कह रहा हूं। लेकिन 10 में सात शराबी हों तो बाकी के तीन महफिल में न सही, तमाशे के शौकीनों में गिने जाएंगे।

सवाल है कि व्याकुल प्रबुद्धजनों का झुंड शराबबंदी का अपरोक्ष विरोध करता क्यों दिखता है? क्या इस दिमागदार तबके को मालूम है कि शराब के खिलाफ  खुलकर बोलना-लिखना जान सांसत में डालना है?  प्रबुद्ध बहादुरों  की सीमाएं हैं।

अभी भारत-पाकिस्तान तनाव में मीडिया की भूमिका पर बातें चल रही हैं। माना जा रहा है भारत के सर्जिकल स्ट्राइक के पीछे मीडिया का बनाया प्रेशर था। इसी नेशनल मीडिया के बड़े हिस्से ने बिहार में शराबबंदी कानून का माखौल उड़ाया था।

आम आदमी के लिए अब रीडर सैटिस्फेक्शन और  पर्सनल सैटिस्फेक्शन  का फर्क समझना मुश्किल नहीं रहा। बिहार में पूर्ण शराबबंदी के कानून को हाईकोर्ट ने हटाया तो कुछ अखबारों ने इसे सामाजिक कल्याण की  तरह छापा। एक ही दिन में बिहार सरकार ने नया शराबबंदी कानून लागू कर दिया। मजबूरन  उन्हीं  अखबारों ने खबर को मारते हुए छापा। इलेक्ट्रानिक मीडिया उड़ी हमले और सर्जिकल स्ट्राइक का उन्माद बेच रहा है। उसके पास इस खबर के लिए "सौ खबरें एक मिनट में" का वक्त था।

मीडिया प्लेयर्स ने बिहार में शराबबंदी पर अपनी रिपोर्ट्स पर्सनल सैटिस्फेक्शन के मंसूबों के से  दिखाईं थीं।  खबरें रीडरशिप और टीआरपी बटोरती रही होंगी,  मकसद साफ दिख रहा था।  यह बताने का इंतजाम किया जा रहा था कि वर्तमान परिपेक्ष्य में शराबबंदी जैसे कानून प्रासंगिक नहीं हैं।

इस देश में कितनों को याद है कि पूर्ण शराबबंदी महात्मा गांधी का विचार था । गांधीजी से ज्यादा अप्रासंगिक वर्तमान में कोई नहीं है ! गांधीजी के जन्मदिन पर बिहार सरकार ने शराबबंदी का दूसरा कानून लागू कर दिया। इस दिन बिहार से बाहर के अन्य शराब सिंचित प्रदेशों में सोशल मीडिया ट्रेंड  चल रहा था- "हैप्पी ड्राई डे।"
 इस बार गांधीजी पर विज्ञापन भी कम आए। गांधीजी का जन्मदिवस स्वच्छता अभियान को समर्पित कर दिया गया।
सोशल इंजीनियरिंग की प्रबुद्ध प्रणाली ने भारतीय जनमानस में बात बिठा दी है कि गांधीजी अनिवार्य नहीं हैं। वे अप्रासंगिक हैं। सामंतवाद का विरोध कर गांधीजी ने जिनसे दुश्मनी पाली थी, उनके वंशज आज अपने पुरखों का बदला ले रहे हैं ।

अंग्रेजों ने आजादी देने की सूरत में दो विचार भारतीय जमीन पर बोए थे। पहला, मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए एक अलग देश चाहिए। पाकिस्तान बन गया।
दूसरा, महात्मा गांधी सही आदमी नहीं हैं। अंग्रेजों का यह ब्लफ इतना चला कि बिना तर्क किए आज तक इसे स्वीकारा जा रहा है। गोरी चमड़ी और अमीर लोग जो कहें, वो सही। हमारी मानसिकता अटूट है। अंग्रेज चालाक थे। उन्होंने हमारे राष्ट्रपिता की छवि को हमसे ही तुड़वा दिया।
गोरे जानते थे गांधीजी के साथ रही पीढ़ी को भ्रमित नहीं किया सकता, इसलिए उन्होंने  बाद में आई कौम को लक्ष्य बनाया। बिके हुए लेखकों-इतिहासकारों, छद्म स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जरिए बताया गया कि गांधीजी ऐसे थे, वैसे थे। आज परिणाम दिख रहा है। हम गांधी का लिखा भूल गए हैं । जिन्होंने गांधी के खिलाफ लिखा, उन्हें पढ़ रहे हैं।  जिस महात्मा के जन्मदिन पर हमें नशाबंदी का त्योहार मनाना चाहिए, उसे हम ड्राई डे के नाम से पुकारते हैं।

मध्यमवर्ग की आकांक्षाओं से संचालित अति-प्रतिद्वंदिता के दौर में हम बच्चे को अल्बर्ट आइंस्टीन बनाना चाहते हैं । महात्मा गांधी नहीं। आइंस्टीन ने एक बार गांधीजी के बारे में कहा था ‘आनेवाली नस्ल यकीन नहीं करेगी कि धरती पर कभी इस तरह का महामानव जन्मा था। ’
लेकिन हम भारतीय आइंस्टीन की क्यों मानेंगे?  रहा होगा वो दुनिया का सबसे दिमागवाला बंदा। बच्चा आइंस्टीन बने, मगर गांधी के आदर्शों पर न चले। हमको अपने बच्चे को महामानव नहीं बनाना। हम तो वही मानेंगे, जो अंग्रेजों ने अपने पालतू  लेखकों से लिखवाकर भारत मेंं बांच दिया। हम गोड्से को महान क्रांतिकारी बताएंगे और गांधी को अप्रासंगिक। वास्तव में अंग्रेज बुद्धिमान निकले। उनका सूरज न उस काल में डूबता था और न आज भारत में डूबा है।

बहरहाल, गांधीजी को पूरे देश में किसी ने सही तरीके से याद किया तो वो नीतीश कुमार हैं। बिहार सरकार के नए शराबबंदी कानून पर हमारे नेशनल मीडिया की नजरें इनायत नहीं हुईं। इलेक्ट्रानिक मीडिया को उस तरह का मसाला पसंद है, जिसमें नीतीश कुमार की पार्टी के एक विधायक को झारखंड में जाकर शराब पीते कैमरे में कैद किया गया था। एक बूढ़े, अर्धनग्न  फकीर की जयंती पर बिहार में शराबबंदी का अपेक्षाकृत अधिक कठोर कानून लागू होना, टीआरपी की खबर नहीं थी। मुझे समझ नहीं आता कि मीडिया प्रबंधनों को टीआरपी का ज्ञान कौन देता है? और क्या वह पत्रकार है! अथवा अंग्रेजों का छोड़ा हुआ मैनेजर।

टीवी चैनलों को छोडि़ए, संपादकीय में कम्युनिज्म से भरे लेखों में भी शराबबंदी कानून के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था। नीतीश कुमार पर कम्युनिज्म का प्रभाव बताया जाता है। हमारे देश के ज्यादातर कम्युनिस्ट (अधिकांश मीडिया में भरे पड़े हैं) बातें साम्य की करते हैं, लेकिन महंगी शराब चाहते  हैं। पाइप पर तंबाकू सुलगाकर पीते हैं।  नीतीश इस तरीके के नहीं लगते।

 मैंने बहुत पहले क्रांतिकारी विचार रख रहे एक नेता को सुना था ‘असली साम्यवादी कभी पूंजीवादी  के नीचे  काम नहीं कर सकता। पेट भरने के लिए क्रांति नहीं छोड़ सकता। दंड से डर कर अपमान का दंश नहीं झेल सकता। वह प्रत्येक क्षण, प्रत्येक स्थिति में कामरेड होता है। ’
उस नेता का नाम तो याद  नहीं, लेकिन बाद में, मैं बहुत से फर्जी कम्युनिस्टों से मिला, जो निहायत ही ड्रामेबाज और ढोंगी थे। आजकल वे सरकारी बंगलों की जमीन के केंचुए हैं, कहलाते बुद्धिजीवी हैं। जिस जनसंघ, भाजपा और आरएसएस को दीमक बताकर उनकी बुद्धिजीविता पनाह पाती थी, आज उनकी शरण में जिंदगी चलती है। प्रत्येक क्षण, प्रत्येक स्थिति गई तेल लेने। लेकिन इस तरह के नकली कम्युनिस्ट प्रासंगिक हैं । गांधीजी प्रासंगिक नहीं हैं। इसमें भाजपा या आरएसएस का दोष नहीं है। भाजपा को खड़ा करनेवाले नेताओं ने कभी गांधीजी को अप्रासंगिक नहीं कहा। वे बस यही कहते रहे कि गांधीजी कांग्रेस की मिल्कियत नहीं हैं। अटल, आडवानी और मोदी ने खुले मंचों से गांधी के सिद्धांत, दर्शन और विचार को नकारा नहीं।


खैर, नीतीश कुमार मुझे अवसरवादी जान पड़ते  हैं। इस दर्जे में वे रामविलास पासवान के बराबर हैं। मैं समझ सकता हूं कि बिहार में पूर्ण शराबबंदी उनका एजेंडा था। वे दबावों के बावजूद इस पर कायम रहे। इतिहास के कोरे पन्नों में जार्ज फर्नांडीज को वो स्थान नहीं मिलेगा, जो उनके चेले नीतीश कुमार पाएंगे।  नीतीश सरकार ने इस साल शायद अप्रैल में शराबबंदी कानून लागू किया था। नेशनल मीडिया ने दो दिन इस पर पॉजिटीव खबरें चलाईं, फिर बिहार के पीछे पड़ गए। दिखाया जा रहा था कि शराब नहीं मिलने से लोग बीमार पड़ रहे हैं। मर भी रहे हैं। ज्यादातर प्रतिष्ठित समाचारपत्रों नेे इन खबरों को शीर्षक के बराबर स्थान दिया। 
.. .और शराबबंदी का कानून हाईकोर्ट ने रद्द क्या किया, इन्हीं चैनलों और अखबारों ने हेडलाइंस में गगनभेदी उद्घोष किया। लग रहा था शराबबंदी के खिलाफ उनका एडिटोरियल कैंपेन सफल हो गया।
खांटी बिहारी नीतीश कुमार पीछे नहीं रहे।  शराबबंदी का नया कानून लागू कर दिया। नीतीश की इस त्वरित  प्रतिक्रिया पर मीडिया की तवज्जो खास नहीं है। प्रमुख राष्ट्रीय अखबारों ने कवरेज दिया, प्रस्तुतीकरण प्रभावात्मक नहीं था। रोजाना अखबार पढक़र दिन की शुरुआत करनेवाला व्यक्ति इस पक्षपात को समझ सकता है। मैं नीतीश कुमार समर्थक नहीं हूं। हां, यह अच्छा लगा कि नीतीश कुमार ने कोर्ट के फैसले का पूर्वानुमान लगाते हुए पहले ही नए कानून का विधेयक पास करा लिया था।

पक्के गांधीवादी अन्ना हजारे भी बिहार में शराबबंदी का समर्थन कर चुके हैं। उन्होंने तो हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद नीतीश सरकार को गांवों में निगरानी दल तैनात करने का सुझाव दिया था। हद  है कि शराबबंदी से बिहार के रेवेन्यू को नुकसान बताते हुए दूसरे राज्यों के अधिकारी सिर पीटते दिखते हैं।  क्या उन्हें डर है कि अगर बिहार में शराबबंदी राजनीतिक ट्रेंड बन गई  तो उनकी दुकान का क्या होगा? उनके खजाने का क्या होगा?
सरकारी रजिस्टर  के तथ्य रखनेवाले यह नहीं जानते कि शराब जन-धन के नुकसान का सर्वाधिक बड़ा कारण है। शराब पीने से होनेवाली मौतों के ज्यादातर आंकड़े सरकारी रिकार्ड में दर्ज नहीं होते। यह भी बहुत कम लोग जानते हैंं कि शराब से होनेवाली मौतें आकस्मिक नहीं होती हैं। इनका कारणसहित रिकार्ड नहीं रखा जाता। गुर्दा फेल हो गया, हार्ट फेल हो गया, ब्रेन हेमरेज हो गया,  कारण बताए जाते हैं। इन कारणों की जननी शराब थी, डॉक्टर लिखकर नहीं देता। इसी तरह शराब से मिलनेवाले वास्तविक राजस्व का हिसाब-किताब नहीं होता। इसलिए तो बुजुर्ग कहते हैं कि आबकारी विभाग में नौकरी लग जाएगी तो रातोंरात मालामाल हो जाओगे। शराब आबकारी को ही नहीं, एक पूरे तंत्र को फाइनेंस करती है।
 शराब माफिया का असर यूपी की सियायत में पोंटी चड्ढा के रूप में सामने आ चुका है। देश के हर छोटे-बड़े और गरीब राज्य में शराब सिस्टम को सींच रही है। वह मानव की आहार श्रृंखला का अंग बना दी गई है।

 आलोचक कहेंगे ' नीतीश कुमार स्वयं को नरेंद्र मोदी से अच्छा प्रशासक दिखाना चाहते हैं और फटाफट दूसरा शराबबंदी कानून लागू करना इमेज का विस्तारीकरण है।' आलोचकोंं के नजरिए से सोचने में हर्ज नहीं है। मैं अपने नजरिए से सोचता हूं, नीतीश कितने दिलेर हैं। उन्होंने सिस्टम की सबसे ताकतवर शह को छेड़ा है। मैं माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति का सम्मान करता हूं। कितना अच्छा हो कि वे संसद के अगले सत्र के पहले सर्वदलीय बैठक कर पूरे देश में शराबबंदी का विधेयक लाने पर रायशुमारी करें। सुनने में ही यह कपोल-कल्पनाग्रस्त, हास्यास्पद विचार लगता है। गुजरात और केरल में शराबबंदी के हश्र से हम सभी वाकिफ हैं। बावजूद इसके, अगर मोदी अलोकप्रिय पहल करते हैं तब बड़ी पार्टियों की प्रतिक्रिया का सभी को इंतजार रहेगा। हालांकि यह मेरी अतिश्योक्तिपूर्ण कल्पना है। मैं यह सोच भी कैसे सकता हूं! प्रासंगिकता के अनुसार दुनिया का कोई देश शराब को पूरी तरह बंद नहीं कर सकता। उसकी रोजी-रोटी शराब के धंधे के फलने-फूलने पर निर्भर है। अत: मैं देश में पूर्ण शराबबंदी की हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण कल्पना के लिए माफी चाहता हूं। मानव अधिकार का झंडा बुलंद करनेवाले प्रबुद्धजनों के लिए शराबबंदी अप्रासंगिक, अव्यवहारिक और मजाक है। मेरी औकात क्या है ?
अक्सर मैं अपनी मंडली के साथ समकालीन विषयों पर चर्चा करता  हूं। कल एक जूनियर ने सवाल किया 'हमें खबरों को परफेक्ट बनाने के लिए क्या करना चाहिए? '
मैंने कहा 'बस इतना कि हम खबर को उसी तरह छापें जैसी वो है।'
उसने सट से मेरी बात काटी (आजकल यह नई बात नहीं है)- ' एंगल भी तो देखना पड़ेगा ? '
मुझे लगा उसे कहूं कि तू उठकर चला जा.. फिर मुझे ध्यान आया। मैंने कहा ' बेटा जब अपनी रोटी सेंकनी हो तब एंगल देना पड़ता है। खबर अपना एंगल साथ लेकर आती है। उसके लिए न हेडिंग में फैंसी शब्द जोडऩे पड़ते और न ले-आउट से खेलना होता। पन्ना भरना हो, अतिविशिष्ट ज्ञान दिखाना हो, तब हम पूरे-पूरे पन्ने की खबर लगाते हैं और उसे असीमित एंगल देते हैं। अंत में हम एंगल को लेकर इतने संशय में होते हैं कि मूल विषय ही भूल जाते हैं, डर बना रहता है कि गलती न हो जाए।'

जूनियर मेरी बातों से संतुष्ट नहीं दिखा। वो एक कम्युनिज्म  समर्थक संपादक के नीचे काम करता है जो सरकार के पक्ष को अखबार की जरूरत बताते हैं।

जूनियर ने आगे प्रश्न नहीं किया। फिर हम साथी बिहार के शराबबंदी कानून के रद्द होने और नए रूप में पुन: लागू किए जाने को लेकर चर्चाएं करते रहे।
इस बीच उस जूनियर ने कहा ‘वैसे यहां भी सरकार शराबबंदी पर विचार कर सकती है। अब तो हमारी क्रिकेट टीम रणजी में खेलनेवाली है। दिक्कत नहीं है।’
पता नहीं वो क्या कहना चाहता था!
(आपको समझ आए तो अपने तक ही रखना। )

Friday 30 September 2016

किसने कहा सलमान से कि पाकिस्तानी कलाकार आतंकवादी हैं?


