Wednesday, 19 October 2016

अंतागढ़ का टेप कांग्रेस के बदलाव का कारण बना, उसे भूलकर राय-कौशिक में उलझ रहे हैं नेता


मैं अंतागढ़ का टेप सुनना चाहता हूं। यह मेरी जिज्ञासा है। कल कोई कह रहा था ‘कांग्रेस की राजनीति में टेप कांड ने बदलाव लाया।’ मुझे भी लगता है, आज की कांग्रेस में मजबूत दिखते संगठन के पीछे केवल एक वजह है- अंतागढ़ टेप कांड। इसके अलावा कांग्रेस के पास सरकार का कदाचरण बताने के लिए कुछ नहीं है क्योंकि नान और चावल घोटाले में कांग्रेस तथ्य नहीं जुटा पाई।

प्रथम चरण में कांग्रेस ने अंतागढ़ टेप से अपनी पुरानी सियासी जमीन को भविष्य में जोगी के अतिक्रमण से बचा लिया था। दूसरे चरण में घटनाक्रम के बजाय कांग्रेस संगठन और जोगी में घमासान को तवज्जो मिली। भूपेश बघेल यह नहीं चाहते रहे होंगे। मेरा ख्याल है कि जोगी भी पुरानी पार्टी से अचानक की आर-पार का रण छेडऩे की स्थिति में नहीं थे।  टेप कांड दो रोज की सुर्खियों के बाद झटके से गायब कर दिया गया। एक सीधे-साफ घटनाक्रम को अविश्वसनीय बताने के लिए उसे कथित कहा गया। टेप प्रकरण में सामने आए नामों को उनकी ताकत के मुताबिक दबाया- उभारा जा रहा है। शक्तिशाली लोग प्रचारतंत्र पर आसान पकड़ बना लेते हैं। कांग्रेस से बेहतर कोई नहीं बता सकता कि भाजपा के सदस्य अखबार की एक्सक्लूसिव खबरें देखकर मुस्कुराते क्यों हैं!

कांग्रेस के नए नेतृत्व को सहृदयता से स्वीकार करना चाहिए कि उसने अनुभवहीनता दिखाई है। अंतागढ़ का टेप जोगी के जाने का कारण भर बनकर रह गया। लगा जैसे कांग्रेस इसे रमन से अधिक जोगी के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहती है। इससे कांग्रेस वर्सेज जोगी का चुनावी चित्र बना । समझ नहीं आया कि कांग्रेस का नंबर वन दुश्मन कौन है? जोगी या रमन!

मतदाता दो या तीन एजेंडों के आधार पर मन बनाते हैं। बीसियों मुद्दे उन्हें  भटका देते हैं।
 प्रदेश कांग्रेस पुराने व अधिक प्रभावकारी मुद्दों को सिरे से भूलकर नए काम पर लग जाती है। कांग्रेस नेतृत्व को सत्ता की कमजोरियां बताने के लिए ज्यादा से ज्यादा पांच बड़े मुद्दे चुनने चाहिए। जिन पर उसे एड़ी-चोटी का जोर लगाकर काम करना होगा। वह तय कर ले कि सरकार व सहयोगियों के कदाचरण में अंतागढ़ को किस नंबर पर रखा जाए! कल सूचना मिली कि पुलिस में अंतागढ़ टेप मामले की एफआईआर नहीं है। यह संगठन की लापरवाही है या मकसद निकल जाने के बाद की सुस्ती।

क्या अंतागढ़ टेप कांड ने सत्ता से अलग होने के बाद कांग्रेस को एक मेकओवर नहीं दिया था? इससे नए नेतृत्व को मान्यता नहीं मिली थी? उससे जनता से घरों-घर जाकर फीडबैक लेना था। उसे आमजन की सोच मालूम हो जाती। पब्लिक ओपिनियन के मुताबिक आगे की रणनीति बनती तो आज गुंडरदेही विधायक आरके राय के अवश्यसंभावी निष्कासन की खबर अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता से नहीं छपती। कांग्रेस के रणनीतिकार नहीं समझ रहे हैं कि उनकी पार्टी को किस तरह से घेरा जा रहा है! अंतागढ़ टेप कहीं फंस गया है। आरके राय और बिल्हा विधायक सियाराम कौशिक को सुर्खियां मिलने के पीछे कौन सा गठजोड़ या फैक्टर है? दोनों इतने बड़े नेता नहीं कि सियायत चार दिनों के लिए सही लेकिन उनके विद्रोह पर टिक जाए। नई राजनीति में मीडिया में बगावत को स्थापित किया जाता है। जिसका होना अंधे को भी नजर आए उसे रेखांकित किया जाना प्रायोजित लगता है।



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