सरकार के प्रति पूर्ण निष्ठा रखते हुए यह आलेख लिख रहा हूं। मोदीजी के भक्त नाराज न हों। कांग्रेसी खुश न हों। बाकी के जितने दल हैं, वे बत्तीसी न चमकाएं।
कर्नाटक के बेल्लारी बंधुओं (जनार्दन रेड्डी, सोमशेखर रेड्डी और करुणाकरण रेड्डी) के घर हुई 500 करोड़ रुपए की शादी की खबर मीडिया में खूब उछाली गई थी। भाइयों-बहनों (मितरों) तब नोटबंदी की घोषणा हो चुकी थी। घोषणा 8 नवंबर को हुई और शादी 16 नवंबर को।
नोटबंदी के बावजूद जनार्दन रेड्डी की बेटी की शादी की भव्यता में पांच रुपए का भी फर्क नहीं आया था। कागजों में अरबपति और हकीकत में खरबपति जनार्दन रेड्डी अवैध खनन मामले के सबसे मशहूर आरोपी हैं। रेड्डी की बंफाड़ संपत्ति के पीछे उनके भाजपा से जुड़ाव को कारण बताया जाता है। कर्नाटक बीजेपी के तारणहार येदियुरप्पा के कालर के बटन हैं जनार्दन रेड्डी, फिलहाल सुप्रीम कोर्ट से जमानत पर हैं, पूर्व में 40 महीने जेल में रहकर आए हैं।
40 का अंक येदियुरप्पा और रेड्डी के बीच संबंध बना रहा है।
हाल में आए एक फैसले में रेड्डी के आराध्य नेता येदियुरप्पा को 40 करोड़ के अवैध खनन केस में सीबीआई की विशेष अदालत ने साजिशकर्ता नहीं माना है। अफवाह थी कि कर्नाटक भाजपा ने अपने नेताओं को जनार्दन रेड्डी की बिटिया की शादी में जाने से मना किया है, लेकिन येदियुरप्पा भाजपा के नेताओं को साथ लेकर गए। इसके पांच दिन बाद इनकम टैक्स ने रेड्डी के माइनिंग ऑफिस में रेड की। तस्वीर को उल्टा कर देखें तो जनार्दन रेड्डी को पूरा मौका दिया गया।
इतना पुराण सुनाने के पीछे का मकसद है एक भूमिका खड़ी करना। भूमिका नोटबंदी के बाद जन-धन खाते में आ रहे करोड़ों-अरबों रुपए और इसके पीछे राजनीति होने के संदेह की। इस गुरुवार तक पूरे देश के जन-धन खातों में 21 हजार करोड़ रुपए आ चुके हैं। इसमें कर्नाटक का नंबर दूसरा है। कर्नाटक से ही टेबुलाइड समाचार उठे थे-" नेता टेंट लगाकर पैसे बांट रहे गरीबों को।"
जानते हैं जन-धन में धनवर्षा (अखबारी सरकारी सूत्र के हवाले से) में पहला नंबर किस राज्य का है?
पहला है बंगाल। बाबू मोशाय पहले इसको ‘पोश्चिम बोंगोल’ बोलते थे। अब खाली 'बोंगोल" है- "आमी सोनार बोंगोल।"
गुस्सैल ममता बनर्जी ने नोटबंदी के खिलाफ अराजक केजरीवाल और एटीएम कतार के कलाकार राहुल गांधी से अधिक मुखरता दिखाई है। दिल्ली में राष्ट्रपति भवन तक मार्च किया। अगले दिन केजरीवाल के साथ भाषण में कह रही थीं- "मेरे को हिंदी बोलना ठीक से नेई आता। सरकार का फैसला से गोरीब (गरीब)पोरेशान (परेशान) है।"
अब मैं ही लिखता रहूं कि आप चिंतन करेंगे, आपके चिंतन को दिशा दिए देता हूं-
> >बंगाल में बीजेपी की नजर मोदी के आने के बाद से है । वहां पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बड़ा जोर मारा। परिणाम रहा 294 सीटों में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 211 सीटें और बीजेपी को मिली सिर्फ और सिर्फ 6, यानी मोदी लहर फेल, मोदी फेल।
>> कर्नाटक में भाजपा को खड़ा करनेवाले येदियुरप्पा का जादू खत्म हुआ, यहां सत्ता गंवाकर बीजेपी सिकुड़ गई । साउथ में कर्नाटक बीजेपी का सेंटर है । पार्टी दक्षिण भारत में आगे बढ़ने की योजना पर कर्नाटक से काम कर रही है। वहां की 224 सीटों में 122 कांग्रेस के पास है, बीजेपी के पास हैं 40 सीटें। कर्नाटक की सरकार गंवाने का गम भाजपा को टीस रहा होगा।
मैं दोहरा रहा हूं कि सरकारी एजेंसियों ने जन-धन में पैसे आने की बाढ़ में इन दोनों राज्यों को आगे बताया है।
संभावना इसकी भी है कि बंगाल और कर्नाटक में वाकई फर्जीवाड़ा हो सकता है। ममता बनर्जी इसलिए ही नोटबंदी के विरोध में उतरी होंगी, उनकी पार्टी पर नोटबंदी से आंच आई होगी। कार्यकर्ताओं ने दबाव बनाया होगा। मोमता दीदी का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ा गया होगा।
मोमता ने इधर मार्च निकाला, उधर सरकारी एजेंसियो ने सभी राज्यों के बैंकों से जन-धन खातों की रिपोर्ट मंगाई, और भाइयों-बहनों (मितरों) बंगाल टॉप कर गया। मोदीजी के लहजे में कहूं तो-" देखा.."