सलमान खान कहते हैं  " पाकिस्तानी एक्टर्स आतंकवादी नहीं हैं। उन्हें प्रॉपर वीजा मिला हुआ है।"  मैं उस सवाल पूछनेवाले जर्नलिस्ट की जगह होता तो तुरंत दूसरा सवाल करता " किसने कहा, पाकिस्तानी कलाकार आतंकी हैं? "

सलमान खान अपने स्टेट्मेंट्स को लेकर पॉलिटिकली कितने करेक्ट होते हैं ? याद कर लीजिए, तनाव के माहौल में उनका एकाध समझदारीभरा बयान! वे उन मौकों पर बयान देते हैं, जहां कहना गैरवाजिब होता है।
ये वही सलमान खान हैं, जो राज ठाकरे के एक बुलावे पर उनके घर चले जाते हैं। अखबारों में इनकी, आमिर खान की और दूसरे सेलिब्रिटीज की राज ठाकरे के साथ गहन मंत्रणा दिखाती फोटो छपती है। बैठक में देश में शांति स्थापना के लिए मंथन की भाव-भंगिमाएं होती हैं। अभी खबर आई थी कि सलमान खान ने राज ठाकरे से अनुरोध किया है कि वे पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में काम करने दें। फिर सलमान के पीआर मैनेजर्स की ओर से इस खबर का खंडन किया गया। अब सलमान ने आज कह दिया "पाकिस्तानी कलाकारों को आखिर वीजा जारी होता है और वो कौन जारी करता है ..? " जाहिर है सरकार।

शायद  सलमान के पिता सलीम खान उन्हें डांट रहे होंगे। सलीम ने जावेद अख्तर के साथ मिलकर उतनी स्क्रिप्ट्स पर काम नहीं किया होगा, जितना सलमान के लिए सफाई देने या दिलवाने के लिए उन्हें करना पड़ता है। वे अपने को ट्विटर पर ले आए। वे सलमान के फादर से गॉडफादर की भूमिका में आ गए हैं।
सलमान खान ने एक बजरंगी भाईजान फिल्म की है। उसके बाद से वे बड़े खुले विचारों वाले दिखने लगे हैं। उनकी पीआर टीम ने इमेजमेकिंग पर काफी मेहनत की है। कटरीना कैफ के प्रति उनकी उदारता की मिसालें दी जा रही हैं। "सच्चा प्रेम ऐसा होता है" जैसी।

होता है यह है कि फिल्म सितारों की प्रेस कान्फ्रेंस में निकल कर कुछ नहीं आता। उन्हें कवर कर रहे पत्रकारों पर दबाव रहता है कि वे कुछ ऐसा बुलवाएं, जो हेडलाइन बन जाए। सलमान खान इसके लिए सही चुनाव हैं। उनकी जीवनशैली और सोच तकरीबन हर भारतीय को टीवी और समाचारों के माध्यम से मालूम है। अब जो उन्हें जान गया है, वो  मान गया होगा " ये बंदा आज भारत का सबसे बड़ा सुपरस्टार है, लेकिन आईक्यू लेवल डाउन है। ऊल-जलूल बोलता रहता है।"

शायद इस दफा सलमान खान ने वीजा कौन देता है ? कहकर नासमझी में सही कहा है! मैं यहां जजमेंटल नहीं हो रहा। मैं केवल एक पक्ष रख रहा हूं। आखिरकार पाकिस्तानी कलाकारों के बारे में फैसला केंद्र सरकार को करना है।

राज  ठाकरे को अधिकार नहीं है कि अपनी पार्टी के गुंडों से पाकिस्तानी कलाकारों को डराएं। पाकिस्तानी कलाकारों से ज्यादा तो बेचारे करण जौहर डर गए हैं। हालांकि अनाप-शनाप बोलने में उनका भी कोई सानी नहीं है। लेकिन वे इस तरह के  दौर में चुप हो जाते हैं। करण फैमिली शोज में अश्लील हो जाते हैं और बाद में माफी मांग लेते हैं। हाथ जोड़ लेते हैं। सरेंडर कर देते हैं।

माय नेम इज खान के समय उन्होंने यही किया था। शाहरूख अड़े थे। करण झुक गए। फिल्म रीलीज हो गई। उस फ्लॉप फिल्म का एक डॉयलाग मशहूर हो गया- मॉय नेम इज खान, एंड आई एम नॉट ए टेरेरिस्ट। मॉय नेम इज खान के पहले शाहरूख ने आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाडिय़ों को खेलने का अवसर देने की बात कही थी। बस, शिवसेना उबल गई। शाहरूख को माफी मांगने कहा गया। धमकी दी गई। शाहरूख झुके नहीं। देशभक्ति दिखाने के लिए कट्टरपंथियों के सामने झुकने की जरूरत नहीं होती।

अभी कुछ महीनों पहले आमिर खान का गला सूख गया था। उन्होंने कहा था " मेरी बीवी कहती है, माहौल खराब हो रहा है, हमें किसी दूसरे देश में सैटल होना चाहिए। आमिर ने कहने के बाद उसके रिएक्शन का नहीं सोचा। और देखिए सत्यमेव जयते से सोशल एक्टिविस्ट की प्रभावी भूमिका में उतरनेवाले आमिर की देशभक्ति सवालों के घेरे में चल रही है।
उसके कुछ दिनों बाद सलमान खान, दाऊद के भाई याकूब मेमन की फांसी पर आपत्तिजनक ट्विट कर बाल-बाल बच गए। और अभी यह नया बयान दे दिया है। भारतीय दर्शकों की नब्ज इन तीन खानों के हाथ है। इसके बावजूद तीनों उन मौकों पर गलतबयानी कर जाते हैं, जहां उन्हें चुप रहना चाहिए।

अमिताभ बच्चन ने पॉलिटिक्स में फजीहत के बाद से जो कान पकड़े हैं, आज वे उठने-बैठने तक में पॉलिटिकली करेक्ट होने की पोजीशन का ख्याल रखते हैं। तीनों खानों को बच्चन से सीख लेनी चाहिए। बात यह नहीं है कि अमिताभ हिंदू हैं और मुसलमान सितारों को पाकिस्तान के बारे में बोलने से पहले दस बार सोचना चाहिए। मुद्दा यह है कि भैया आप बोलते ही क्यों हो?
इस दीवाली आ रही फिल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' में साइड कैरेक्टर कर रहे फवाद खान एमएनएस की धमकी के बाद से मुंबई से गायब हैं। पाकिस्तानी मीडिया ने कहा है "वो हमारे यहां नहीं उतरे।" हो सकता है अब उतर गए हों। मुद्दा इससे जुड़ा है कि फवाद ने कोई स्टेटमेंट  नहीं दिया, सलमान को बोलने की क्या जरूरत है?

राज ठाकरे जैसे अराजक नेता इसी तरह पब्लिसिटी पाते हैं। अपनी बुझी पार्टी की बाती जलाते हैं। एक तरफ आप राज ठाकरे के घर जाकर मुंबई के विकास जैसे विषयों पर बैठक करते हो। गलबहियां करते हो। दूसरी तरफ कहते हो " पाकिस्तानी कलाकारों को वीजा किसने दिया?"
अभी देश का माहौल नहीं दिख रहा सलमान को। राज ठाकरे ने इस माहौल में अपनी रोटी सेंकनी शुरू कर दी है। भारत का माहौल उड़ी अटैक के बाद से आक्रामक है। अभी पाकिस्तान से आ रही मिठाई भी हमें जहर लगेगी। पाकिस्तान कोई महान प्रजातांत्रिक और साझा तरक्की में यकीन रखनेवाला मुल्क नहीं है, जो अपने कलाकारों को शांतिदूतों के रूप में भारत जाने की इजाजत देता है।
भारत की ज्यादातर फिल्में पाकिस्तान में रीलीज नहीं होने दी जातीं। एमएस धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी की रीलीज वहां बैन कर दी गई है। इसके पहले ढिशुम को प्रतिबंधित किया गया था।

इस मामले में सलमान, शाहरूख और आमिर की फिल्में अपवाद हैं। बजरंगी भाईजान तो वहां सबसे अधिक कमाई करनेवाली फिल्मों में आती है। आमिर की पीके, सलमान की बजरंगी भाईजान और शाहरूख की मैं हूं ना, मॉय नेम इज खान, वीर जारा वगैरह में पाकिस्तान एक पक्ष की तरह दिखता है। कोशिश होती है अमन का पैगाम देने की।

बहरहाल तीनों खानों की देशभक्ति पर कोई शक नहीं है। लेकिन माहौल देखकर बोलना इन तीनों को ही सीखना होगा। जैसे, अमिताभ बच्चन सीख गए। पाकिस्तान में इन तीनों के मिलाकर जितने फैंस नहीं होंगे, उससे ज्यादा अमिताभ बच्चन के हैं। समस्या इन तीनों की लोकप्रियता बढ़ाने की भूख है। आप अपने को पूरी दुनिया (पाकिस्तान समेत) का सितारा दिखाना चाहते हो। आप खुश हो जाते हो कि पाकिस्तान में हमारे इतने फैन हैं। आपकी ब्रांडिंग इससे बढ़ती है।
फिल्म इंडस्ट्री में बिजनेस पहले चलता है। हिंदू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान लागू नहीं होता।
फिल्में कहां, कैसे बिजनेस करती हैं, यह पहला मकसद होता है। हो सकता है सलमान ने पाकिस्तानी कलाकारों के समर्थन में बयान पाकिस्तान में अपने प्रशंसकों के मद्देनजर दिया हो ! हो सकता है पाकिस्तानी कलाकारों से उनकी अच्छी जमती हो ! जमती भी है, अदनान सामी, राहत फतेह अली खान से तो बहुत ज्यादा। फवाद खान को तो वे अपने बैनर की एक फिल्म में मेन लीड लेना चाहते थे। फिल्म फ्लोर पर जाने को तैयार थी कि उड़ी हमला हो गया।

सलमान के इस बयान के पीछे केवल बिजनेस है। राज ठाकरे, सलमान के दोस्त हैं। मीडिया के सामने सवाल रखने के बजाय सलमान, राज ठाकरे को कह दें- " मेरे प्रोडक्शन की फिल्म का हीरो है फवाद। " 
यह क्या बात हुई कि आप राज ठाकरे के सखा हैं और इधर मीडिया से सवाल कर रहे हैं " पाकिस्तानी कलाकारों को वीजा किसने दिया? "




Thursday 29 September 2016

परिस्थितियों को वक्त देने से अच्छा, खुद को बदलना है


पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (उत्तर भारत में इसे गुलाम कश्मीर कहा जाता है) के आतंकी ठिकानों पर हमारी आर्मी का हमला, हमारे आत्मसम्मान की वापसी का कारक हो सकता है। हमारे परिस्थितितुल्य आत्मसम्मान को हुआ कुछ नहीं था, बस वो थोड़ा 'आइसोलेटेड' हो गया था। भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नैतिकता का इकलौता उदाहरण है। नैतिकता को आत्मसम्मान से ही जोड़ा जाना चाहिए। जिन्हें नैतिक होना, अव्यवहारिक लगता है वे आज पाकिस्तान का हाल देख लें। उस देश को अलग-थलग, आइसोलेटेड करने की आवश्यकता नहीं पड़ी।

कई  लोग अपनी जिंदगी को केवल इसलिए सफल मानते हैं क्योंकि उन्होंने वो सब हासिल किया, जिसके बारे में सोचा नहीं था। वे इसे अपना गौरव मानते हैं। हो सकता है मैं और आप भी उसी दर्जे के हों। नहीं भी होंगे, तो हमें इसके लिए सम्मान नहीं मिलनेवाला। मध्यमवर्गीय जीवन में सफल लोग कहते हैं- "आत्मसम्मान परिस्थितियों के मुताबिक होता है। "

मैं पूरे सम्मान के साथ गुरुवार दिनभर टीवी चैनलों के साथ रहा। जरुरी कामों को मैंने छुट्टी पर भेज दिया। वैसे देखा जाए तो जिंदगी में एक ही जरुरी  काम होता है, सांस लेना। और वो मैं बराबर लेता हूं। मैं टीवी के सामने चित पड़ा रहा। समाचारों के ब्रेक में करवटें ले लीं। जब इसकी भी गुंजाइश नहीं बची, तो एक से दूसरे चैनल पर चला गया।

तीस की उम्र पार करने के बाद मुझे महसूस होने लगा था कि अधिक जिम्मेदारी दिखाने का समय शुरू हो चुका है। इसकी कसौटी कहती है, टीवी सोफे पर बैठकर देखनी चाहिए। यह सयाने होने की ओर अनमनी अग्रसरता है।
आज लग रहा है "मैं तीस की उम्र के पहले पहुंच गया हूं।" अब बिस्तर पर पड़े हुए टीवी देखने से मुझे कोई नहीं रोक सकता। आज मैं, मां और बीवी के पसंदीदा सास-बहू सीरियल्स से आजाद इंसान हूं। मां और मेरी बीवी को भी आज न्यूज चैनल पसंद आ रहे हैं। हम तीनों आज एकता दिखा रहे हैं जिसमें आत्मसम्मान है। हमने अपने आत्मसम्मान का बंटवारा नहीं किया। देश हमेशा आत्मसम्मान से बढक़र होता है।

बात तीस पार के होने पर चल रही थी। जवान होने और 'नौ+जवान' होने में ये जो '+नौ ' है, ये बड़ा दिलजलाऊ है। 'मैं जवान हूं' का मतलब है- कुछ दिनों बाद मैं जवान नहीं रहूंगा। 'मैं नौजवान हूं' का मायना सीधा है -आगे मैं इंसान रहूं ना रहूं, जवान तो पक्का रहूंगा।

  तीस पार होकर भी अंडर 30 होने का अहसास एक थ्रिलर नॉवेल के बीच के पन्ने से वापस पहले-दसवें पन्ने पर पहुंच जाने जैसा है। किसी नामी किताब को पढऩे की शुरुआत करते हुए कितना सारा रोमांच कुलबुलाता रहता है। उपन्यासों का मजा यही है। शुुरुआत से ही अपने कयास पाल लेना । क्लामेक्स में कोई तुक्का तीर हो जाए, तो लेखक होने का भ्रम पालना। यह भ्रम मुझे भी है।
 "मैं जिंदगी के क्लाइमेक्स की ओर नहीं बढऩा चाहता। मैं रुक जाना चाहता हूं, बीच के पन्नों पर ही।"

आत्मसम्मान के आवरण में टीवी देखते-देखते शाम होने को आई। याद आया कि मैं ब्लॉगर हूं। टीवी बहुत देख ली। अब आत्मसम्मान के साथ लिखने की बारी है। सोचा एलओसी पर क्या लिखूं? इंडियन आर्मी के एक्शन पर क्या लिखूं? जो हुआ उस पर क्या लिखूं?
इस तरह के टॉकिंग पाइंट्स पर आप तुक्का ही लिख सकते हैं। युद्ध या सीमापार के मामलों में लिखने के लिए तीर आपके पास होता नहीं है। जो मारने की कोशिश करते हैं, वे मुंह की खाते हैं।

