मैंने एक कहानी पढ़ी थी किसी पत्रिका में- एक किसान था, नाम था भारत। वो अपनी जमीन हर पांच साल के लिए किसी जरूरतमंद को खेती के लिए दे दिया करता था। इसके लिए वह चुनाव की प्रक्रिया काम में लाता था। भारत ने जमीन से अपने लिए कभी कुछ नहीं चाहा। यही वजह रही कि चुने हुए जरूरतमंद आकर पांच-पांच साल तक उसकी जमीन पर खेती करते रहे। भोले-भाले और बेचारे भारत की स्थिति जस की तस बनी रही। भारत अथाह जमीन का स्वामी होकर भी गरीब होकर रह गया। उसकी जमीन पर खेती करनेवाले अमीर हो गए। खेती में उसका साथ देनेवाले मजदूर भुखमरी में जीते रहे। भारत की जमीन पर खेती करनेवालों ने इस व्यवस्था को नाम दिया प्रजातंत्र।
किसान देश के सबसे उन्नत किसानों की धरती पंजाब में आम आदमी पार्टी का घोषणापत्र दिन के सपने के समान है। मेरी जानकारी में यह भारतीय अंधविश्वास है कि दिन में देखा हुआ सपना सच होता है। हो सकता है आप भोपाल की दोपहरी में एक सपना देखें वो ढाका की शाम में सच हो जाए। लेकिन भोपाल में रहकर यह असंभव है। अरविंद केजरीवाल की पार्टी मेरी बातों से इत्तफाक नहीं रखती। उसे भारतीय अंधविश्वास पर यकीन है। जैसे न्यूज चैनल यह मानते हैं कि उन्हें देख रहा हर आदमी उनकी खबरों पर यकीन करता है।
पंजाब में मजदूरों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणापत्र में वायदा किया है कि उसकी सरकार बनने पर हर गरीब को (मजदूर ही मानें) काम नहीं मिलने तक दस हजार रुपए महीना भत्ता प्रदान किया जाएगा। एक तरह से बेरोजगार पेंशन। मजदूर को काम नहीं मिलने का पैमाना कैसे तय होगा? यह आम आदमी पार्टी का घोषणा पत्र नहीं बताता। तथ्यपूर्ण पत्रकारिता के हिमायती हर सवाल पर भडक़ने को लालायित आशुतोष इस घोषणा पत्र को लिखे जाने के दौरान मौजूद नहीं रहे होंगे! वे तब संदीप कुमार के सेक्स कांड में फंसने के संबंध में एक आर्टिकल तैयार कर रहे होंगे। रहे भी होंगे। हमें उनके किसी आर्टिकल का इंतजार करना चाहिए।
यह सही है कि पंजाब में मजदूर तंगहाली में जान देने पर उतारू हैं। पर क्या उन्हें दस हजार रुपए महीने दिए जाने का लालच घोषणापत्र में शामिल किया जाना जरूरी था! एक गरीब के लिए पेंशन सिवाय रोजी-रोटी के जुगाड़ के लालच के अलावा कुछ नहीं है। यह क्यों नहीं सोचा गया कि हम सीधे काम देंगे! काम मिलने तक दस हजार देंगे, यह खुला प्रलोभन है।
- क्या आम आदमी पार्टी प्रत्येक बेरोजगार मजदूर को काम दिलाएगी? आवेदन कीजिए कि मैं बेरोजगार मजदूर हूं। आपको दस हजार रुपए मिलेंगे। (यह तो यूपीए के मनरेगा की नकल की है आप ने)
- क्या वह मजदूर को वही काम दिलाएगी जो उसे आता है? मिट्टी का काम करनेवाला अकुशल मजदूर (मनरेगा और खेतों काम करनेवाला तबका)सीमेंट प्लांट जैसे क्षेत्रों में कौन सा काम करेगा!
- दस हजार रुपए देने का पैमाना क्या होगा? क्या अकुशल, अर्धकुशल और कुशल सभी का वर्ग एक ही होगा! इन तीन प्रकारों के मजदूरों को समान रूप से दस हजार रुपए दिए जाएंगे!