मैं इन राज्यों को उदाहरण मात्र के तौर पर बता रहा हूं। क्या सरकार कालेधन के नाम पर डरा रही है? क्या पहले यह कालेधन पर वार का ऐतिहासिक फैसला था और अब राजनीतिक होता जा रहा है? डर भाजपाशासित राज्यों में क्यों नहीं है? सरकारी एजेंसियों से खबरें उछाली जाती हैं " सारे खातों पर पैनी नजर है। जन-धन में आ रहे पैसों का हिसाब देना होगा। कोई नहीं बचेगा।"
डराया किसे जा रहा है, कालाधन रखनेवालों को! या गैरभाजपाशासी राज्यों की सरकारों को!
शक के बहुत से कारण हैं कि नोटबंदी सरकार का एक निष्पक्ष निर्णय नहीं था। बंगाल की भाजपा इकाई ने नोटबंदी लगने से पहले तीन करोड़ रुपए बैंक में जमा कराए। नोट थे 500 और 1000 के। बिहार में भी जमीन खरीदी गई करोड़ों की। दूरदर्शन का पत्रकार कह रहा है "मोदी का आठ नवंबर वाला घोषणा भाषण लाइव नहीं था। "
भाजपा ने प्रचारित किया है- मोदी के अलावा कोई नहीं जानता था बड़े नोट बंद किए जाने का फैसला। वित्तमंत्री अरुण जेटली और आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को भी नहीं मालूम था । क्या मजाक है? जेटली पूरे देश के नोट गिनने का ठेका रखनेवाला मंत्रालय संभालते हैं और उन नोटों पर हस्ताक्षर करने का अधिकार है उर्जित पटेल को। दोनों भोले-मासूमों को कानों-कान खबर नहीं मिली। फिर उसी रात सिस्टम कैसे सक्रिय हो गया! जैसे उसको पता हो कि आज से काम पर लगना है। चलिए ये जेटली और पटेल नहीं जानते थे, तो फिर मोदी भर के जान लेने से पूरी मशीनरी सक्रिय हो गई। मोदी ने अकेले ही सब कर लिया। नए नोट छपवा लिए। उनको बैंकों में जाने के लिए तैयार करवा लिया और अचानक आठ नवंबर को घोषणा कर दी।
नोटबंदी क्यों एक पॉलिटिकल स्टंटबाजी लग रही है।
अंत में गरीब के साथ होनेवाला खेल जानिए-
बिहार के बेगूसराय में मजदूर सुधीर कुमार को इनकम टैक्स का नोटिस मिला लिखा था कि उसके अकाउंट से साढ़े तीन अरब रुपए का ट्रांजेक्शन हुआ है। उस बेचारे मजदूर का सोचिए जिसने जिंदगी का पहला सरकारी परचा देखा होगा, और वो भी इनकम टैक्स का । सुधीर को जब सरकारी पुर्जा मिला, उसके अकाउंट में सिर्फ 416 रुपए थे।
मामला सामने आने के बाद इनकम टैक्स विभाग ने सफाई दी है कि बैंक से गलती हो सकती है। जांच होगी। भला हो नीतीश कुमार का, जो नोटबंदी का शुरुआती समर्थन कर दिया था। नहीं तो सुधीर कुमार नप सकता था!!!! (यह एक अतिश्योक्तिपूर्ण बात है, पर सम्भव भी)
वैसे केंद्र के राडार पर नीतीश भी हैं! मैं बिहार और उत्तरप्रदेश के जन-धन खातों के आंकड़े जानने को बेसब्र हूं। देखते हैं सरकार कब अथेंटिक आंकड़े जारी करती है। यूपी में चुनाव आने को है। बूझिए आगे.. नोटबंदी का क्या फर्क आएगा वहां की राजनीति में।
( एक सूचना कॉम्प्लीमेंट्री- जनता परिवार से कांग्रेस में आए सिद्धारमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस ने वहां बीजेपी शासनकाल के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा था। पिछले दिनों सिद्धारमैया पर आरोप लगा है कि उन्होंने एक इंजीनियर से 60 लाख की घड़ी ली)
नए नोटों के लिए कतार में हैं ! तब तो बहुत वक़्त पड़ा है, सोचते रहिए...