मैं सोचने लगा.. .
मैं, अपनी उम्र के बाकियों की तरह आत्मसम्मान के बारे में सोच रहा हूं। हम बार्डर, एलओसी कारगिल, लक्ष्य जैसी फिल्में देखकर बड़े हुए हैं। आज ऐसा लग रहा है, आर्मी ने हमको गदर फिल्म दिखा दी। मुझे लग रहा है, आज बहुत से प्रेमीजन सनी देओल को भी बधाई भेज रहे होंगे।
आज वापसी करते मानसून की बारिश में आत्मसम्मान के छाते के नीचे गंभीरता भी खड़ी है। गंभीरता यह है कि सनी देओल के साथ-साथ बधाई का पात्र हर वो व्यक्ति है, जिसने आतंकियों के कायराना हमलों में शहीद हुए सैनिकों के लिए आंसू बहाए थे। उनके आंसू आंखों में ही आएं हों, जरूरी नहीं। गरजनेवाले बादलों से ज्यादा पानी, गहरे और ठहरे बादलों में होता है।

 गंभीरता तो यह भी है कि हम शहीदों की याद में चौक पर मोमबत्ती जलाते हैं। आज मन में घर के बाहर पटाखे फोडऩे की आकांक्षा कूद  रही है। गंभीरता यह भी है कि आज उन रिश्वतखोरों को खुद पर शर्म आ रही होगी, जिन्होंने कहीं न कहीं, कुछ न कुछ ऐसा किया होगा, जिससे देश को नुकसान पहुंचा होगा। उन्हें शर्म नहीं आएगी, वे बेशर्म हैं। बेईमान का क्या आत्मसम्मान!
गंभीरता यह भी है कि हममें से कुछ हैं, जो  पाकिस्तान की ओर से क्या जवाब आएगा! सोच रहे हैं।
 सोच रहे हैं उन तर्कहीन लोगों के बारे में जो एक निहायत ही परिभाषा के अनुरूप आम आदमी के आत्मसम्मान के पुनर्गामन को राजनीति और बहस में बदलना चाहते हैं।

मैं सोच रहा हूं उनके बारे में, जो इस हमले के बाद उत्तरप्रदेश चुनाव में भाजपा को फायदा मिलने की बात कह रहे हैं। मैं सोच रहा हूं उनके बारे में, जो  गलतियां और कमियां निकालने के लिए स्क्रूड्राइवर लेकर फिरते  हैं। जो कांग्रेस को भडक़ाने की सोच रहे हैं। जो कम्युनिस्टों को ' क्रॉस क्वेश्चन' करने उकसा रहे हैं। जो भाजपाइयों से कह रहे हैं " बताओ जनता को, पिछली सरकारों में दम नहीं था। मोदी ने बदला लिया है।"

मैं सोच रहा हूं उन माता-पिताओं के बारे में जो आर्मी के लिए खुश हैं । मोदी के लिए खुश हैं। देश के लिए खुश हैं । अपने लिए खुश हैं। तालियां बजा रहे हैं । मिठाइयां बांट रहे हैं। लेकिन अपने लडक़े को सेना की वर्दी में नहीं देखना चाहते।

मैं सोच रहा हूं उन विश्लेषकों के बारे में, जो अभी भी माथे पर पाकिस्तान प्रायोजित सवाल लिए घूम रहे हैं।  मैं सोच रहा हूं उन पत्रकारों (संपादकों) के बारे में, जिन्होंने देशहित को ताक में रखकर जरूरी खबरें दबाईं होंगी। जो प्रबंधन की खातिर काले को सफेद, और सफेद को पारदर्शी करते रहे । जिनकी समाजवादी आत्मा को पूंजीवाद के बाजार में बड़े ही सस्ते दामों पर खरीदा गया। वे बिक गए और अपने देश के अंदर के युद्ध पर लिखते रहे।

मैं सोच रहा हूं उन प्रमुखों के बारे में, जो साहस की बात करते हुए निर्णायक होने के पद तक पहुंचे और समझौतावादी हो गए। उन्होंने वैसे ही समझौते किए, जिसके लिए उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों को कोसा था। मैं सोच रहा हूं उस गरीब के बारे में, जिसके घर की मैना किसी सियार के पिंजरे में रोती है। मैं सोच रहा हूं उन पाखंडियों के बारे में, जो आर्मी जवानों सा जिगर रखने का दम भरते हैं लेकिन भीड़ बनकर गरीब को पीटते हैं। मैं सोच रहा हूं उस भीड़ को चुपचाप देखती खड़ी ' भीड़' के बारे में।

मैं सोच रहा हूं उस आत्मसम्मान के बारे में, जिसके साथ जीना आर्मी हमें सिखाती है।  मैं सोच रहा हूं अपने बारे में, "मैंने क्या कर लिया अब तक अपने आत्मसम्मान के लिए! "
आज हमारी आर्मी ने जो किया है, उससे मुझ जैसे असंख्य भारतवासियों को प्रेरणा लेनी चाहिए।
परिस्थितियां बदलती हैं, या तो इंतजार कीजिए या उन्हें बदलने का वक्त न देते हुए खुद को बदलिए। परिस्थितियां कभी आत्मसम्मान से अधिक शक्तिशाली नहीं होती। आत्मसम्मान और नैतिकता को तौला जाए तो  दोनों का वजन बराबर ही निकलेगा। इन दोनों के बिना आदमी हल्का है।
धन्यवाद भारतीय सेना, हमारा आत्मसम्मान, हमारा आत्मगौरव लौटाने के लिए .. .

Monday 26 September 2016

संयुक्त राष्ट्र की पंचायत


संयुक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशन्स) कहने को स्वतंत्र राष्ट्रों की पंचायत है। अमेरिकी जमीन, विदेशी मेहमान, मेल-मिलाप का प्रहसन और हुक्कों की गुडग़ुड़। पंचायत का मुख्यालय न्यूयार्क में है, सो अघोषित सरपंच अमेरिका है। सबसे बड़ा हुक्का उसका है। तंबाकू उसका अपना है। वह अपना तंबाकू सबको देता है, किसी का तंबाकू नहीं लेता। अमेरिका विश्व समाज का ठेकेदार है, सरपंच है, भगवान है। गरीबों को लूटकर उसने अपनी हवेली खड़ी की है। उस हवेली में हर साल गरीब मेहमान विशेष तौर पर बुलाए जाते हैं। वही गरीब मेहमान, जिनका बही-खाता अमेरिकी तिजोरी में बंद है। जिनके पास अपने हुक्के नहीं हैं। वे हथेलियों में खैनी रगडक़र संतुष्ट रहते हैं।

सोमवार को हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के पहले बहरीन के विदेश मंत्री बोल रहे थे। वे क्या बोले, इस पर किसी ने तवज्जो नहीं दी। कुछ बोले होंगे, मसला रहा होगा। नहीं भी रहा होगा! बहरीन देशों के बीच एक देश है। उसके विदेश मंत्री को कौन जानता है? वे हुक्का लेकर आए थे, कि खैनी!

संयुक्त राष्ट्र की पंचायत में होनेवाली भाषणबाजी गरीब देशों को दिलासा देने के लिए होती है। गरीब देश अपनी बात रखते हैं। अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और लाल मुंहवाला चीन तनकर बैठते हैं, अपने-अपने हुक्के लेकर। कहने को संयुक्त राष्ट्र दुनिया की सभा है। इंसाफ का मंदिर है। मंदिर के भगवान अमीर हैं। गरीब, भगवान के कान में अपनी बात डालने चिचियाते रहते हैं। भगवान उनकी चिचियाहट पर राय देते हैं। फैसला नहीं देते। राय देते हैं। मूड अच्छा हो तो वरदान भी देते हैं। फैसला नहीं देते।
मंदिर का भगवान ही पंचायत का सरपंच है, अपनी दुकानदारी देखता है। पंच राय-मशविरा देते हैं, आपस में एकमत नहीं हो पाते। पंचायत उठ जाती है। सभा में हुक्के का धुआं फैला रहता है। गरीब इसमें अंधे हो जाते हैं। एक-दूसरे से टकराने लगते हैं।

यहां कई सालों से दो गरीब सगे भाई आकर अपनी जमीन के बंटवारे के लिए न्याय मांग रहे हैं। वे स्थाई आमंत्रित होना चाहते हैं। बड़ा भाई अधिक शक्तिशाली और उदार है। वह न्याय मांगता है। छोटा भाई कमजोर और कायर है। उसने अपनी कमजोरी ढंकने के लिए सिरफिरे बंदूकधारी पाल रखे हैं। दोनों भाइयों में एक बात समान है। दोनों हुक्काविहीन हैं। दोनों को हुक्के की चाह है। दोनों का मन करता है संयुक्त राष्ट्र की पंचायत में खाट लगाकर अपना हुक्का गुडग़ुड़ाएं। पंचायत में हुक्का गुडग़ुड़ाने का अधिकार मिलना दुष्कर है। अधिकार के लिए सदस्यता आवश्यक है। सदस्यता के लिए वोट वही देंगे, जिनके पास अपने हुक्के हैं। हुक्केवालों को अपने हुक्के के बगल में नया हुक्का देखना नहीं भाता।

पंचायत के सारे चौधरी जानते हैं, पंचायत में बड़ा भाई आतंकवाद का विरोध करेगा। छोटा भाई हथेली में खैनी रगड़ते हुए कहेगा, आतंक से हम भी परेशान हैं। दोनों हुक्का गुडग़ुड़ाने का अधिकार मांगेंगे।

सरपंच की अपनी खुद की हथियारों की होल सेल दुकान है। वह धंधे से दोस्ती बर्दाश्त नहीं करता। दोनों भाइयों के झगड़े पर उसका भाषण किसी को समझ नहीं आएगा। वो किस तरफ है, केवल इशारों में बताएगा। उसके बाद पंचों का नंबर आएगा। वे भी किस तरफ हैं, इशारों में बताएंगे। सीधे ऊंगली नहीं उठाएंगे। हुक्के हर किसी के मुंह नहीं लगते। जिनके लगते हैं, उनका फेफड़ा क्या ईमान तक गिरवी हो जाता है।

बाकी के अमीर-गरीब और मध्यमवर्गीय देशों को इस मसले में दिलचस्पी नहीं है। उनके कान पक गए हैं। वे अपने-अपने हुक्के लेकर आए हैं। जिनके पास नहीं है, वे उधार पर लेकर आए हैं। जिनके पास अतिरिक्त था, उनसे कल वापस कर दूंगा, कहकर लाए हैं। जिनको कहीं नहीं मिला वे खैनी रगड़ते हुए आए हैं। पंचायत में बैठा सारा गांव जानता है कि इस मसले का निर्णायक हल नहीं निकलना है। सालों से यही हो रहा है। भाइयों के प्रतिनिधि बदल रहे हैं, शब्द वही हैं, शिकायत वही है।

बड़ा भाई के कड़वे प्रवचन छोटा भाई सुनता है। छोटे भाई का रोना बड़ा भाई सुनता है। इस बीच दोनों भाई-भाई होने की कोशिश करते हैं। हो नहीं पाते और अगली बार फिर संयुक्त राष्ट्र की पंचायत पहुंच जाते हैं। पहले शरीफ आए , वही बोला जो उन्होंने सीखा है। उन्होंने सीखा है, खुद को बचाना है तो बड़े भाई की खिलाफत करो।
हमारी सुषमा स्वराज आईं। शीशे के घर और पत्थर पर बोलीं। उनके पास हुक्का नहीं था। मसला था। हर कोई जानता है इसका हल सरपंच और पंचों के पास है। हल निकलता नहीं। पंच-परमेश्वर हुक्का गुडग़ुड़ाते रहते हैं। पहले पाकिस्तान ने अपनी पीठ ठोकी। आज भारत की बारी है। पाकिस्तान के लोग उधर खुश, देखा हमारे हुक्मरान ने कैसे बात रखी। इधर भारत में उत्साह, क्या करारा जवाब दिया।

पंचायत चलती रहती है। हुक्कों की गुडग़ुड़ाहट चलती रहती है। संयुक्त राष्ट्र की अमेरिकी हवेली से धुआं निकलता रहता है। गरीब पाकिस्तान और भारत धुआं देखकर खुशफहमी में  रहते हैं। दोनों को लगता है, इस धुएं के नीचे आग हमारी है।

अफ्रेड टू बी रॉन्ग part 4 : आत्मा का स्वर


चार मित्रों का एक दल विचार खोज यात्रा के लिए निकलता है। दल का नेतृत्वकर्ता आयन नामक युवक है। गरीब लकड़हारे के बेटे को उसके अंतर्मन में गूंजती आवाज इस कार्य के प्रति प्रेरित करती है। विचार खोजी दल को मार्ग पर एक झूलता हुआ पुल मिलता है, जहां उनका सामना शाशी से होता है। शाशी अत्यंत शक्तिशाली व्यक्ति है। गौरव, शाशी पर आक्रमण करता है। शाशी उसके शरीर के दो टुकड़े कर देता है। शाशी भ्रम की रचना करने में माहिर है। वह भ्रम के संसार को ही जीवन का सच्चा सुख बताता है। शाशी विचार खोज यात्रा के पथिकों को रोकना चाहता है। पुल पर ममंत्र भी प्रगट होते हैं। शाशी और ममंत्र के  के बीच विचार खोजी दल को लेकर एक समझौता होता है। समझौते के अनुसार वत्र्यसेन और वारिका का तत्काल विवाह होना है।

अब आगे.. .

part 4 : आत्मा का स्वर 

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गौरव का शरीर अस्थिर होने लगा। वह करवटें बदलने लगा। सभी का ध्यान पुल पर होते उस अचंभे की ओर ही था। गौरव उठकर बैठ गया- " मैं जीवित हूं। तुम सभी को इस पर आश्चर्य हो रहा है ! "
आयन ने हर्ष दर्शाते हुए कहा- "नहीं मित्र, प्रसन्नता हो रही है।"
- "दायरे में रहो.. विचार खोजी दल के मूर्खों.. . इस मूर्ख की जीवनप्राप्ति का उल्लास विवाह पश्चात भी मनाया जा सकता है। "  हल्की चेतावनी के स्वर में शाशी ने कहा। वह गौरव के ठीक पीछे खड़ा था। गौरव पर उसकी चेतावनी का असर हुआ। उसने अपने मूल स्वभाव के विपरीत शांति दिखाई। आयन को गौरव का चुप हो जाना स्वाभाविक नहीं लगा।

