Wednesday, 10 August 2016

अमेरिका, चीन और शोभा डे बिजनेस पॉलिसी में लगे हैं..और हम दूसरे देश की दाल ढूंढ़ रहे !!


ओलंपिक में भारत के हमेशा की तरह बुरे हाल पर शोभा डे का बयान उतना बुरा नहीं है जितना कि हमारे खिलाडिय़ों का प्रदर्शन। फिल्मी सितारों के बारे में लिखकर खुद एक सेलिब्रिटी बन गईं शोभा डे ने भारतीय खिलाडिय़ों के रियो जाने को एक मुफ्त की तफरीह करार दिया है। उन्होंने भारतीय ओलंपिक दल के ऊपर हुए खर्च को बर्बादी कहा है।  शोभा डे को जो लोग जानते हैं, या जिन्होंने उनको पढ़ा है (जिनमें मुझ जैसा गरीब भी शामिल है जिसने आज तक कोई पेज थ्री पार्टी नहीं देखी) जानते हैं कि वे अंदर की खबर रखती (तथ्य उनकी खबरों में नहीं होते)हैं। फिल्मी जीवन पर एक तरह से खोजी खबरों की फाउंडर वे ही हैं। फिल्मी सितारों के जीवन पर हम भारतीय फिदा हैं। शोभा डे ने नपी-तुली व्यावसायिक पत्रकारिता करते हुए फिल्मी सितारों की महंगी पार्टियां अटैंड कर अंदर की सूचनाएं निकालीं। फिल्मी सितारों का पब्लिक रिलेशन (पीआर) मेंटेन करने कंपनियां बनाने का आइडिया शोभा के खबरनुमा आर्टिकल्स से ही आया होगा। देखा जाए तो फिल्म इंडस्ट्री में पर्सनल पीआरशिप के बिजनेस को उन जैसे पत्रकारों की कलम ने खड़ा किया। वे स्वयं सेलिब्रिटी बन गईं। उनकी बातें ही खबरें होने लगीं। किसी पत्रकार का खुद खबरों का केंद्र हो जाना मिथक तोडऩे से भी बड़ी उपलब्धि है। शोभा डे ने अभी तक जितनी फिल्मी पार्टियां अटैंड की हैं, उनमें खर्च हुआ पैसा उतना नहीं होगा जितना अभी हमारे ओलंपिक दल के ब्राजील जाने पर लगा है। मैंने बिना रिसर्च के यह बात कही है, कौन सा शोभा डे यहां मेरा ब्लॉग पढऩेवाली हैं! तो शोभा डे की विराटता का यह एक बहुत मामूली परिचय देने के बाद मैं मुद्दे पर आता हूं। ओलंपिक खेलों के इतिहास में किसी भारतीय ओलंपिक दल ने वाकई में हमारी विशालता के अनुरूप खेल नहीं दिखाया। हमारा ज्ञान तो ओलंपिक के मुख्य खेलों को लेकर इतना कम है कि हमने दीपा कर्माकर के वॉल्ट इवेंट फाइनल में पहुंचने पर ही उन्हें गोल्ड मैडल दिला दिया। फेसबुक और ट्विटर पर उन्हें देश की नई गौरव बताया जाने लगा। हुआ यह था कि दीपा का नंबर वहां इलेक्ट्रिक बोर्ड पर दिखाया गया। सबसे ऊपर। तब वे फाइनल में पहुंचने के लिए मुकाबला कर रही थीं। इतने से ही खुश होकर हमारे सोशल खेल पत्रकारों ने खबरें चला दीं। बिल्कुल उसी तरह जैसे शोभा डे फिल्मी सितारों की खबरें छापा करती थीं। मायापुरी जैसी सस्ती पत्रिका पढऩेवाले उनके फिल्म फेयर के आर्टिकलों को नहीं पढ़ पाए, नहीं तो जानते कि उनकी खबरों को पुष्ट करनेवाला नहीं होता था।  उन्होंने रितिक रोशन और करीना कपूर के साथ हवाई यात्रा की। प्लेन में उनके आगे रितिक और करीना बैठे थे। शोभा डे की सिक्स्थ सेंस इतनी पैनी है कि उन्होंने पीछे की सीट से ही आगे रितिक और करीना के बीच जो हो रहा था उसे महसूस कर लिया। उन्होंने तुरंत एक आर्टिकल लिख दिया कि रितिक और करीना में अफेयर चल रहा है। इसके बाद से रितिक ने करीना के साथ फिल्म नहीं की। जो फिल्में आईं वे रितिक ने इस खबर के हवा में आने से पहले साइन कर रखी थीं। करीना-रितिक के अफेयर को नकारा भी नहीं गया।  