Friday, 7 October 2016

पेटभर हंस लेने के बाद अपनी जीभ निकालकर शर्माते हुए कहें ‘माफ करना’


राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का खेल कैसे चलता है? और कैसे मुख्य मुद्दा घुमा दिया जाता है? देश में इस समय चल रही बयानबाजी से समझा जा सकता है।

राहुल गांधी ने कल कहा ‘शहीदों के खून की दलाली कर रहे हैं मोदी। ’ आज दोपहर अमित शाह ने जवाब दिया ‘यह आर्मी का अपमान है, देश की सवा अरब जनता का अपमान है।’ शाम को अमित शाह को कपिल सिब्बल ने उत्तर दिया ‘आतंकी मसूद अजहर को बीजेपी ने रिहा किया।’  मायावती का बयान है ‘ सेना की जय हो, नेताओं की नहीं।’ लालू प्रसाद यादव ने भी ऐसा ही कुछ कहा।

मुद्दा कल कुछ और था। आज कुछ और हो गया है।

 राहुल गांधी के भाषण  में कहीं सेना के खिलाफ बात नहीं है। उनका कहना था ‘ हमारे जवानों ने जम्मू और कश्मीर में अपना खून दिया है। उनके खून के पीछे मोदी छिपे हैं। मोदी उनके खून की दलाली कर रहे हैं।’
उनके भाषण का एक महत्वपूर्ण वाक्य सामने ही नहीं आ पाया, जो था ‘सेना ने अपना काम किया, आप अपना करो। ’

इस पर अमित शाह ने राहुल गांधी को चारों खाने चित्त करने का मन बनाया और वो कहा जिसका राहुल के बयान से लेना-देना नहीं है। शाह का पलटवार राहुल के आरोप का उत्तर नहीं है। उनका कहना है ‘दलाली शब्द सेना का मनोबल तोडऩेवाला है। ’
जहां तक मेरे और आपके जैसे आम लोगों की समझ है, राहुल के कहने का मतलब है कि मोदी सेना की सर्जिकल स्ट्राइक का ज्याती फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।

यह तो मोदी का अपमान है। सेना या देश का कहां?
अमित शाह ने राहुल के बयान का बिल्कुल मायने ही बदल दिया।

अमित शाह की प्रेसवार्ता के बाद कपिल सिब्बल आए। उन्होंने पब्लिक का जनरल नॉलेज बढ़ाना शुरू कर दिया। वे बताने लगे कि ‘ भाजपानीत सरकार  ने मसूद अजहर को रिहा किया था।’ वह यह नहीं बताते कि यह विमान में सवार यात्रियों की सलामती के लिए किया गया था। उनके कहने से लग रहा है, भाजपा के नेता जेल के अंदर गए और मसूद अजहर की हथकड़ियां खोलकर बोले ' जा दढ़ियल ' ।

 हमारे नेताओं का स्तर क्या है? वे बाल की खाल निकालकर उस पर बाल लगाने की कोशिश करते हैं। राहुल ने उत्तरप्रदेश में किसान रैली के समापन पर (जहां सर्जिकल स्ट्राइक पर बोलने की जरूरत नहीं थी) सेना और मोदी की बात कही। अमित शाह ने राहुल की बात को तोड़-मरोड़ दिया। अंत में कपिल सिब्बल मामले को दिल्ली से कंधार ले गए।

इधर सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगकर फंसे अरविंद केजरीवाल ने इस बार खुद का वीडियो बनाने के बजाय एएनआई (न्यूज एजेंसी) को बुलाया और कहा ‘ राहुल ने गलत शब्दों का उपयोग किया। ’
बताओ भाषा की मर्यादा कौन बता रहा है।


असल में सभी पार्टियों के नेताओं की नजर उत्तरप्रदेश के चुनाव पर है। वे सर्जिकल स्ट्राइक की घटना को सियासी फायदे-नुकसान के रूप में देख रहे हैं। तय है कि भाजपा इसका फायदा उठाने में पीछे नहीं रहेगी। भाजपा के विरोधी सारे दलों की यही चिंता है। इसलिए वे भी सेना की तारीफ करते हुए मोदी को निशाना बना रहे हैं।

लगता है राहुल को यकीन हो गया है कि सर्जिकल स्ट्राइक से भाजपा को फायदा मिलनेवाला है। हो सकता है उन्होंने भाजपा के वो पोस्टर देखे हों, जिनमें प्रभु राम की तस्वीर में मोदी का चेहरा लगा है। सामने रावण के रूप में नवाज शरीफ हैं।

और उन्होंने चिढक़र दलालीवाला बयान दे दिया। वे अंग्रेजीदां हैं। मेरे लिखे को अभी अंडरलाइन कर लीजिए, उन्हें मालूम ही नहीं होगा कि दलाली शब्द का वास्तविक अर्थ क्या होता है? अमित शाह को इसी शब्द पर अधिक आपत्ति थी। आरोप लगाते हुए उन्होंने भी यही कहा ' बोफोर्स दलाली, कोयला दलाली, टूजी दलाली किसने की?'

हमारे प्रतिनिधि नेताओं को देश, सेना और जनता से पहले पॉलिटिकल एज की चिंता है। इसलिए अगर अगली बार आप सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीतिक बयान सुनें, तो अनसुना कर दें। इससे सिर्फ दिमाग ही खराब होगा। नेताओं पर सर्जिकल स्ट्राइक करने का मन बन जाएगा।

इसलिए प्लीज.. .प्लीज .. .प्लीज .. . सर्जिकल स्ट्राइक पर बोलता कोई नेता सामने पड़ जाए तो उसे देखकर हंसने लग जाइए। धीरे-धीरे मुसकाते हुए, एकदम से ठहाका मारने लगिए।
पेटभर हंस  लेने के बाद अपनी जीभ निकालकर शर्माते हुए कहें ‘माफ करना’।
इससे बढिय़ा सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हो सकती।

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