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ममंत्र का सिर झुका हुआ था। वत्र्यसेन, पुल के नीचे देखकर अपनी उधेड़बुन से छुटकारा पाने के प्रयास में था। वारिका का अंतर्मन  शून्य में भटक रहा था। वह उस कहानी को याद करने का प्रयत्न कर रही थी जिसमें एक नदी अपने तटों के न मिलने से खिन्न होकर स्वयं जलरहित हो जाने का संकल्प लेती है। आयन विपत्ति के हल के लिए ममंत्र की ओर ताक रहा था।
-" तो हम परिणय बंध प्रारंभ करें? शाशी ने अपने दाएं हाथ को झटका और हवा में अंगुलियां घुमाते हुए विधि बताई- सुनो वारिका और वत्र्यसेन.. , तुम दोनों को गठबंधन को नाटकीयता बनाने वाले कर्मकांड नहीं करने होंगे। तुम्हें पूर्वजों के तीन प्रतिनिधियों वसु, रूद्र और आदित्य को साक्षी मानकर स्वयं को विवाह की पवित्र संस्था को समर्पित करना है। यही वास्तविक गंधर्व विवाह है। पूर्वजों का साक्षी होने पर ईश्वर का आशीष मिलता है। पूर्वज भी ईश्वर ही हैं। अंतत: मनुष्य मृत्यु के माध्यम से ईश्वर से ही मिलता है। ईश्वर के समीप होना, ईश्वर के समान होना है। "
- " किसका विवाह हो रहा है?"  गौरव ने शाशी के भाषाप्रवाह पर बाधा डाली।
- " लगता है तुम्हें प्राणदान देकर मैंने अभिशाप को जीवित किया है।" आंखें फैलाकर पुतलियां ऊपर की ओर ले जाते हुए शाशी गौरव की ओर पलटा।
निश्चय से भरे हुए आयन ने प्रार्थनापूर्वक कहा- " गौरव मैं तुम्हें पूरा विवरण दूंगा, अभी जो घट रहा उसमें अवरोध न लाओ। यह हमारे उद्देश्य प्राप्ति की प्रक्रिया है। "
शाशी की आंखें सामान्य हुईं। वत्र्यसेन की कमर पर हाथ रखकर आयन उसे लेकर आगे बढ़ा। वारिका की आंखों से अश्रुधार बहने लगी। दोनों ने वसु, रुद्र और आदित्य का क्षीण स्वर से आह्वान किया।
 विवाह हो गया।
इस बीच आयन ने गौरव को पूरा घटनाक्रम बता दिया। वारिका और वत्र्यसेन के अंतर्मन में गूंज  रहे ममंत्र के स्वर ने उन्हें यंत्रचालित बना दिया था।

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" निसंदेह, अब शारीरिक क्रिया प्रारंभ हो, शुभारंभ"..- शाशी ने अट्टाहस किया।
वत्र्यसेन का चेहरा अकाल से सूखी धरती से भी सूखा था। वह पूर्वजों के प्रतिनिधियों वसु, रुद्र और आदित्य की शपथ लेते हुए भी अनिर्णय में था। भाग्य के लिखे को ग्रहण करते हुए वारिका पुल की सतह पर लेट गई। वत्र्यसेन ने उसकी दिशा में पग बढ़ाए। शाशी को छोडक़र सभी ने उनकी ओर पीठ कर ली। आयन की आंखों की किनारियां भीगने लगीं। उसे हृदय के समीप रक्त का थक्का जम जाने की पीड़ा होने लगी। आंखों के सामने काले धब्बे नाचने लगे। पैर लडख़ड़ाने लगे। रोम-छिद्रों से पसीने की बूंदें लगातार फूटने लगीं।

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आयन अपने अंतर्मन में ममंत्र के स्वर सुनने को अधीर हो रहा था। उसकी प्रेमिका एक दुरूह उद्देश्य के लिए अपनी मनोकामना का बलिदान दे रही थी। आयन के अंतर्मन में ममंत्र का स्वर नहीं ध्वनित हो रहा था!
-" हे ममंत्र मुझे आपको सुनना है। मैं विचार की खोज के महान उद्देश्य की ओर अग्रसर होने की स्थिति में नहीं हूं। उद्देश्य प्राप्ति के लिए घट रही यह घटना मेरे लिए प्राणघातक है। मेरे शरीर की क्रियाएं स्थिर हो रही हैं। मैं स्वयं को मृत्यु के द्वार पर पा रहा हूं। पिछली घटना में आपने मुझे जीवनदान दिया था। मुझे आपकी सहायता चाहिए।"
उसके अंतर्मन में ममंत्र का स्वर नहीं गूंजा।
उसकी चेतना ने व्यवहारिकता दिखाई। ममंत्र तो यहीं मौजूद थे।
उसने अपने दोनों ओर दृष्टि घुमाई। ममंत्र दोनों ओर नहीं थे। वह एक संकोच के साथ पार्श्व  में घूम गया। वत्र्यसेन शारीरिक क्रिया में लीन होने की मनोदशा बनाने का प्रयोजन करने में रत था। उसकी क्रियाएं काम-इच्छा के विपरीत प्रतीत हो रही थीं। वारिका के पैर ही दिख रहे थे। उन दोनों के शरीर के ऊपर और चारों ओर शाशी की परछाई पसरी हुई थी। शारीरिक क्रिया में स्वयं का जीवसूत्र स्थापित करने की व्याकुलता से शाशी इधर-उधर हिल रहा था। आयन ने अवलोकन किया। शाशी की परछाई सूर्य प्रकाश से नहीं बनी थी। वह स्याह-नीली थी।

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आयन ने गौरव को जीवित होते देखा था। शाशी ने अपनी माया से उसका सिर, धड़ से जोड़ दिया था। आयन को गौरव का सिर पुल के किनारे धड़ से अलग पड़ा दिखा।
'यह क्या हो रहा है!"
गौरव के धड़ से निकल रहा रक्त फैलकर वारिका और वत्र्यसेन तक पहुंच गया था। दोनों इससे अनभिज्ञ थे। आयन ने कुछ समय पहले बीते घटनाक्रम का विश्लेषण किया।
'अर्थात वारिका और वत्र्यसेन के विवाह के पूर्व गौरव का जीवित होना दृष्टिभ्रम था। गौरव को शाशी ने पुनर्जीवित नहीं किया था। ममंत्र यह क्यों नहीं समझ पाए!'
ममंत्र दोनों हाथ सामने बांधकर सिर झुकाए सेवकों की मुद्रा में खड़े थे।

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आयन ने अपनी सारी शक्तियां एकत्र कर लीं। वह अपना जीवन उद्देश्य नहीं भूला था। विचार खोज यात्रा का नेतृत्वकर्ता कायर होने का क्षोभ लेकर विचार पाने का आकांक्षी नहीं था। उसने अंतर्मन में ममंत्र का स्वर सुनने का अंतिम प्रयास किया। स्वर नहीं गूंजा ।
आयन ने लंबे डग भरकर एक लंबी छलांग लगाई। ऐसा करते हुए आयन की दोनों हथेलियां आपस में जुडक़र संयुक्त मुष्टी में बदल चुकी थीं। उसका शरीर हवा में उछला, लहराया और संयुक्त मुष्टी  का प्रहार शाशी के सिर के पृष्ठ के  ठीक मध्य में हुआ। 
शाशी ने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया। उसकी प्रतिक्रिया असाधारण थी। आयन का प्रहार उतना बलशाली नहीं था। शाशी का शरीर स्याह-नीली परछाई में जाकर मिलने लगा। वारिका और वत्र्यसेन के शरीरों पर रजतवर्ण किरणें पडऩे लगीं। किरणें आयन से निकल रहीं थीं। वत्र्यसेन और वारिका भौंचक्के होकर आयन को देख रहे थे। शाशी का पूरा शरीर परछाई में समा गया। परछाई गायब हो गई।

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गौरव के धड़ के समीप खड़े विचार खोज यात्रा के तीनों पथिक पुल की मोटी रस्सियों को पकड़े ममंत्र को देख रहे थे। इससे पहले कि ममंत्र से प्रश्र होता, उन्होंने स्वयं उत्तरों की श्रृंखला की कडिय़ां बिखेर दीं। उत्तर की पहली कड़ी थी-" मैं ममंत्र नहीं हूं।"
आयन और उसके साथी अवाक रह गए।
- "मैं शाशी के भ्रम संसार का एक रहवासी हूं। यह हमारा उपयोग अपने भ्रमजाल को विस्तारित करने के लिए करता है।"
- " हमने जो अभी यहां देखा वह क्या था?"  वत्र्यसेन ने पूछा।
- " शाशी का रचा भ्रम। उसे ज्ञात है कि मनुष्य के अंतर्मन में उसकी आत्मा के स्वर गंूजते हैं। उसने मनुष्य के मंत्र और तंत्र पर वर्षों तक निष्कर्षात्मक शोध किए हैं। वह आयन के बारे में जानता था। वह उन युवाओं की पहचान करने में व्यस्त रहता है जिनके अंतर्मन में गंूज रहे आत्मा के स्वर उन्हें विचार खोज यात्रा के लिए प्रस्थान करने को कहते हैं। शाशी में मानव के अंतर्मन में आत्मा की ध्वनि सुनने की प्रतिभा भी है। ममंत्र, मनुष्य या दिव्यात्मा नहीं है। आत्मा के स्वर का नामकरण करनेवाला भी शाशी है। उसने आयन के अंतर्मन में गंूज रहे शब्दों के मध्य नामकरण का अपना विचार प्रविष्ट करा दिया। चेतन मस्तिष्क ने आत्मा के स्वर को स्वत: ही ममंत्र नाम दे दिया। यह नाम शाशी के विचार ने उसे सुझाया था। इसी तरह विचार खोज मार्ग पर अचानक चल पडऩे का सुझाव भी शाशी की ही देन था। संभवत: इस कारणवश ही बिना पूर्व तैयारी के तुम सभी विचार खोज के अभियान में निकल पड़े। "
आयन उसके व्याख्यान से सहमत दिखा।
- " तुमने हमसे छल किया?" वत्र्यसेन भुनभुनाते हुए बोला।
- " मैं शाशी का दास था। उसने मेरे अंतर्मन पर अधिकार कर लिया था। मेरे अंतर्मन में आत्मा के स्वर नहीं गूंजते। आज इस लडक़े ने साहस प्रदर्शित कर मुझे भी मुक्त किया है।"
उसका धाराप्रवाह बोलना जारी रहा- " शाशी भ्रम का जाल रचता है। उसे भलीभांति ज्ञात है कि मानवजाति सर्वप्रथम अपने को सुरक्षित करने के मानसिक भाव लिए हुए विकसित हुई है। शाशी उस मानवजाति से निकला है। उसने मनुष्य के विकास पर शोध कर यह जान लिया है कि असुरक्षा की भावना से ग्रस्त मानसिकता पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इसलिए उसने भ्रम का संसार रचा। पुल पर आया गैंडा उसके भ्रमजाल की रचना है। वह ब्रह्मांड के रचयिता का अनन्य उपासक है अपितु उसे मनुष्य के विचार खोजी होने से कष्ट है। उसने मुझे ममंत्र के रूप में प्रस्तुत किया। उसने अपने विचार की तरंगों को तुम्हारे मस्तिष्क तक पहुंचाया। आयन के चेतन में यह विचार पहले से ही प्रविष्ट था कि दिव्यात्मा ममंत्र केवल उससे संपर्क साधता है। आयन के चेतन-अवचेतन ने कभी आपस में तर्क नहीं किया कि उस दिव्यात्मा को ममंत्र के रूप में वह कैसे जान गया। पुल में वारिका और वत्र्यसेन के अंतर्मन में तो उसने अपने विचारों का एक गुच्छा ही प्रविष्ट करा दिया। प्रेम, ज्ञान अथवा धन के स्वार्थ में लिप्त लोगों के मन में वह अधिकाधिक विचार प्रविष्ट करा सकता है। उसके विचारों के संचरण से तुम सभी को यह लगने लगा कि तुम्हारे अंतर्मन में गूंज रहे स्वर ममंत्र के हैं। वारिका और वत्र्यसेन के साथ शत-प्रतिशत यही हुआ है। आयन तुम्हारा अपने मन-मस्तिष्क पर इन दोनों की अपेक्षा अधिक नियंत्रण है। "

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ममंत्र का रूप धरनेवाले उस व्यक्ति ने आगे जानकारी दी- "शाशी ने मनुष्य जीवन की भ्रांतियों को अपना अस्त्र बनाकर वत्र्यसेन और वारिका का विवाह करा दिया। आयन ने इसी बीच साहस किया। उसने अपने आत्मा का स्वर सुनने की कोशिश की। स्वर नहीं सुनाई देने पर वह निष्कर्ष पर पहुंच गया कि उसे यह खेल तोडऩा पड़ेगा। उसके साहस का सटीक परिणाम निकला। "
- " और गौरव?" आयन की जिज्ञासा उफान पर थी।
-" गौरव अपनी नियति से वीरगति को प्राप्त हुआ। उसका साहस प्रशंसनीय था। किंतु शाशी यही चाहता है। शाशी चाहता है कि हर कोई उसकी आंखों में देखे। इससे वह अपने समक्ष उपस्थित किसी भी प्राणी का शारीरिक-मानसिक बल खींच लेता है। तुमने रामायण काल के वानर राजा बाली की कहानी सुनी होगी। राजा बाली को वरदान था, वे अपने प्रतिद्वंदी की आधी शक्ति खींच लेते थे। शाशी ने सम्मोहन की विद्या से इस वरदान को साध लिया है। वह शक्ति भंडार को भी सोख सकता है।"
- " शाशी के सम्मोहन में आकर गौरव ने उस पर आक्रमण किया। शाशी ने उसके शरीर के दो टुकड़े कर तुम सभी को अपनी शक्ति दिखाई। तुम में से किसी ने उस पर दूसरा आक्रमण करने का साहस नहीं किया। गौरव तुम सब में सर्वाधिक बलशाली था। इसलिए उसने उसकी हत्या कर तुम पर अतिरेक प्रभाव डाला। सत्य घटनाओं को मिश्रित कर भ्रमजाल रचा जाता है। इससे भ्रम और सत्य में अंतर करना मुश्किल होता है।
अवसाद से निकली वारिका ने झुंझलाकर कहा- "मुझे कुछ भी समझ नहीं आया! "
शाशी के दास होने का दावा करनेवाले उस पुरुष ने कहा-"  युवती, तुम्हें केवल यह समझना होगा कि यहां पुल पर शाशी के आने के बाद हुईं सारी घटनाएं भ्रम पैदा करने के लिए की सृजित की गईं। न यहां गैंडा था, न ही उसकी सींग आयन के पेट में घुसी थी। यह सत्य था कि उसने गौरव की हत्या की। वह असत्य था कि गौरव के सिर और धड़ को जोडक़र उसने उसे पुनर्जीवित किया। मैंने पूर्व में बताया है कि भ्रम रचने के लिए सत्य के मिश्रण की अनिवार्यता होती है। "
- " उसने ममंत्र के रूप में मुझे प्रस्तुत किया, यह अर्धसत्य है। सत्य कि मैं उसके भ्रमजाल और सम्मोहन से हवा में प्रगट हुआ। असत्य यह है कि मैं ममंत्र हूं। भ्रम में पडक़र तुमने उसके कहे का अक्षरश: पालन किया। उसके भ्रमजाल ने तुम्हारे अंतर्मन में घुसपैठ कर ली थी। अंतर्मन में आत्मा का स्वर नहीं शाशी की आवाज गूंज रही थी। विवाह के लिए सरलता से तुम सभी ने हां कर दी।"

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कुछ देर शांति रही। आयन ने ऊंगलियों से भंवों को रगड़ते हुए पूछा- " मैं अपने अंतर्मन में गूंज रहे आत्मा के स्वर से विचार खोज के लिए प्रेरित हुआ। क्या सभी के अंतर्मन में आत्मा के स्वर गूंजते हैं? और यह स्वर तब क्यूं नहीं आया जब मैं वत्र्यसेन और वारिका के विवाह और शारीरिक क्रिया के विषय में सोचकर हृदयाघात की दशा में आ गया था? "
-" हां, सभी के अंतर्मन में आत्मा का स्वर गूंजता है। स्वार्थ में पड़े मनुष्य उसकी ध्वनि को व्यर्थ मानते हैं। उसे महत्व नहीं देते। वे अपनी आत्मा को मूक बना देते हैं। तुम्हें यह बताते हुए मुझे खेद है कि मानवजाति का अधिकांश भाग आत्मा को मूक बना दिया है और भ्रम का शासन फैला है। शाशी की सत्ता भ्रम पर टिकी है। वह आंखों से सम्मोहन रचता है। उसका चेतन अतिसक्रिय है। उसने भी अपनी आत्मा के स्वर को मूक बना दिया है। इससे उसकी संवेदना मर गई। संवेदना नहीं रहने से उसका अवचेतन कमजोर हो गया। शाशी के शरीर के ऊपरी भाग में कहीं भी प्रहार करने पर वह मूर्छित हो जाता है। संयोगवश तुमने तो उसके अवचेतन मस्तिष्क के स्थान पर ही प्रहार किया। यह प्रहार उसके लिए मस्तिष्काघात है। तुम्हारे प्रहार से वह मूर्छित होने लगा था। वह यहां गिरता उसके पहले उसने अपनी स्याह नीली परछाईं की मदद ली और उसमें समाकर गायब हो गया। सदैव ध्यान में रखना कि शाशी को मारा नहीं जा सकता। उसे अपने से दूर भगाया जा सकता है। स्याह-नीली परछाई उसकी रक्षा करती है। उस परछाई को उसने अपने शोध से खोजा है। "
- "वह स्याह नीली परछाईं क्या है, कैसे पैदा हुई? " वत्र्यसेन के अंदर का वैज्ञानिक बोल उठा।
- " वह परछाई ही भ्रम है। भ्रम को मानव जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। हमारे निर्णय इससे प्रभावित होते हैं। मानव के निर्णय नहीं लेने के पीछे केवल एक ही कारक होता है- असफलता प्राप्त करने का भय। असुरक्षा का भय। संसार के अन्य मनुष्य द्वारा हास्य का पात्र बनने का भय। इन समस्त भयों का एकमात्र स्रोत है; उत्तर की बर्फीली पहाडिय़ों के पार रहनेवाले जिसे गलत साबित होने का डर कहते हैं। "
-" यह एक भय हमारे उन संकोचों का कारक है जिससे जीवन उद्देश्य धरा का धरा रह जाता है। हम एक सीधा-सपाट जीवन जीते। हमारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य सुखद मृत्यु प्राप्त करना हो जाता है। मानवजाति के चिंतन में यह भ्रम होता है कि हमें जीवन वे समस्त सुविधाएं एकत्र कर लेनी चाहिए जिससे मृत्यु का दिन सुखद हो सके। इससे बड़ा भ्रम क्या हो सकता है? इससे अधिक बड़ा भ्रम भी है। वह हास्यास्पद है। मानव जाति जीवन में प्राप्त होनेवाले विलासिता के साधनों के प्रति इतना आसक्त होता है कि वह इसके लिए भी ईश्वर का धन्यवाद करता है। ब्रह्मांड के रचयिता ने जीवन के ज्ञान को सच्चा सुख बताया है। मनुष्य विलासिता को सुख मानकर उसे ईश्वर कृपा की संज्ञा देता है, सबसेे बड़ा भ्रम यही है।"



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तीनों मित्रों को अपरिचित ज्ञानी छलिया नहीं लगा। अपरिचित उनसे जानना चाहा- " मैं शाशी की दासता से मुक्त हो चुका हूं। क्या मैं इस विचार खोज यात्रा में तुम तीनों का सहभागी बन सकता हूं? "
वत्र्यसेन ने उसे टोका- " नहीं.. . हम यह  कैसे मान लें कि अभी जो घट रहा है, वह भ्रम नहीं है.. !"
उसने अतिसामान्य भाव से उत्तर दिया- "अपने अंतर्मन से जान लो, वहां आत्मा का स्वर सुनाई दे तो तुम्हें उत्तर मिल जाएगा।"
तीनों मित्रों के मनोभाव समान हो जाने के चिह्न उनके नेत्रों में नजर आने लगे। उनकी आत्मा के स्वर ने बता दिया था कि अपरिचित व्यक्ति छल नहीं कर रहा है। आयन की आत्मा के स्वर ने कहा था-' अविश्वास का कोई कारण न होने पर शंका नहीं करनी चाहिए। अकारण शंका से नकारात्मक विचार बनते हैं। नकारात्मक विचार कुत्सित होते हैं।'
तीनों अपने अंतर्मन में गूंज रहे स्वर से जान गए कि अपरिचित ज्ञानी सत्य वक्ता है। ममंत्र दिव्यात्मा नहीं है। वह आत्मा का स्वर है। जीवन के उद्देश्य को बताने की मंशा से आत्मा अंतर्मन में गुंजायमान होती है। आत्मा का ब्रह्मांड के रचयिता से सीधा संपर्क होता है।

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आयन को कुछ महीने पहले के पूर्वाभासों का स्मरण होने लगा। पिता के लिए लकड़ी के गोले के टुकड़े करते हुए उसके अंतर्मन में दिव्य स्वर गूंजे थे। उन स्वरों ने उसके अंतर्मन से मस्तिष्क को संदेश भेजा था, विचार खोज यात्रा के बारे में बताया था। आयन ने पहाड़ी से गिरने के बाद मिले जीवन को ममंत्र का चमत्कार माना था, वह आत्मा के स्वर का प्रभाव था। आयन पहाड़ी से सीधा झरने के कुंड में गिरा था। वह पानी में डूबते हुए मूर्छावस्था की ओर जा रहा था। उसका अंतर्मन उस काल में गूंजने लगा था। आत्मा के स्वर गूंज रहे थे - 'उठो आयन तुम्हें जीना है.. .कम से कम अगले एक महीने तक तुम मर नहीं सकते..तुम्हें खोज करनी है..तुम्हें जीवन का उद्देश्य पाना है.. '
और आयन उस अत्यंत गहरे कुंड से तैरकर बाहर आ गया था। वह बाहर ही आया था और जिंग को अपनी ओर दौड़ते हुए पाया। उसने जिंग को बताया कि मैं गिरकर झरने के कुंड में गिरा था लेकिन यह नहीं बताया कि मुझे तैरना नहीं आता।
आत्मा के स्वर ने उसे तैरना सीखा दिया था।

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गौरव का अंतिम संस्कार किया गया। उसकी कमी के बाद भी विचार खोजी दल में चार सदस्य बने हुए थे। गौरव की जगह लेनेवाला नया सदस्य अपरिचित ज्ञानी नहीं रहा था। उसका नाम था- आशुतोष।

आगे क्या हुआ पढि़ए पांचवें खंड में 


Friday 23 September 2016

आह.. . तू बर्फ हो जा चांदनी रात में पिघलने के लिए



तूने बर्फ देखी होगी मेरी आंखों में
बड़े अरसे से ये नहीं पड़ी है
गर्मियां लूट रही हैं मुझको
इस साल बारिश भी कम पड़ी है
बड़े दिन बाद  लौटा हूं
जलती आंखों में सूखा लेकर
पुराने नाले का किनारा देखने
उसमें रुका पानी छोडऩे 
धूप से सस्ते हैं मेरे ख्वाब
बेमुरव्वत आखिरी हिस्से में
आह .. .तू बर्फ हो जा
चांदनी रात में पिघलने के लिए 



'बमफटाक फडफ़डिय़ा' को इस्लामाबाद के ऊपर क्यों उड़ाया जा रहा था?


इस्लामाबाद के आसमान में एफ-16 विमान उड़ रहे थे। हो सकता है आज रात भी उड़ रहे होंगे, कौन मना कर सकता है? एफ-16 अमेरिका में बना विमान है, जिससे परमाणु हमला किया जा सकता है। अमेरिका एक तरफ न्यूक्लीयर ट्रीटी की बात कहता है, दूसरी तरफ युद्धक हथियार के धंधे में उसका सबसे बड़ा ब्रांड एफ-16 है। अमेरिका ने इसे दो परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों को तगड़ी कीमत वसूल कर बेचा है।
 सोचिए जरा,  इस टाइप के "बमफटाक फडफ़डिय़ा" को इस्लामाबाद के ऊपर क्यों उड़ाया जा रहा था? उनके पत्रकार भी कैसे अन्तर्यामी और जानकार हैं कि आसमान में उड़ते विमान के पर गिन लिए उन्होंने, फट से बता दिया भैया ये एफ-16 विमान हैं, कर्जा-बाड़ी करके खरीदा है।
यहां हमारा एक सीन देखो -अतिप्रिय मित्र ने एक बार मुझे अपनी विमान यात्रा के बारे में पूरे चार बिना विज्ञापनवाले पेज बराबर जानकारी दी। अंत में मैंने पूछा- कौन सा था ? उसने कहा- हमने देखा नहीं; वही रुसवाला रहा होगा! मिग-विग टाइप कुछ।
मैंने कहा- अरे मूर्ख, वो लड़ाकू विमान है। उसने करारा जवाब दिया- अबे तो हम क्या नार्मल टाइप के स्लीपर क्लास में जाते। हम जिसमें गए वो दूरंतो से भी फास्ट था।
खैर, अपनी-अपनी किस्मत। पाकिस्तान के पत्रकार जरूरत से ज्यादा लबाड़ हैं। सरकार का मुंह बनकर बताने की कोशिश में लगे हैं कि देखो लड़ाई की तैयारी हम भी कर रहे हैं। पाकिस्तानी सरकार अपनी मीडिया को इसी तरह यूज करती है। दोनों देशों के बीच बार्डर पर तनातनी होने के बाद उनके मीडिया का रूख हमेशा यही रहता है कि भारत अब तो हमला करने ही वाला है। इस बार तो हद हो गई, हमारे कुछ बौड़म चैनल पाकिस्तान की परोसी गई खबर को सजाकर सामने रख रहे हैं। एफ-16 का उडऩा युद्ध के संकेत देता है लेकिन आधी रात अपनी राजधानी का हाईवे ब्लॉक कर उसे टेक ऑफ कराना (जैसा के हामिद मीर सरीखे पत्रकार बता रहे हैं) भारत से ज्यादा अपने नागरिकों को संदेश देने के लिए है।
अब सीरियस बात: पाकिस्तानी आर्मी अपने ही देश में आतंकवाद को नहीं रोक पा रही। बीते जून के पहले हफ्ते में कराची एयरपोर्ट पर पाक तालिबान नामक एक आतंकी संगठन ने हमला कर दिया था। इसमें 29 लोग मारे गए थे। पाक तालिबान ने सीना ठोककर जिम्मेदारी भी ली। तालिबान अफगानिस्तान को दबाने के लिए उपजाया गया था, अब उसके दो हिस्से हैं। पाकिस्तान में दहशतगर्दी फैलानेवाला पाक तालिबान उनमें से एक है। हो सकता है कई और भी हों, मुझे जो जानकारी है उसके मुताबिक पाकिस्तान की गुड तालिबान और बैड तालिबान की परिभाषा इस संगठन के वजह से ही अधिक परिष्कृत हुई है। इस तरह के एक दर्जन से ज्यादा आतंकी संगठन वहां सक्रिय हंै, जो भारत में अपने फिदायीन नहीं भेजते, वे अपने  पाकिस्तान में ही  बम फोड़ते रहते हैं।  पाकिस्तान की यह बनावटी समस्या लंबे समय से है। पाकिस्तान अपने को एक ही सूरत में एक कर सकता है, भारत से लड़ाई का माहौल पैदा कर। कश्मीर उसका पहला निशाना होता है। उड़ी हमले के बाद आजकल जो चल रहा है, वैसा पहले भी दो-चार दफे हुआ है। पाकिस्तान कुछ दिनों के लिए सही, यह फिक्स फार्मूला अपनाकर अपने लोगों और आतंकी समूहों के बीच तनाव पैदा करता है। भारत से सीधे युद्ध की बात सुनकर वहां के सारे आतंकी संगठन अपना-अपना बमफोड़ू अभियान चंद दिनों के लिए बंद कर देते हैं। इस तरह से पाकिस्तान मामूली वक्त के लिए एक हो जाता है। यह पाकिस्तान की सिंपल स्ट्रेटजी है। जब भी आतंकी वारदातों के बाद भारत भडक़ता है, पाकिस्तान में ऑटोमैटिक ढिंढोरा पिट जाता है कि कभी भी जंग हो सकती है।
भारत के नेताओं को क्या करना चाहिए:
पहले तो अपना मुंह बंद कर  लेना चाहिए। देश की अंतरराष्ट्रीय छवि के बारे में सोचकर चुप हो जाना चाहिए। भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए बड़ी-बड़ी बातें की थीं, आज सत्ता में आकर 'वाइब्रेट' करती दिख रही है। नेशनल मीडिया को भी इस तरह की रिपोर्ट दिखाने से परहेज करना चाहिए कि पाकिस्तान के आसमान में परमाणु बम गिरानेवाले वाले विमान उड़ रहे हैं।
भारत का सच्चा दोस्त-  फिलहाल कोई नहीं है। रूस और फ्रांस का आतंक विरोधी अभियान में समर्थन केवल दिखावा है। रूस को एशिया में अपनी सामरिक पहुंच बढ़ानी है। इस नजरिए से पाकिस्तान भी उसके लिए महत्वपूर्ण देश है। रूस इन दिनों अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अकेला खड़ा दिख रहा है। उसकी अर्थव्यवस्था में गिरावट है। चीन ने रूस से हथियार खरीदकर उसे बड़ी मदद दी है। चीन को पाकिस्तान पसंद है। सीधा है कि रूस पाकिस्तान के खिलाफ सामरिक मदद करने नहीं आएगा। अमेरिका से उम्मीद बेमानी है। बाकी के देश किनारे ही रहेंगे। युद्ध की स्थिति में हमारा साथ कोई नहीं देगा। वे देश भी नहीं, जिन्होंने यूएन में हमारा समर्थन किया है। वैसे आप गौर कीजिएगा, ब्लादीमीर पुतिन के राष्ट्रपति बनने के बाद से रूस को लेकर भारत के व्यवहार में एक संकोच दिखा है। पुतिन हाल ही में तमिलनाडु के एक परमाणु संयंत्र के उद्घाटन में वीडियो कान्फ्रेंसिंग करते दिखे थे, मगर इस पर ठप्पा लग चुका है कि अब हिंदी-रूसी, भाई-भाई नहीं रहे। एक औपचारिकता के तहत रूस ने भारत को उड़ी मुद्दे पर सपोर्ट दिया है। आज शनिवार से उसी रूस की सेना पाकिस्तानी फौज के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास करने जा रही है।
कूटनीति-  मकसद खुलकर सामने आ जाए तो किस बात की कूटनीति? हमारे विदेशी मामलों के महामानव बात-बात में कहते हैं- कूटनीति यह कहती है, कूटनीति वह कहती है। नई दुनिया (अखबार नहीं, बदली हुई  दुनिया की बात कह रहा हूं। ) में आजकल इतने रिसर्चर बैठे हैं कि कूटनीति को कूट डालेंगे। कूटनीतिक तौर पर हम केवल दूसरे देशों से निंदा करा सकते हैं। यूएन की भाषणबाजी से भरी बैठकों में पाकिस्तान को सीधे ही आतंकी देश घोषित करने का प्रस्ताव गिराने के लिए अकेला चीन ही काफी है। अब दो देशों के बीच बिजनेस ही कूटनीतिक संबंध हैं। कूटनीति के मोर्चे पर घेराव जैसी रणनीति मायने नहीं रखती।






Tuesday 20 September 2016

अफ्रेड टू बी रॉंग पार्ट 3 : दायरे में रहो

 अफ्रेड टू बी रॉंग पार्ट 3

दायरे में रहो

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सफेद कोहरे से निकला गैंडा अपनी पूरी गति से उनकी ओर आ रहा था। गौरव ने उसे पहले देखा था लेकिन आयन सामने था। चारों पथिकों के पास सोचने का वक्त नहीं था। अनहोनी की आशंका और भय से चारों सन्न थे। तेज लुढक़ती चट्टान सा नाक में लंबी नुकीली सींग लिए गैंडा आयन के पास आ चुका था। वारिका चिल्लाई। गौरव ने मुट्ठियां भींच लीं। मित्रों की रक्षा में विशालकाय गैंडे से भिड़ जाने में उसे गुरेज नहीं था। वत्र्यसेन ने पुल की रस्सियों को कसकर पकड़ लिया, उसकी टांगें कांप रहीं थीं। वत्र्यसेन की व्यवहारिक बुद्धि कहती थी, परिस्थिति भयानक होने पर गलत साबित होने का भय जाता रहता है।

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आयन के पेट से उस विशालकाय गैंडे की सींग कुछ इंचों की दूरी पर रह गई थी। आयन के पास बचाव का पैंतरा नहीं था। गैंडे की टक्कर उसे लगने ही वाली थी।
अचानक गैंडे के आगे के दोनों पैर जमीन में रगड़ गए। पैरों में गतिअवरोधक आ गया हो जैसे। लकड़ी के पुट्ठों से बनी पुल की सतह पर गैंडे के खुरों की भारी रगड़ हुई, जिसकी आवाज ने वहां उपस्थितों के कानों को पीड़ा दी। दु्रत गति से दौड़ता गैंडा रुक गया, लेकिन उसकी सींग आयन के पेट में घुस चुकी थी। आयन के हाथ हवा में ऊपर उठ गए, वो कलप गया किंतु दर्द की आवाज नहीं निकली।

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उसी क्षण गैंडे के पीछे पुल के छोर पर फैले सफेद कोहरे से एक लंबा-चौड़ा साया उनकी ओर बढऩे लगा। उस आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी के कंधे फैले हुए थे। बाल हल्के घुंघरालू, बिखरे हुए और स्वर्णिम थे। साफ लंबे चेहरे पर नुकीली नाक और चौड़ा जबड़ा उसे प्राचीन योद्धा की तरह चित्रित कर रहे थे। मटकती नीली आंखें विशेष प्रभाव से युक्त थीं। उसने गहरा भूरा लबादा पहन रखा था। लबादे के सामने का हिस्सा कमर तक  उल्टे त्रिभुज के आकार में खुला हुआ था। कमर पर एक नीली बेल्ट बंधी थी। पैर नुकीले जूतों से सजे थे।
-" नमस्कार.. . विचार खोजी दल.. मुझे शाशी कहते हैं। ये गैंडा मेरा पालतू है। पता है इसका नाम क्या है?"

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उसका लहजा हंसोड़पन लिए था, पर आवाज कठोर थी।
गैंडे की सींग अब भी आयन के पेट में फंसी हुई थी।
अपनी लंबी ऊंगलियां फैलाते हुए उसने एक अंदाज में गर्दन को झटका देते हुए कहा- "ओह..गोबू, तुम कितने बिगड़ गए हो। लडक़े के पेट में अब तक सींग घुसा रखी है तुमने। 
उसने  आंखें उलटाकर नाटकीयता प्रदर्शित करते हुए गैंडे को पुचकारा- " दायरे में रहो.. . "
गैंडा, आयन के पेट से सींग निकालकर पीछे हट गया। विचित्र भाव-भंगिमा वाले उस व्यक्ति ने आयन के पेट पर हाथ फेरा। गैंडे की सींग घुसने से हुआ गहरा घाव गायब हो गया। आयन अचरज में डूब गया।

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उस विचित्र शारीरिक भाषा के प्रदर्शक ने अपनी जीभ होंठों के ऊपर लाते हुए कहा- "आयन नाम है तुम्हारा, बहुत अच्छा नाम है। जब तुम पूरी तरह मर जाओगे तब भी मैं तुम्हारा नाम याद रखूंगा । तुमने अपने साथियों को बताया नहीं, उस दिन पहाड़ी से गिरने के बाद क्या हुआ था..! अपने मित्रों के साथ छल न करो।

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आगे बढक़र वो वत्र्यसेन के पास पहुंच गया। वत्र्यसेन के कंधे पर हाथ रखते हुए उसने अपनी गर्दन को वही विशेष भाव-भंगिमा लिए झटका दिया और वारिका को ऊपर से नीचे तक सूक्ष्मता से देखने लगा - "वारिका.. . बड़ी कुरूप लग रही हो निर्वस्त्र होकर। तुम्हारा शरीर विकास की अवस्था में आ रहा है.. आया नहीं है..  और प्रेम में पागल होकर इस आयन के पीछे चली आई। इसे उस ढोंगी ममंत्र ने एक महीने का जीवन दिया है अपनी माया से। यह 30 दिनों से एक क्षण अधिक नहीं सांस ले सकता। महीनेभर बाद रुदन करना इसके शव पर।"

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गौरव का चेहरा गुस्से से लाल हुए जा रहा था। उसकी नाक सिकुड़ रही थी। शाशी ने भंवें ऊपर उठाते हुए उसे घूरा। गौरव उसकी ओर लपकने को हुआ। वो शाशी पर कूदकर हमला करना चाहता था।  इसके पहले ही शाशी ने गौरव की गर्दन पकड़ ली और उसका सिर धड़ से उखाडक़र हवा में उछाल दिया।
- "मैंने कहा था दायरे में रहो। सुनो वारिका.. . मुझे युवतियों को आवरण में देखना भाता है। आयन और वत्र्यसेन, तुम दोनों अब मेरे अनुचर हो। आवेश में आकर विरोध करने का परिणाम तुमने देख लिया। पहलवान के पुत्र की गर्दन से उसका धड़ अलग हो गया है। "

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वारिका के सामने गौरव का धड़ पड़ा था। सिर पुल के किनारे लुढक़ा हुआ था। आंखें बंद नहीं हुई थीं। लग रहा था कि अब भी वो वारिका की ओर देख रहा है। गौरव अपने जीवनकाल में एक साहसी लडक़ा था। पहलवानों के वंश से होने की वजह से शरीर और मानसिकता से मजबूत।
शाशी ने अपना लबादा उतारकर वारिका पर फेंक दिया।
-" इससे आवरित कर लो अपना शरीर। क्या देख रही हो उस मूर्ख दुस्साहसी के शरीर के दो भागों को? मैं इससे भी वीभत्स मार्ग जानता हूं यमलोक जाने के। तुम आभास करने की कामना रखती हो तो इन दोनों से कहो, मुझ पर आक्रमण करें।"

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शाशी पीछे पलटा। आयन की बंद मुट्ठियों और सिकुड़ते चेहरे से स्पष्ट था कि उसके प्रिय मित्र के मृत होने का शोक, क्रोध में बदल चुका है।
शाशी ने अपनी ऊंगलियां चेहरे के आगे घुमाते हुए उसे संबोधित किया- "अपने मित्र के समान साहस नहीं करना आयन। मुझमें इतना बल है कि मैं अपने एक नाखून से तुम्हारे हृदय का रक्त प्रवाह बंद कर सकता हूं। ब्रह्मांड के रचयिता से विनती है कि तुम्हें सद्बुद्धि प्रदान करें। "

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शाशी ने तीनों पथिकों को सामूहिक संबोधन दिया- "तुम सब पहले यह जान लो कि विचार खोज यात्रा जीवन से पलायन का नाम है। जीवनयापन के साधन जुटाना मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ विचार है। इसके अतिरिक्त अन्य विचार वे खोजते हैं, जिन्हें स्वयं की साधन जुटाने की क्षमता पर संदेह होता है। जीवन एक भ्रम है और यह ब्रह्मांड का सर्वाधिक महान सत्य है। भ्रम बुराई नहीं है। ब्रह्मांड के सत्य को स्वीकारते हुए हमें भ्रम में बने रहना चाहिए। "
"बड़े से बड़े ज्ञानी और विद्वान दूसरों को उपदेश देते हैं किंतु स्वयं के चारों ओर भ्रम रचते हैं। "

- " यह भी सत्य है कि हर काल में कुछ अज्ञानी जन्म लेते हैं जो मानव जाति को भ्रम के दायरे से दूर रहने का मार्ग दिखाते हैं। कष्ट से भरा, त्याग से परिपूर्ण विचार खोज अभियान संचालित करते हैं। मैं घृणा करता हूं इन तत्वों से। जीवन में भ्रम का दायरा सरल और सुखदायक है। यथार्थ से स्वयं को छिपा लेना कष्टकारी नहीं है।
शाशी का स्वर गहराने लगा- ममंत्र के पास सहस्त्र मंत्र हैं। मेरा एक ही मंत्र हैं- स्वयं भ्रम में रहो और विरुद्धार्थियों को इस भ्रम के दायरे में लाओ। जीवन मंत्र यही है। स्थायी विचार यही है। समस्त संसार इसी व्यवस्था से चलता है।"
" जिस मानव ने अपने भ्रम का दायरा जितना बढ़ा लिया, वह उतना ही बलवान, उतना ही शीर्षस्थ है। जबकि तुम उस विचार खोज के अभियान में आगे बढ़ रहे हो, जिसका संसार की अधिकांश मानव जाति को अंशमात्र ज्ञान नहीं है। "
शाशी ने पहलू बदला- " दायरे में रहो। मैंने ये दायरा शब्द उत्तर क्षेत्र के देशों का भ्रमण करते हुए सीखा है। तुम मुझसे सीख लो। दायरा अर्थात सीमा। भ्रम का दायरा बह्मांड से भी अधिक विशाल है। अतएव मेरे अनुचर बनकर, दायरे में रहो.. "
-" तुम नीच हो शाशी।" 
लगा जैसे आकाशवाणी हुई।

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 शाशी के सम्मुख एक चमकीली रोशनी उभरने लगी, जिसने मानव आकार ले लिया। मुख पर दिव्यता, केशरहित शीश व पतला शरीर। सावन मास के काले बादलों से मिलता गहरा रंग। पूरा नग्न शरीर लिए हुए दिव्यात्मा।
शाशी की नीली आंखें चौंधियाने लगीं-" अंतत: तुम आ गए ममंत्र.. इस लकड़हारे के बेटे को जीवन देने के पश्चात तुम लुप्त रह भी नहीं पाते।"
दिव्यात्मा का स्वर स्थिर होकर गूंजा , ध्वनि अब भी ऊपर आकाश से आती लग रही थी-" तुम हीनता की पराकाष्ठा पर हो शाशी। "
- "मैं पराकाष्ठाओं का प्रेमी हूं ममंत्र। चाहूं तो लकड़हारे के बेटे को इस घड़ी समाप्त कर दूं। तुम इसे दूसरी बार जीवन नहीं दे पाओगे। तुम मुझे नहीं मार सकते और न ही मैं तुम्हें। ब्रह्मांड के रचयिता ने हमारे शीतयुद्ध को लचीलेपन के साथ गढ़ा है। चूंकि हम एक-दूसरे का वध नहीं कर सकते तो हमें समझौता करना होगा। यह हम पूर्व से ही करते आ रहे हैं। अन्यथा इनमें से कोई भी जीवित नहीं रहेगा। "
- "और इस समय का समझौता क्या है? "
- " कितना सटीक अभिनय करते हो तुम ममंत्र। मुझसे अधिक पारंगत हो गए हो या इस कच्ची उम्र में स्मरण शक्ति क्षीण हो रही है तुम्हारी! मुझे वारिका के गर्भ में अपना जीवसूत्र चाहिए। तुम तो अवगत हो, मेरी नपुंसकता से। ब्रह्मांड के रचयिता ने मेरी देह की रचना करते हुए सारे अंगों को प्रकृति की सुंदरता से भर दिया। वे मुझे आकार देने में इतने रम गए कि मेरे अस्तित्व को वो अंग ही नहीं दिया जिससे कामनाएं पूरी होती हैं। "

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शाशी ने ममंत्र की ओर ऊंगलियों की नोक बनाते हुए कहा-" तुम्हें देखो, काले-कुरुप, तुम नंगे घूमते हो। काम वासना को जीत लिया है तुमने। तुम्हें जीवसूत्र की आवश्यकता नहीं। तुम अंतर्मन में गुंजायमान होकर मानव को वश में कर लेते हो। "
ममंत्र ने उसकी बात काटी- "मैं उन्हें वश में नहीं करता। मैं उन्हें विचार खोज के लिए प्रेरित करता हूं। "

शाशी ने होंठ भींचते हुए ममंत्र को नकारा-" नर्क में गया तुम्हारा ध्येय। तुमसे जिह्वा युद्ध करने से अच्छा है कि मैं इन पथिकों को अपने ध्येय से परिचित करा दूं। जानती हो वारिका, मैं गर्भधारण की क्रिया के संक्षिप्त काल में ही अपना जीवसूत्र प्रविष्ट करा सकता हूं। मेरी सभी संतानें इसी तरह जन्मीं हैं। वे भी नपुंसक हैं परंतु उन्होंने अपने प्रयासों से भ्रम का साम्राज्य बना लिया है, जिसका सम्राट हूं मैं। तुम सरीखे मूर्ख इस साम्राज्य से नासमझी में विद्रोह करते हैं। ममंत्र से प्रभावित होकर विचारों की तलाश में निकलते हैं तब मुझे क्रोध आता है। देखो मेरी आंखें इसी क्रोध के कारण लाल होकर नीली पड़ गईं। "
-"आह.. इस आपाधापी में एक जानकारी बतानी रह गई। मैं नीली आंखों वाला दृष्टिहीन हूं। मुझे जीवंत अभिनय में गहन रुचि है। अपनी अभिनय क्षमता का उल्लेखनीय प्रदर्शन करते हुए मैं मूर्खों के सामने में दिव्यदृष्टिधारित होने का भ्रम पैदा करता हूं। "

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- "मेरे नेत्रों में ज्योति नहीं है। इनका नीलापन मेरे आंसुओं से बना है। आकाश और समुद्र की नीलिमा मेरे नेत्रों में देखो। ममंत्र यह रहस्य जानता है। देखा मेरा विराट हृदय, मैंने तुम मूर्खों को भी इस रहस्य से जोड़ लिया।
 जानते हो मैं फिर किस तरह संसार, मनुष्य, जीव-जंतु, आग-पानी, उनकी क्रिया-प्रतिक्रिया और खतरे का अनुभव करता हूं? मेरे नेत्रों का काम मेरे कान करते हैं। मेरे कानों की क्षमता मेरे संपूर्ण भ्रम से अधिक है। मैं तुम्हारे हृदय स्पंदन की ध्वनि का अतिसूक्ष्म स्वर भी सुन सकता हूं। इस तरह मैं एक दिव्यदृष्टियुक्त मानव से अधिक शक्तिशाली हूं। "
-" वारिका मैंने तुम्हारे शरीर को नहीं देखा लेकिन उससे टकरा रही वायु की ध्वनि से जान लिया कि तुम्हारे गुप्त अंग कितने विकसित हैं!"

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वारिका को अपने निर्वस्त्र होने पर अत्यधिक लज्जा आई। शाशी की घृणास्पद बातें सुनकर ममंत्र के मुख पर आग का ताप आ गया। शाशी  को उस ताप का अनुभव हुआ। उसकी गहरी आवाज में बचाव के सुर आने लगे- "तुम इन्हें आज्ञा दो मेरा प्रस्ताव स्वीकारने के लिए अथवा उपाय नहीं बचता। मैं इन तीनों को सदैव के लिए मृत्युनिद्रा देने जा रहा हूं।"
-" रुक जाओ.. शाशी। वारिका और वत्र्यसेन विवाह करेंगे। "
वारिका और वत्र्यसेन, ममंत्र के इस वाक्य को सुनकर सकते में आ गए। वारिका के शरीर में खून की एक बूंद  भी उस वज्राघात से नहीं बची। वत्र्यसेन झुंझला गया। वारिका ने ममंत्र नामक उस दिव्य मनुष्य की ओर देखा और उसे एक अलौकिक आभास होने लगा। उसके अंतर्मन में ममंत्र का स्वर गूंजने लगा।
- "तुम्हारा वत्र्यसेन से विवाह निश्चित है। यह नियति है। इसे ब्रह्मांड के रचयिता ने निश्चित किया है। यह विचार खोज यात्रा में तुम्हारी परीक्षा का पहला भाग है। "
ममंत्र का यही गुण था। वे अंतर्मन में प्रवेश कर सकते थे। एक निर्धन लकड़हारे के पुत्र आयन को उन्होंने इसी माध्यम से विचार खोज यात्रा के लिए प्रेरित किया था।
ममंत्र आदर्श मानव की पहचान कर उसे विचार खोज यात्रा के लिए चुनते थे। शाशी के अंतर्मन में उनका प्रवेश नहीं हो सकता था क्योंकि शाशी का अंतर्मन था ही नहीं। उसने भ्रम को प्राण देने के लिए अपने अंतर्मन की हत्या कर दी थी। उसे अंतर्भाव नष्ट करने की यह कृपा नपुंसकता की भरपाई के रूप में प्राप्त हुई थी।

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शाशी ने वत्र्यसेन का हाथ पकड़ कर उसे खींच लिया - "तुम्हारा और वारिका का विवाह तत्काल होने जा रहा है, इसी पुल पर। यह गंधर्व विवाह होगा। ब्रह्मांड के रचयिता को साक्षी मानकर परिणय बंधन होगा, यहीं इसी पुल पर। तत्पश्चात द्रुतगति  से तुम्हें शारीरिक क्रिया करनी होगी, यहीं इसी पुल पर । "
ऊंगलियां घुमाते हुए शाशी ने तंज में कहा- " तुम दोनों ने वस्त्र नहीं पहने, इससे क्रिया में कठिनाई भी नहीं होगी.. "
वारिका ने ब्रह्मांड के रचयिता से मन ही मन प्रार्थना की- हे परमात्मा मुझे हृदयाघात प्रदान करें। मुझे मृत्यु का आशीष दें।"
उसके अंतर्मन में ममंत्र के स्वर आने लगे - "वारिका.. यह मृत्यु का समय नहीं है। वत्र्यसेन विचार खोज यात्रा का संभावित मार्गदर्शक है। तुम विचार खोज यात्रा के पथ पर आगे बढ़ो। "
-"तुम्हें ईश्वर से साक्षात्कार करना है..उन्हें देखना है.. ब्रह्मांड के रचयिता ने इसके लिए विचार खोज यात्रा का उपाय दिया है..ईश्वर तुम्हें इसी यात्रा के माध्यम से मिलेंगे।  विचार खोज यात्रा का प्रत्येक पथिक अपने जीवनकाल में ही ईश्वर को साक्षात देखता है, अपने सम्मुख। तुम्हें ईश्वर को जानना है, वो कैसे हैं? तो विचार खोज यात्रा की हर बाधा को विधि का विधान मानो, ईश्वर तुमसे मिलेंगे..उन्हें तुम देखोगी.".

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वारिका अनिश्चय में थी। उसने वत्र्यसेन को हल प्राप्त करने की संभावना की दृष्टि से देखा। वत्र्यसेन स्वयं असमंजस में था। उसने ज्ञानप्राप्ति के लिए जीवनभर ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। शारीरिक क्रिया तो उसके इस जन्म की इच्छा सूची में अंतिम स्थान भी नहीं रखती थी। वह हृदयहीनता की सीमा तक व्यवहारिक था।

 वारिका आयन से प्रेम करती थी। भले ही शाशी ने उसे बताया था कि आयन महीनेभर ही जीवित रहेगा।

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अपनी चाल सफल होती देख शाशी प्रसन्न था। उसने ममंत्र के केशरहित सिर पर हाथ फेरा और पुल के उस हिस्से की ओर बढ़ गया जहां गौरव का सिर पड़ा था। उसने सिर को केशों से पकडक़र उठाया और उसे धड़ के समीप ले आया। उसने ममंत्र को गंभीरता से देखा। शाशी ने सिर को धड़ से यथावत जोड़ दिया। गौरव के जीवन के दो छोर मिल गए। मृत शरीर में जीवन जागने लगा।


आगे क्या हुआ.. पढ़ें चौथे एपिसोड में

Saturday 17 September 2016

अफ्रेड टू बी रांग part 2

अफ्रेड टू बी रांग

2. विचार खोज यात्रा

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- ‘‘ममंत्र, पहाड़ी से मेरे गिरने के बाद मेरे दोस्त क्या सोच रहे थे? ’’
- ‘‘मुझे लगता है वे सभी तुम्हारे गिरने में अपनी या तुम्हारी गलती ढूंढ़ रहे थे। अर्थ यह नहीं कि वे दुखी नहीं थे। दुख से पहले ज्यादातर लोग अपने गलत साबित होने की वजह   को  मिटा देना चाहते हैं। वारिका को महसूस हो रहा था कि तुम उसकी आवाज पर उठने को हुए और गिर पड़े थे। वत्र्यसेन के चिंतन में गलती तुम्हारी असावधानी थी। उसे तुमसे अधिक विचार खोज यात्रा की चिंता थी। वह बुद्धिमान है, जानता है कि यात्रा अलौकिक ज्ञानप्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन है। वह अपने जीवन को दूसरों से श्रेष्ठ बनाने के अभियान को प्राथमिकता देता है। कह सकते हो कि वह स्वार्थी है।
तुम्हारा सच्चा मित्र गौरव मान रहा था कि विचार खोज यात्रा का नायक इतनी ऊंचाई से गिरकर बचा नहीं होगा। वो तुम्हें मृत अवस्था में देखने के लिए मन कड़ा कर चुका था।’’
-‘‘ ममंत्र, गौरव गलत होने के विषय में नहीं सोच रहा था क्या?’’
- ‘‘हां, वह सोच रहा था। उसकी सोच का दूसरा पक्ष भी था, जिस बारे में उसे बाद में ध्यान आया होगा। दूसरा पक्ष यह है कि उसने लगभग मान लिया था कि तुम मर गए होगे। उसका सामान्य ज्ञान कह रहा था कि इतनी ऊंचाई से गिरकर बचना संभव नहीं। उसके अवचेेतन मस्तिष्क में यह बात जरूर बैठी होगी कि अपने प्रिय मित्र की मौत को लेकर स्थायी मानसिक भाव बना लेना भी एक गलती है। यह उस प्रकार का अनुभव है जिसमें हम अपने गलत साबित होने पर खुश होते हैं और अपनी छोटी व नकारात्मक सोच पर खीझते हैं।’’
ममंत्र का कहना जारी रहा- ‘‘मैं जानता हूं, तुम यह जानते हो कि अवचेतन मस्तिष्क हमारे अनुभव का सार समेटे होता  है। अनुभव, जिंदगी में हुई अच्छी-बुरी घटनाओं द्वारा दिया गया अनमोल उपहार है। अनुभव हमारा अपना खजाना होता है, जिसे हम बांट सकते हैं, किसी को पूरी तरह प्रदान नहीं कर सकते। ’’
- ‘‘आपने यह नहीं बताया कि जिंग और त्रिशा गलती के बारे में क्या सोच रहे थे!’’
- ‘‘जिंग ने गलती के बारे नहीं सोचा। वह परिणाम देखना चाहता था। तुम्हारे गिरने पर वह नीचे की ओर भागा। दौड़ते हुए वह स्वाभाविक सोच में था, जिसे हम सामान्य कह सकते हैं। दौड़ते हुए वह सोच रहा था कि तुम्हारा क्या हुआ होगा?  वह जल्द से जल्द तुम तक पहुंच जाना चाहता था। वह गलती के बारे में नहीं सोच रहा था। उसे इसकी परवाह नहीं थी कि किसकी गलती थी। वह अपनी सुविधानुसार इसके लिए किसी को भी गलत ठहरा सकता था। वह तो खुश था कि तुम्हारे नहीं रहने पर विचार खोज यात्रा प्रारंभ नहीं होगी। तुम जान लो आयन कि जिंग ने तुमसे पहचान के बाद किसी क्षण तुम्हें अपने मित्र की दृष्टि से नहीं देखा। उसे त्रिशा में रुचि थी। वह तुम सबके बीच केवल त्रिशा के लिए होता था।’’
- ‘‘ममंत्र, त्रिशा .. . वो कहां है?’’
-‘‘ त्रिशा के बारे में तुम अपनी यात्रा के दौरान जान जाओगे आयन। ’’
- ‘‘आशंका है मुझे ममंत्र, मेरे साथी एक न एक दिन मेरा भी सच जान लेंगे। ’’
- ‘‘तुम गलत साबित होने के डर को मौत के बाद भी जी रहे हो आयन। तुम मृत हो यह मत सोचो। तुम यात्रा करो। ’’
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शाम होने का संकेत मिल रहा था। चारों मित्र उस झरने के पीछे पहुंच चुके थे, जहां से पहाड़ी खत्म होती थी। वे चले थे तब दोपहर थी। हरे-भरे इलाके में शाम झट से रात में बदल जाती थी। पहाड़ी के किनारे पर उन्हें मोटी जंगली रस्सियों पर झूलता एक पुराना पुल दिखा। वह पुराना जरूर था लेकिन कमजोर प्रतीत नहीं हो रहा था। पुल के उस ओर पहाड़ों में तैरने वाला सफेद कोहरा फैला हुआ था। वीरान नजारा रहस्यमयी था।
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कुत्सित विचार

पुल के नजदीक आकर आयन पीछे पलटा। वत्र्यसेन का चेहरा कौतुहल का नक्शा बना हुआ था, वह इच्छुक था। गौरव को आयन के बोलने की प्रतीक्षा थी। वारिका में स्थिरता समाई थी। मानो वह मोहपाश में बंधी आई हो।
- ‘‘इस पुल के बारे में मुझे इतनी ही जानकारी है कि उस पार विचारों का भंडार है। हम सभी के लिए एक विचार बना है जो हमें वहां कहीं मिलेगा। हमें शाम होने के पहले उस धुंधलके में प्रवेश कर जाना है। ध्यान रहे, डरना नहीं है। ’’
- ‘‘हम शुरुआत से ही तुम पर भरोसा करते आए हैं। हमने कभी नहीं पूछा कि तुम्हारी जानकारियों का स्रोत क्या है। तुम इस तरीके से क्यों बोल रहे कि शाम से पहले धुंधलके में जाना होगा, हमें तो केवल यह पुल पार करना है!’’

-‘‘नहीं वत्र्यसेन, कठिनाई यहीं से आरंभ होती है। हम सभी को अपने कपड़े यहीं छोडऩे होंगे। हम वहां बिना कपड़ों के पूरी तरह निर्वस्त्र प्रवेश करेंगे। यही नियम है।’’
वारिका ने झल्लाते हुए आयन को देखा। आयन ने धीरे से पलकें नीची कीं। वत्र्यसेन अपने कपड़े उतारने लगा। गौरव ने झिझकते हुए अपनी चमकदार शर्ट से शुरुआत की। इसके बावजूद सबसे पहले आयन निर्वस्त्र हुआ। वह वारिका की ओर देखे जा रहा था।
वारिका ठिठकी हुई थी।
- ‘‘मुझे जहां तक मालूम  है लड़कियों के लिए यह नियम लडक़ों के बराबर ही है। तुम कपड़े उतार लो। हम तुम्हारी ओर नहीं देखेंगे। समय के सबसे छोटे से छोटे अंश के लिए भी नहीं। बहुत जरूरत हुई तो मैं देख लूंगा लेकिन किसी भी प्रकार का संकट आए, चाहे प्रलय हो, ये दोनों तुम्हारी ओर नहीं देखेंगे। अन्यथा इन्हें गलत साबित होने का पाप भोगना होगा। ’’
वारिका को छोडक़र सभी के चेहरों पर हंसी आ गई। वत्र्यसेन ने आगे जोड़ा- ‘‘और हम फिलहाल तो गलत साबित होने से डरते हैं, समझ लो कि यह भय ही हमारी आंखों से तुम्हारी रक्षा करेगा।’’
अब तो हंसी ठहाकों में बदल गई।
वारिका भी मुस्कुराने से खुद को रोक न पाई। आयन की ओर विश्वास से देखते हुए उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए। सभी लडक़ों ने उसकी ओर अपनी पीठ कर ली थी।
आयन के अंतर्मन में ममंत्र का स्वर गंूजने लगा- ‘‘सुंदर
स्त्री को बिना वस्त्रों के देखना भी एक विचार है। यह मनुष्य की मानसिकता पर है कि वह एक वस्त्रविहीन नारी को किस विचार के प्रभाव में आकर देखता है। स्त्री का साथ उसका जीवन उद्देश्य है तो वह उसे साथी के रूप में देखेगा। उसका रूप निहारेगा। स्त्री उसका स्थायी विचार हो जाएगी। पुरुष उसके समक्ष गलत साबित होने के भय से मुक्ति पा लेगा। संसार ऐसी करोड़ों प्रेम कहानियों से भरा पड़ा है जिनमें एक पुरुष किसी स्त्री का जीवनभर के लिए साथ पाने के स्थायी विचार को अपना लेता है। वह अपनी संगिनी के अलावा किसी दूसरी स्त्री की कल्पना नहीं करता। यह जीवनसंबंध में  मोक्ष है। ’’
 ‘‘इस विचार का दूसरा पक्ष कुरूप है। मनुष्य यदि वासना के वश में हो तो उसे सर से पांव तक ढंकी औरत भी वस्त्रविहीन नजर आएगी। यह कुत्सित विचार है। इसका समाधान नहीं है। अत: हमें कुत्सित विचारों का त्याग करना चाहिए।’’
‘‘विचार खोज यात्रा का अर्थ यह नहीं है कि हम स्थायी विचार चुनकर उन्हें अच्छाई और बुराई के मापदंड पर न परखें। कुत्सित विचार अपराध होते हैं।’’
ममंत्र का स्वर बंद हो गया। आयन पीछे घूम गया। उसने निर्विकार भाव से वारिका को देखा। मन में उसके साथ की कामना जागी। अच्छा विचार, पर स्थायी नहीं। आत्मा को जीवित का साथ नहीं मिल सकता। वारिका लजा गई - ‘‘तुमने अपना बनाया नियम ही तोड़ दिया आयन? ’’
- ‘‘नहीं वारिका, मैंने गलत साबित होने के एक भय पर विजय पा ली है। ’’
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वत्र्यसेन ने भी वारिका की ओर चेहरा घुमा लिया। तुरंत ही गौरव पलटा। वारिका हाथों से शरीर को छिपाते हुए नीचे  बैठ गई।
सहज लहजे में गौरव बोला-‘‘ घबराओ नहीं वारिका, तुम मेरी और इस कंकाल वत्र्यसेन की बहन जैसी हो। जान लो कि हम  चेहरे से नीचे तुम्हें नहीं देख पाएंगे। हां, तुम अद्वितीय सुंदरी हो। इसमें हमारी एकराय है। दुख है कि हम एक सुंदरी खोजने की यात्रा पर नहीं निकले हैं। हमें अपने लिए विचार खोजना है। ’’
वारिका को खिलखिलाने का अवसर मिला।
एकबारगी  आयन को लगा कि क्या ममंत्र का स्वर उन दोनों के दिमाग में भी गंूज रहा था। फिर उसे याद आया कि ममंत्र ने कहा था मैं केवल तुमसे संपर्क में रहूंगा। ममंत्र झूठ नहीं कह सकते। वे विश्वगुरु के समान हैं।
आयन ने सोचा उसके दोनों मित्र उद्देश्य प्राप्ति के प्रति उससे अधिक सचेत हैं। स्त्री शरीर उनके लिए गलत साबित होने का भय नहीं उत्पन्न करता। वे इस कुत्सित विचार से मुक्त हैं।
तीन नौजवानों के इस व्यवहार से वारिका में दृढ़ता आ गई थी। निर्वस्त्र होने का संताप उसके मन से जाता रहा।
शायद उन चार नौजवान यात्रियों को अपने-अपने अनुभव और ज्ञान से विचार खोज यात्रा का अर्थ समझ आ गया था।
कुत्सित विचारों का त्याग भी गलत साबित होने के भय पर विजय प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।
चारों पुल पर धीरे-धीरे चलने लगे। पहाड़ों को लांघकर आ रहीं ठंडी हवाएं उनके शरीर को कंपकंपा दे रहीं थीं। पुल एकाएक जोर-जोर से हिलने लगा। संतुलन बनाना मुश्किल हो रहा था। सबसे पहले पुल पर उभरती आकृति को गौरव ने देखा।
वो चिल्लाया-‘‘ हे भगवान, ये तो गैंडा है। हमारी तरफ ही आ रहा है ..बच नहीं सकते.. ’’
क्रमश:
क्या हुआ आगे, पढि़ए अगले अंक में
1