वे इस तरह की दिव्यदृष्टि रखती हैं। इसलिए भारत के ओलंपिक खिलाडिय़ों को अपमानित करनेवाली उनकी टिप्पणी को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। वे सुधार की बात कह रही हैं। भारत में खेलों की व्यवस्था को समझनेवाले उनकी टिप्पणी से उबाल खाने की बजाय हमारे खेल संगठनों को कोसें। खेल में मुख्यत: दो तत्व काम करते हैं- तकनीक और मानसिकता। अमेरिका अपनी मानसिकता से जीतता है। उसके जानदार तैराक माइकल फेलप्स इसका उदाहरण हैं। वे 31 की उम्र में अपेक्षानुरूप प्रदर्शन कर रहे हैं। यह तैराकों के रिटायरमेंट की उम्र होती है। आस्ट्रेलिया के महान तैराक इयान थोर्प आज कहां हैं? पता नहीं। वे भी फेलप्स होते किंतु उनकी मानसिकता अमेरिकी नहीं थी। वे अपने समलैंगिक होने और डिप्रेशन में चले जाने जैसे अनचाही खबरों से जूझते हुए रिटायर हो गए। फेलप्स भी बदनामी और नशेड़ी होने की बदनामी से दो-चार हुए। उनके देश की स्पोर्ट्स कम बिजनेस पॉलिसी ने उन्हें अकेला नहीं छोड़ा। दूसरी ओर चीन तकनीक पर काम करता है। चीन की मानसिकता वैसे भी अन्य देशों से श्रेष्ठ होने की है। इसलिए विश्व की दो सबसे प्रभावी आर्थिक और सामरिक शक्तियों के बीच ही आज ओलंपिक खेलों की मुख्य लड़ाई है। रूस का रिक्त स्थान चीन ने भर दिया है। चीन आधुनिक साम्यवादी देश है जो वस्तुत: पूंजीवाद का पालन करता है।
इस मापदंड पर भारत को खेलों की विश्व शक्ति बनने में अभी लंबा समय  है। हमारे पास जुगाड़ की तकनीक है। इसलिए ही एथलेटिक्स में हम पिछड़े हैं। दूसरे देशों की तकनीक हमारे लिए काम की नहीं। हर देश का अपना स्वभाव होता है, खेलों की तकनीक उस स्वभाव के हिसाब से तैयार होती है। चीनी मार्शल आर्ट्स  में माहिर हैं , उन्होंने खेल में इसे ही अपनी तकनीक बना लिया। देखिए चीन कोसों आगे निकल गया। भारत को अपने देश की तकनीक पर ध्यान देना चाहिए। हमारे खिलाड़ी देशी कोचेस से प्रशिक्षण पाकर नेशनल रिकार्ड बनाते हैं। नेशनल लेवल पर आने के बाद उन्हें एक परंपरा के तहत कोचिंग के लिए विदेश भेज दिया जाता है। विदेश से आकर वे उस लेवल का फरफार्मेंस भी नहीं दे पाते जितना उनका नेशनल बेस्ट होता है। हमारे खेल संचालकों ने अपने ही देश में तकनीक नहीं तलाशी। दक्षिण भारत, विशेषकर केरल में देशी तकनीक उपलब्ध है। मुझे ठीक-ठीक नाम नहीं पता पर वे चीनी मार्शल आर्ट्स के बराबर हैं। उदाहरणार्थ महाराष्ट्र में सम्मान रखनेवाली मल्लखंभ तकनीक पूर्णत: भारतीय है। इसे जिमनास्ट में असरकारक रूप से इस्तेमाल करने में हम असफल रहे। हम फॉलोवर ही रह गए। देशी तकनीक से ही जीतने की मानसिकता का जन्म होता है। हमारे पास जो है-उनके पास नहीं, वाला मानसिक बल। जमैका के उसैन बोल्ट को लीजिए। वे अमेरिका के आधिपत्यवाली फर्राटा रेसों के बादशाह हैं। वे अपने कोच को अपनी सफलता का श्रेय देते हैं । एक जमैकन जब अमेरिका के दंभ को हरा सकता है तो हम भारतीय क्यों नहीं? जमैका के बराबर तो हमारा नया राज्य तेलंगाना है।
आलोचना पर हम शोभा डे को अपशब्द कहने लग जाते हैं। खेल संगठनों और इन्हें पोषित करनेवालों को रियायत देते हैं। खेलों से हमारी सोच नहीं मेल खाती। हम राजनीति में माहिर हैं। शोभा डे भी। इधर-उधर। टांग खिंचाई। क्षेत्रीयता, धर्म, समाज, जाति। सोच हमारी यहीं तक सिमटकर रह जाती है। दीपा कर्माकर अगर 14 अगस्त को गोल्ड जीत लाती हैं तो इसे भाजपा सरकार अपनी उपलब्धि बताएगी।  पहलवान नरसिंह को पदक मिलने पर इसका श्रेय खेल मंत्रालय ले लेगा। कहेगा- देखा इस पर डोपिंग का संगीन इल्जाम लगा था, हमने कहा, नहीं ये देशभक्त है, इसे ओलंपिक में जाने से कोई नहीं रोक सकता। पदक नहीं मिला तो कहेंगे- क्या करें प्रेशर था।