- यह कैसे तय किया जाएगा कि यह मजदूर केवल इसलिए बेरोजगार है क्योंकि इसे काम नहीं मिल रहा? क्या पता वो काम ही नहीं करना चाहता हो? वह कुछ और करना चाहता हो।
आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र में अनेक विरोधाभास हैं। एक वायदा है- साहूकारों से किसानों की संपत्ति छुड़वाई जाएगी। पढक़र लगता है मानो आप की पंजाब कार्यकारिणी का एक सदस्य भी किसी किसान से नहीं मिला है। केजरीवाल और उनके सलाहकारों ने मदर इंडिया फिल्म देखकर यह घोषणा लिख ली। किसान ने किन परिस्थतियों में किस तरह किसी साहूकार को, बैंक को जमीन दी थी, यह साबित करना भी मजदूर के बेरोजगार होने जैसा मसला है। प्रमाणीकरण की जरूरत पड़ेगी। फिर कागजात पर बात आएगी। कोर्ट-कचहरी होगी। राज्यपाल-केजरीवाल होगा। अजीब (नजीब के पैरेलल) जंग होगी। पंजाब में दिल्ली-दिल्ली होगा। मीडिया मजा लेगा। हम अंजना ओम कश्यप, रवीश कुमार और सुधीर चौधरी को उनके तरीकों से झेलेंगे।
मैं अपने लिखे में पतला सा यू-टर्न लूं तो आम आदमी पार्टी की अपरिपक्वता उसकी ताकत भी है। उसके मेनीफेस्टो का असर अन्य दलों के घोषणापत्रों में साफ नजर आएगा। दूसरे दलों की तरफ से भी इस तरह के कागजी वायदे किए जाएंगे।
बात केवल आम आदमी पार्टी की नहीं है। सभी राजनीतिक दलों के मेनीफेस्टो का प्रमाणीकरण पहले होना चाहिए। मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में जाना चाहिए। निर्वाचन आयोग को एक नियम बनाने पर विचार करना चाहिए- राजनीतिक दल अपने मेनीफेस्टो में घोषणाओं के साथ-साथ उनके अमल में लाए जाने की प्रक्रिया भी स्पष्ट करें।
हवाई घोषणाओं से खुश होनेवाले हम, निराश होते हैं उनके पूरा न होने पर। जबकि हमें उनका सच मालूम होता है। मीडिया समूहों द्वारा कराए गए सर्वे कहते हैं देश में दो ही नेता लोकप्रिय हैं। मोदी और केजरीवाल। मैं बिना सर्वे के यह कह सकता हूं कि लोग निराश भी इन्हीं दोनों से अधिक हैं।
हम भारतीय ऐसे ही हैं। हमें वायदे पसंद हैं। जय जवान-जय किसान।
किसान देश के सबसे उन्नत किसानों की धरती पंजाब में आम आदमी पार्टी का घोषणापत्र दिन के सपने के समान है। मेरी जानकारी में यह भारतीय अंधविश्वास है कि दिन में देखा हुआ सपना सच होता है। हो सकता है आप भोपाल की दोपहरी में एक सपना देखें वो ढाका की शाम में सच हो जाए। लेकिन भोपाल में रहकर यह असंभव है। अरविंद केजरीवाल की पार्टी मेरी बातों से इत्तफाक नहीं रखती। उसे भारतीय अंधविश्वास पर यकीन है। जैसे न्यूज चैनल यह मानते हैं कि उन्हें देख रहा हर आदमी उनकी खबरों पर यकीन करता है।
पंजाब में मजदूरों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणापत्र में वायदा किया है कि उसकी सरकार बनने पर हर गरीब को (मजदूर ही मानें) काम नहीं मिलने तक दस हजार रुपए महीना भत्ता प्रदान किया जाएगा। एक तरह से बेरोजगार पेंशन। मजदूर को काम नहीं मिलने का पैमाना कैसे तय होगा? यह आम आदमी पार्टी का घोषणा पत्र नहीं बताता। तथ्यपूर्ण पत्रकारिता के हिमायती हर सवाल पर भडक़ने को लालायित आशुतोष इस घोषणा पत्र को लिखे जाने के दौरान मौजूद नहीं रहे होंगे! वे तब संदीप कुमार के सेक्स कांड में फंसने के संबंध में एक आर्टिकल तैयार कर रहे होंगे। रहे भी होंगे। हमें उनके किसी आर्टिकल का इंतजार करना चाहिए।
यह सही है कि पंजाब में मजदूर तंगहाली में जान देने पर उतारू हैं। पर क्या उन्हें दस हजार रुपए महीने दिए जाने का लालच घोषणापत्र में शामिल किया जाना जरूरी था! एक गरीब के लिए पेंशन सिवाय रोजी-रोटी के जुगाड़ के लालच के अलावा कुछ नहीं है। यह क्यों नहीं सोचा गया कि हम सीधे काम देंगे! काम मिलने तक दस हजार देंगे, यह खुला प्रलोभन है।
- क्या आम आदमी पार्टी प्रत्येक बेरोजगार मजदूर को काम दिलाएगी? आवेदन कीजिए कि मैं बेरोजगार मजदूर हूं। आपको दस हजार रुपए मिलेंगे। (यह तो यूपीए के मनरेगा की नकल की है आप ने)
- क्या वह मजदूर को वही काम दिलाएगी जो उसे आता है? मिट्टी का काम करनेवाला अकुशल मजदूर (मनरेगा और खेतों काम करनेवाला तबका)सीमेंट प्लांट जैसे क्षेत्रों में कौन सा काम करेगा!