अफ्रेड टू बी रांग (गलत साबित हो जाने का डर) part 1

 पहले तो धन्यवाद आप सभी का। मुझे इतने कम समय में स्वीकारने के लिए। अफ्रेड टू बी रांग (गलत साबित हो जाने का डर) को मैंने बहुत पहले लिख लिया था। आप इस कहानी को अपनी यात्रा के रूप में पढ़ें। अगर पसंद आए तो इसे शेयर जरूर करें। यह करीबियों के लिए एक अच्छा उपहार है। 

अफ्रेड टू बी रांग (गलत साबित हो जाने का डर)


 1.आरंभ

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‘‘सारी जिंदगी हमारा सबसे बड़ा डर होता कि हमसे कोई गलती न हो जाए। हमारी तरह गलतियों की भी अपनी नियति होती है।  गलत साबित हो जाने के डर को जीत लेना जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य होना चाहिए।
मृत्यु के बाद की स्थिति को नहीं जाना जा सकता।  हम गलती न करने के डर को जीत जाएं तो यह जिंदा रहते मोक्ष के मिलने जैसा है। ’’
- ‘‘ममंत्र, क्या जानबूझ कर की गई गलतियां भी इस श्रेणी में आती हैं?’’
- ‘‘जानबूझकर  मूर्खता होती है। गलती का अपना वजूद होता है। वह होने के लिए होती है। हमें गलत साबित होने के डर को मिटाना चाहिए।’’
- ‘‘मैं क्या करुं ममंत्र, अपना डर जीतने के लिए।’’
-‘‘ विचारों की तलाश में निकल जाओ। ध्यान रखना इसका कोई समय नहीं होता। जब जी में आए निकल पडऩा। ’’
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दोस्तों की बहस गरम हो गई थी। बात नकलीपन से छिड़ी थी, जो हाथापाई में बदलती दिख रही थी। हमउम्र दोस्तों के उस समूह में दो लड़कियां भी थीं। एक थोड़ी ज्यादा हसीन थी। नाम था वारिका। वारिका का कद सामान्य से अधिक था। आंखें पीपल के पत्तों की तरह एक लचकदार कोण बनाती थीं। उसकी खूबसूरती में गहरे भूरे लंबे बाल और छरहरे-सांवले बदन का आकर्षण शामिल था। वारिका ने झगड़े पर उतारू सुघड़ शरीरवाले युवक की बांह जोर से पकड़ी और उसे झिंझोड़ा- ‘‘तुम विचारों की लड़ाई इसी तरह लड़ोगे क्या?’’
युवक का नाम जिंग था। उसने वारिका की प्रतिक्रिया देखकर कदम पीछे हटा लिए। दरअसल बहस को मुठभेड़ में बदलने की कोशिश जिंग ही कर रहा था।
वारिका ने देखा कि जिंग के पीछे हटने से वत्र्यसेन और गौरव भी शांत होने की मुद्रा में आने लगे। वे जिंग के उकसावे में आ गए थे, उनके चेहरे पर इस कृत्य का पश्चाताप दिख रहा था।
वारिका को आयन नहीं दिखाई दिया। आयन उनसे दूर एक जमीन में फंसी हुई चट्टान पर बैठा पहाड़ी से नीचे देख रहा था। उसे वहां के तनाव में दिलचस्पी नहीं थी। वह हमेशा की तरह शांत बैठा था, अपनी सोच में गुम।
वारिका ने हंसते हुए माहौल को हल्का किया- ‘‘अच्छा ये बताओ, बहस किस बात की थी? कहीं तुम सब फिर विचारों की तलाश करने की योजना तो नहीं बना रहे।’’
दुबले-पतले और झड़ते बालों की वजह से परेशान वत्र्यसेन ने कहा- ‘‘हां, विचार खोज यात्रा शुरू हो, इससे पहले ही ये जिंग हमारा मजाक उड़ाने लगता है। इसे लगता है आध्यात्मिक यात्राएं पाखंड हैं। यह गलत तरीके से अपने तर्क प्रस्तुत करता है। इसकी कोशिश लड़ाई की होती है ताकि हम यात्रा का मकसद भूल जाएं। ’’
गौरव ने हामी भरी-‘‘ वारिका तुम जानती हो जिंग को। उसे हमें भडक़ाने में मजा आता है। शायद ये सब वो अपनी संतुष्टि के लिए करता है। बदन दिखाना उसकी इकलौती काबिलियत है।’’
उसने यह कहते हुए उसने जिंग की ओर उठती भंवों से इशारा किया। जिंग उस इलाके के जमींदार का बेटा था। बात सच थी कि उसे अपने बलिष्ठ शरीर को दिखाने में रोमांच महसूस होता था। जमींदारों का खून होने की वजह से वह गर्मी जल्दी खाता था और अपनी बात मनवाने के लिए हिंसा पर उतर आता था। उसके लिए सारी चीजें आसान थीं, इसलिए उसने कभी बदलाव की आवश्यकता महसूस नहीं की।
 जिंग ने गलती मानते हुए पहल की- ‘‘देखो, मैं तुम सभी का दोस्त हूं। हम सभी यहां खुश हैं। क्यों हम उस बहस में उलझ रहे हैं, जिसका नतीजा नहीं मिलनेवाला? विचारों की खोज कोरी कल्पना है। हमें वहीं खुश रहना चाहिए जहां हमने जन्म लिया है। ईश्वर हमारे लिए रास्ते बनाता है। हम क्यों इतिहास में दर्ज होने के लिए विचार खोज रहे हैं! ’’
गौरव ने उत्तर दिया-‘‘ विचार हमारे होने का कारण बताएंगे जिंग। तुम्हें दौलत और सुख के साथ सोच भी मिली होती, तो समझ जाते।’’
जिंग चिढ़ गया। वारिका ने एक बार फिर उसकी भुजाओं को जोर से पकड़ा। जिंग ने चेहरा नीचे झुका लिया। वारिका ने आयन को आवाज दी- ‘‘तुम आ रहे हो? यहां लड़ाई चल रही है और तुम तलहटी के नजारे देखने में खोए हो! इतना खुद में रहना ठीक नहीं। ’’

आयन ने उसकी ओर देखा। वारिका उससे प्रेम करती थी। आयन सामान्य कद-काठी होने के बावजूद स्त्रियों को पसंद आनेवाली छवि रखता था। उसमें पौरुष सौंदर्य भरा हुआ था। उसके हल्के घुंघरालू बाल कंधों तक गिर रहे थे। उसका धूसर कुर्ता गर्दन के नीचे से पूरी छाती तक खुला हुआ था। साथ ही उसने पहाड़ों में पहना जानेवाला आरामदायक पजामा पहन रखा था। उसका वेश पहाड़ी पोशाक वाले युवा संत सा था। 
आयन का ध्यान वारिका की ओर अधिक था, चट्टान के उस हिस्से पर कम, जहां वह उठने के लिए हथेली रखने जा रहा था। आयन की हथेली फिसल गई। फिसलने से लगा झटका इतना तेज था कि तकरीबन 500 मीटर की ऊंचाई से आयन का शरीर नीचे खाई में जा गिरा।  एक सेकंड नहीं लिया हादसे ने होने में।
वहां खड़े सारे लोग स्तब्ध थे। वारिका की आंखें फटने को आ रहीं थीं। जिंग ने पहले हरकत की। वो पहाड़ी से नीचे को जाती पगडंडी पर दौडऩे लगा।
वारिका के आंसू पहाड़ के झरने से बिछड़ी धाराओं की तरह बह रहे थे।
इसी बीच वत्र्यसेन ने ध्यान दिया कि उनके बीच त्रिशा भी नहीं थी। त्रिशा उनके मित्रमंडल की छठीं और सबसे कम उम्र सदस्य। परियों सा भोला चेहरा रखनेवाली दूध के रंग की त्रिशा इस अनायास कालचक्र में गायब थी।
एकाएक दो बड़ी घटनाएं हुईं थीं। त्रिशा के मामले को गौरव मामूली मान रहा था। वो इसे घटना के रूप में नहीं देख रहा था। उसे चिंता थी कि आयन का क्या हुआ होगा?
वत्र्यसेन से वो नीचे खाई में जाने की उम्मीद लगा रहा था। वत्र्यसेन ने ऐसी मंशा नहीं दिखाई। गौरव तो उसी समय जिंग के पीछे भाग जाना चाहता था। उसे वारिका की चिंता ने रोक लिया था। वारिका को संभालना वत्र्यसेन के बस का नहीं था। वत्र्यसेन शारीरिक रूप से जितना दुर्बल था उससे कहीं अधिक मानसिक तौर पर। वारिका बदहवास थी। गौरव को एक बार भी त्रिशा के नहीं होने से कोई खटका नहीं लगा। 
वत्र्यसेन को शून्य में देखता पाकर गौरव ने सोचा, तो क्या आयन मर गया होगा? इतनी ऊंचाई से गिरकर बचना चमत्कार ही होगा। उसने खुद को आयन की लाश देखने के लिए तैयार कर लिया। आयन उसका सबसे अच्छा दोस्त था।
तभी नीचे से जिंग की चीखती आवाज आई।
-‘‘नीचे आओ सब।’’
गौरव से पहले वत्र्यसेन ने वारिका को अपना हाथ दिया। जिंग की चीख से वारिका में हलचल हुई थी। तीनों तेजी से खाई की पगडंडी में चलने लगे।
नीचे आयन उन्हें सकुशल मिला। वारिका उसे देखकर चिंहुक उठी। उसकी तीखी नाराजगी का सामना करने से पहले ही आयन बोलने लगा- ‘‘हम अपनी विचार खोज यात्रा शुरू करने जा रहे हैं, आज, अभी, इसी समय से। कोई सवाल नहीं करेगा। नहीं तो ऊपर हुई बहस की तरह तलवारें खिंच जाएंगी। हम निकल रहे हैं।’’
वत्र्यसेन ने टोका- ‘‘लेकिन हमारे सामान, यात्रा के खर्च के लिए पर्याप्त रुपए, हमारे घरवालों की अनुमति और.. .
आयन ने मुस्कुराकर कहा- ‘‘बस.. बस.. रुक जाओ। इन्हीं कारणों से हमारी यात्रा शुरू नहीं हो पा रही। हम इन कारणों का अक्षरश: हल ढूंढ़ते रहे तो ये जिंदगी बीत जाएगी। विचार खोज यात्रा का पहला उसूल है स्वयं को भूलकर चल पडऩा। हम वैसे भी देर कर चुके हैं।’’
इस बार गौरव बोला-‘‘और त्रिशा..!!’’
आयन ने उसकी आंखों में आंखें डालकर कहा- ‘‘हम अपनी विचार खोज यात्रा अभी से शुरू करने जा रहे हैं। जो उपलब्ध नहीं हैं या जो इसमें शामिल नहीं होना चाहते, उनके लिए हम कुछ नहीं कर सकते.. !’’
आयन का इशारा त्रिशा और जिंग ही नहीं, वारिका की ओर भी था। मूलत: विचार खोज यात्रा उसकी, वत्र्यसेन और गौरव की योजना थी। वारिका, त्रिशा और जिंग उनके मित्रमंडल में होने की वजह से इस यात्रा की चर्चा का हिस्सा मात्र थे।
गौरव बोलना चाह रहा था, फिर चुप हो गया। असल में वो आयन से पूछना चाह रहा था कि इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं हुआ, कैसे?
आयन आगे बढऩे लगा। वत्र्यसेन ने एक आदर्श अनुशरणकर्ता की तरह उसके पीछे कदम बढ़ाए। गौरव उनकी ओर बढ़ा और पाया कि वारिका उससे पहले यात्रा पथ पर चलने लगी है। पीछे एक जोड़ी पांव ही अपनी जगह पर जस के तस बने हुए थे, जिंग के..
जमींदार का लडक़ा अपने इलाके का आसान जीवन छोडक़र नहीं जा सकता था। सुरक्षित जीवन ईश्वर हर किसी को नहीं देता, उसका मानना था। उसे यह सब अतिनाटकीय और अव्यवहारिक लगता था। उसने यह सीखा  था कि मनुष्य को वह स्थिति हासिल करनी चाहिए जहां पर गलतियों से नुकसान न हो।
पीछे खड़ा जिंग भी यह जानना चाहता था कि आयन बच कैसे गया? आयन ने उसे भी इस चमत्कार के बारे में नहीं बताया था! उसने खाई में पहुंचने के बाद आयन को झरने के कुंड से निकलते देखा था। वह घबराहट में आयन से सवाल कर नहीं पाया था।

ज़मीन से अचानक फूट पडऩेवाले अंकुर की तरह चार सदस्यीय दल की विचार खोज यात्रा शुरू हो चुकी थी।

वारिका के पीछे चल रहा गौरव आखिरकार त्रिशा के बारे में सोच रहा था क्योंकि उसे मालूम था विचार खोज यात्रा में जाने के बाद लौटना असंभव है..त्रिशा पीछे छूट गई...
‘विचार खोज यात्रा तो अनंत है.. गलत साबित होने के भय से मोक्ष दिलानेवाला सफर ’
.. क्रमश:
क्या है विचार खोज यात्रा- पढ़ें अगले अंक में.

Thursday 15 September 2016

आज तेरे जाने का दिन है.. . लिखने का मन नहीं है.. .


 मेरे बदन पर तेरे नाखूनों के निशान रुह तक कायम रहें
कांपती जिंदा चिताएं जलती रहें उस अंधेरी झोपड़ी में
जहां उन होठों को चुस्कियों में मैंने गले तक पिया था
 रात तेरे पास कहीं जिंदगी लेटी थी, मैं देर तक जिया था
फडक़ती तेरी पिंडलियों की एक नस खींच ली थी मैंने
लिफाफा बंद मोहब्बत कायदों से आजाद हो रही थी
तेरे जाने से अकेली पड़ीं ऊंगलियां भूल गईं हैं मुडऩा
आज तेरे जाने का दिन है, लिखने का मन नहीं है ।

लौटती बारिशों से सूखे बरामदे में सीलन आ रही है
तेरे गीले पैरों के निशानों को खोज रही है स्मृतियां 
बिखरा पड़ा है संभाली हुई तस्वीर का टूटा कांच भी
गुजरने की बेमानी दस्तक देती बंद घड़ी यहां लेटी है
तेरे सिलसिले टंगे हुए हैं पुराने साल के कैलेंडर में
बेखुदी में चादरें बुढ़ा रही हैं परदों की आड़ लेकर
कोरे कागजों में दस्तखत को तैयार हैं अल्फाज
आज तेरे जाने का दिन है, लिखने का मन नहीं है।
 अकेला कोई पेड़ होता है जलता हुआ जंगल में
जड़ों में उसके किसी नदी का खून उतरा होता है
बगावत है उन जड़ों की आखिरी नजारे के नाम
बागी सिसकारियां थमीं हैं लेकिन वो रो पड़ेंगी
रुका हुआ पानी बढ़ जाएगा तेरे रास्तों की ओर
सूखे गुलाबों के बागीचों में उड़ रही है नम हवा
 अंत में मेरी राख जान लेगी तेरे नहीं होने का पता
आज तेरे जाने का दिन है, लिखने का मन नहीं है।