 पदक लानेवाले खिलाड़ी अगले पांच से दस सालों में राजनीति में चले आएंगे। राज्यवर्धन सिंह राठौर की राह पर। ओलंपिक कमेटी में वही लोग आते-जाते रहेंगे जो अमेरिका और चीन के एथलीट्स के अलौकिक होने की बात कहते हैं। नरेंद्र मोदी ने व्यापारिक राजनीति के एजेंडे को सक्रिय करते हुए मेक इन इंडिया प्रोग्राम चलाया है। वे अगर अपनी हवाई यात्राओं और फॉरेन अफेयर्स टीम का खर्च मिलाएं तब भी शोभा डे की तरह ओलंपिक दल से आगे ही रहेंगे। मतलब कि मोदीजी की हवाई यात्राओं का व्यय ओलंपिक दल पर लगाई रकम से कम होगा। मोदीजी ने कभी अमेरिका, चीन, आस्ट्रेलिया और रूस की खेल नीति पर गौर नहीं किया है। इन राष्ट्रों की खेल नीति ही उनका -मेक इन प्रोग्राम- है। वे खेलों से दूसरे देशों को प्रभावित करते हैं। चाइना का नाम पदक तालिका में ऊपर देखकर ही निवेशक आकर्षित होते हैं। अमेरिका अपना व्यापार खेलों से फैलाता है। खेलों का सामान बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी नाइकी (हमारे देश में इसे नाइक कहा जाता है) अमेरिका की है। भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी वही तैयार करती है। इसके लिए वो बीसीसीआई को मुंहमांगी रकम देती है। बदले में एशिया को सबसे लोकप्रिय खेल सितारों की छाती पर राइट का निशान नजर आता है। इससे अच्छी बिजनेस पॉलिसी क्या हो सकती है। हम तो नाइकी और एडिडास के इतने मुरीद हैं कि अगर उसके स्पोट्र्स शूज फार्मल पार्टी में भी पहनकर चले जाएं तो उद्धृत करना नहीं भूलते कि नाइकी का है..एडिडास का है।
तात्पर्य है कि ओलंपिक की पदक तालिका से देश की ब्रांडिंग होती है। उसकी अर्थव्यवस्था परिभाषित होती है। हमारा खेल मंत्रालय एक सफेद हाथी है। जिसने आज तक हमें विवादों के पदक परोसे हैं। मोदीजी एक ही वक्त में अनेक काम करने की कोशिश में लगे हैं। वे केवल तीन या चार क्षेत्रों पर फोकस करें तो सुधार संभव है। खेल इनमें से एक होना चाहिए। हमें खेलों पर एक लांग टर्म प्लान बनाना चाहिए। खिलाड़ी बनोगे, एक नेशनल खेलोगे और सरकारी नौकरी मिल जाएगी, के स्पोट्र्स स्ट्रक्चर को तोडऩा होगा। आप खिलाड़ी हैं तो खेल ही खेलें। नौकरी न करें। खर्चा सरकार उठाएगी। लौटते हैं शोभा डे पर। उनका भी बिजनेस चौपट हो गया है। पेज थ्री पार्टीज से निकलनेवाली खबरें अब पीआर कंपनियां जेनरेट करती हैं। हर कंपनी के पास अपनी शोभा डे है। विवादित खबरों से सेलिब्रिटी बनी शोभा डे को अपना यह स्टेट्स बनाए रखने की आवश्यकता है। वे ओलंपिक दल को निशाना बनाकर नई शुरुआत कर रही हैं। मोदीजी को भी व्यक्तिगत आकांक्षाएं त्याग देनी चाहिए। मुझे बार-बार यह लगता है कि वे कहीं शांति के नोबेल का प्रयास तो नहीं कर रहे (पाकिस्तान के सामने उनकी कमजोरी यही बयां करती है)। मेक इन इंडिया की उनकी यात्राओं से इतना ही फायदा हुआ है कि हम उन देशों से ऐतिहासिक बिजनेस कर रहे हैं जो ओलंपिक में हमारी तरह दो-चार पदक लेकर आते हैं। जहां से दाल आनेवाली है ,उस देश का नाम क्या है? पता करना हो तो ओलंपिक चार्ट में भारत का नंबर खोजिए उस देश का नाम पास ही लिखा होगा।

No comments: