( आर्टिकल में शाहरुख़ खान की फ़िल्म रईस के चर्चित संवादों का इस्तेमाल गुजरात के पतंग बाजार को समझाने के लिए किया गया है)
शुरुआत इस संवाद से "गुजरात की हवा में व्यापार है साहेब, इस हवा को कैसे रोकोगे..."
शुरुआत इस संवाद से "गुजरात की हवा में व्यापार है साहेब, इस हवा को कैसे रोकोगे..."
अगर आप गुजरात जा रहे हैं तो उत्तरायण (मकर संक्रांति) के आसपास जाइए। गुजराती मैनेजमेंट का ज्ञान हो जाएगा। जानकर आपको हैरत होगी कि गुजरात ने पतंगों के व्यवसाय से ही ब्रांडिंग की उड़ान भरी थी। गुजरात की हर जगह, हर चीज ब्रांड में बदल रही है लेकिन आप यहां सैलानी की तरह घूमकर जान जाएंगे कि 'हमारे तो जींस में बिजनेस है' कहनेवाले गुजरातियों का सबसे बड़ा ब्रांड उनकी पतंगें हैं। आप देश के किसी हिस्से में रहते हों, पतंगें गुजरात की ही उड़ाएंगे। शाहरुख़ खान की नई फिल्म रईस की शूटिंग गुजरात में हुई है और उन्होंने भी ब्रांड बनने के लिए खूब पतंगें उड़ाई हैं। अब 25 जनवरी को आ रही रईस के लिए हजारों पतंगें बनवाईं गई हैं, जिन पर फिल्म का नाम, रिलीज की तारीख और एक मौजूं संवाद लिखा हुआ है "अगर कटने का डर होता ना.. तो पतंग नहीं चढ़ाता, फिरकी पकड़ता।"
शाहरुख़ की फिल्म के लिए ऐसी हरे रंग की पतंगें तैयार करनेवालों में से एक कारीगर हैं अहमदाबाद जमालपुरा के शेख़ वसीम। उन्हें एक पतंग तैयार करने में 15 सेकंड भी नहीं लगते, एक दिन में चार हजार पतंगें बना लेते हैं। अपने काम के बारे में बात करते हुए भी वसीम कमानी मोड़ने और आंखों से पकड़ न आनेवाली हाथों की गति से उसमें रंगीन कागज लगाने में रत रहे। मुस्लिम बहुल जमालपुरा गुजरात की उस प्रसिद्ध काइट इंडस्ट्री का एक हिस्सा है जो सालाना हजार करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार करती है। वसीम कहते हैं " ऑर्डर में बहुत काम आता हैं, रईस की पतंगे भी आर्डर की हैं।"
गुजरात का पतंग उद्योग असंगठित है, बावजूद इसके इसे गुजरात की मूल अर्थव्यवस्था का सबसे आदर्श और अनुकरणीय घरेलू उ़द्योग माना जाता है। मुसलमान परिवार इस काम में अधिकार रखते हैं। वे परिवारसमेत पीढ़ियों से लगे हुए हैं । यहां की हर दुकान के पीछे एक मकान है, जहां बिना मशीन के 'कारखाने' हैं। अपनी दुकान में बैठे जुनैद कहते हैं "हमने अपनी अम्मा की अम्मा को भी यह काम करते देखा है।"
हिंदू भी इस कारोबार के करीबी साझेदार हैं, खुदरा व्यापार में उनकी बड़ी भूमिका है। इसे ऐसे भी देख सकते हैं कि मैन्यूफैक्चरिंग मुस्लिमों के हाथ है और खुदरा बाजार की बिक्री हिंदुओं के। यहां धर्म और मजहब के फर्क की बात नहीं दिखती।
इस पर भी रईस का एक संवाद फिट होता है "कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धरम (धर्म) नहीं होता।"
जमालपुर का पूरा इलाका तकरीबन सालभर पतंगों से रंगीन रहता है। आर्डर भी बारिश के कुछ महीनों को छोड़ बड़े ही आते हैं। दिल्ली और मुंबई से मांग ज्यादा रहती है। इन मेट्रो शहरों में भी गुजराती पैटर्न का पतंग उत्सव होने लगा है। नोटबंदी के असर की बातें गुजरात के पतंग बाजार में सुनने को मिली। पतंगें राजनीतिक संदेश और व्यंग्य लिए हुए भी सजी थीं। ढेरों पतंगों पर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरें लगी थीं । एक में उड़ते नोटों के बीच मोदी नोटों की ही पगड़ी लगाए हुए हैं और नीचे लिखा है "मोदी के नोट लेके (लेकर) आओ।"
इसी तरह कांग्रेस की तरफ से नए साल का बधाई संदेश देती बड़ी-भारी पतंग एक दुकान की पहली मंजिल पर टंगी थी। पतंगों में सलमान, कटरीना और आलिया भी हैं। सलमान खान इलाके के पसंदीदा हीरो हैं। हर दूसरे आॅटो के पीछे सलमान विभिन्न मुद्राओं में दिखेंगे। जमालपुर के चौक पर मिले रेहान बताते हैं "वो सभी को अच्छा लगता है।" क्या सलमान ने अहमदाबाद आकर पतंग उड़ाई थी ये उसका असर है ? सवाल पर रेहान और उनके साथी हंसते हैं। जमालपुर की चाय भी पतंगों की तरह उड़ती रहती है। चौक में आप जहां खडे़ हैं, वहीं लाकर दी जाती है, बाकायदा प्लेट नीचे लगाकर। चाय को कप से नीचे प्लेट तक गिराया जाएगा। आप सोचेंगे देनेवाले ने बेध्यानी में उड़ेल दी लेकिन चाय देने का यहां यही तरीका है क्योंकि कप यहां दिखावट के लिए हैं, चाय सीधे प्लेट से सुड़कनी है।
बताया जाता है कि 2003 में तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर घरेलू उद्योग को मुख्यधारा में शामिल करने के गुर जाननेवाले तमिल विशेषज्ञ जमालपुरा जैसे इलाकों में घूमे थे। बाद में इसी रिसर्च से मिले उपायों पर निर्माता, विक्रेता और बड़े कारोबारियों के साथ एनजीओ, अधिकारियों, मंत्रियों और स्वयं मुख्यमंत्री की बैठक हुई। गुजरात के बहुचर्चित काइट फेस्टिवल की नींव यहीं से पड़ी। कहते हैं कि 15 साल पहले गुजरात का पतंग उद्योग 30 से 40 करोड़ रुपए का टर्नओवर रखता था, आज प्रचार-प्रचार से हजार करोड़ रुपए का हो गया है। इसके लिए सरकारी मशीनरी, संसाधन और पहुंच का जमकर इस्तेमाल किया गया। अपने खर्च पर सरकार ने विदेशी पतंगबाजों को आमंत्रित कर इसे ग्लोबल इवेंट बनाने का प्रयास किया है ।
इस प्रसंग पर भी रईस का ही एक शाहरुख़नुमा संवाद मेल खाता है "जो धंधे के लिए सही वो सही़...जो धंधे के लिए गलत वो गलत... इससे ज्यादा कभी सोचा नहीं।"