- दस हजार रुपए देने का पैमाना क्या होगा? क्या अकुशल, अर्धकुशल और कुशल सभी का वर्ग एक ही होगा! इन तीन प्रकारों के मजदूरों को समान रूप से दस हजार रुपए दिए जाएंगे!
- यह कैसे तय किया जाएगा कि यह मजदूर केवल इसलिए बेरोजगार है क्योंकि इसे काम नहीं मिल रहा? क्या पता वो काम ही नहीं करना चाहता हो? वह कुछ और करना चाहता हो।
आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र में अनेक विरोधाभास हैं। एक वायदा है- साहूकारों से किसानों की संपत्ति छुड़वाई जाएगी। पढक़र लगता है मानो आप की पंजाब कार्यकारिणी का एक सदस्य भी किसी किसान से नहीं मिला है। केजरीवाल और उनके सलाहकारों ने मदर इंडिया फिल्म देखकर यह घोषणा लिख ली। किसान ने किन परिस्थतियों में किस तरह किसी साहूकार को, बैंक को जमीन दी थी, यह साबित करना भी मजदूर के बेरोजगार होने जैसा मसला है। प्रमाणीकरण की जरूरत पड़ेगी। फिर कागजात पर बात आएगी। कोर्ट-कचहरी होगी। राज्यपाल-केजरीवाल होगा। अजीब (नजीब के पैरेलल) जंग होगी। पंजाब में दिल्ली-दिल्ली होगा। मीडिया मजा लेगा। हम अंजना ओम कश्यप, रवीश कुमार और सुधीर चौधरी को उनके तरीकों से झेलेंगे।
मैं अपने लिखे में पतला सा यू-टर्न लूं तो आम आदमी पार्टी की अपरिपक्वता उसकी ताकत भी है। उसके मेनीफेस्टो का असर अन्य दलों के घोषणापत्रों में साफ नजर आएगा। दूसरे दलों की तरफ से भी इस तरह के कागजी वायदे किए जाएंगे।
बात केवल आम आदमी पार्टी की नहीं है। सभी राजनीतिक दलों के मेनीफेस्टो का प्रमाणीकरण पहले होना चाहिए। मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में जाना चाहिए। निर्वाचन आयोग को एक नियम बनाने पर विचार करना चाहिए- राजनीतिक दल अपने मेनीफेस्टो में घोषणाओं के साथ-साथ उनके अमल में लाए जाने की प्रक्रिया भी स्पष्ट करें।
हवाई घोषणाओं से खुश होनेवाले हम, निराश होते हैं उनके पूरा न होने पर। जबकि हमें उनका सच मालूम होता है। मीडिया समूहों द्वारा कराए गए सर्वे कहते हैं देश में दो ही नेता लोकप्रिय हैं। मोदी और केजरीवाल। मैं बिना सर्वे के यह कह सकता हूं कि लोग निराश भी इन्हीं दोनों से अधिक हैं।
हम भारतीय ऐसे ही हैं। हमें वायदे पसंद हैं। जय जवान-जय किसान।
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