Wednesday 27 July 2016

उन्हें किससे डर लगता है? raman's long run 1

 शुरुआत अपनी परेशानी के साथ; रमन सिंह को मैं  कैसे जान सकता हूँ? वो मोदी जैसे होते तो जान जाता।मोदी को तब भी पूरा देश जानता था जब वे केवल गुजरात के मुख्यमंत्री थे।  दिक्कत यह भी है कि  रमन सिंह भाजपा के अन्य नेताओं की तुलना में खुले हुए नहीं हैं। होंगे , लेकिन राष्ट्रीय परिदृश्य में ऐसे लगते हैं। मैंने कुछ विधायकों से सुना था कि 'डॉक्टर' को अधिक दवाएं पसंद नहीं। दुआओं पर भरोसा है। ये मैं उनके प्रोफ़ेशन के बारे में ही कह रहा हूँ। राजनीति के प्रोफेशन के बारे में। बाकी इलाज़ पानी के बारे में उनका परफॉर्मेन्स पता नहीं। अब रमन सिंह ने मोदी का मुख्यमंत्रीवाला रिकॉर्ड तोड़ दिया है। क्योंकि मोदी प्रमोशन पाकर प्रधानमंत्री हैं और यही उनकी मूल पहचान रहेगी। मैं सोचता हूँ रमन सिंह कैसे याद किये जाएंगे! किस्मतवाला मुख्यमंत्री? या करिश्माई? या ओके टाइप। (ओके टाइप - जब कोई दूसरा ऑप्शन न हो।)
 सवाल है कि रमन सिंह इतनी बड़ी पारी के बाद भी मोदी या नीतीश सरीखे राष्ट्रीय क्यों नहीं हो पाए? क्योंकि उन्हें उनके ' मैं यहीं ठीक हूं ' वाले हुनर के कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी। और उन्होंने इसे अपने सफलता सूत्र के रूप में अपना लिया। वे मुद्दों को अपने झोले तक रखते हैं।  लंबे समय से संसद में बड़े नेताओं को चेहरा दिखा रहे रमेश बैस इस राज को जानते हैं। क्या अपने में विनम्र बने रहना ही रमन सिंह को इतनी दूर तक ले आया? क्या बैस और अग्रवाल जानते थे कि रमन लंबे चलेंगे? शायद डॉक्टर रमन भी यह नहीं जानते थे। उन्हें यह भी पूछा जाना चाहिए कि  अब आप आगे की क्या सोच रहे हैं? वे कहेंगे जनता की सेवा करनी है। वे अपने संबोधनों में अक्सर 'मैं डॉक्टर रमन' कहते हैं।
वैसे नैतिक धरातल पर जोगी को छोड़कर छत्तीसगढ़ का कोई बड़ा नेता मीडिया ट्रायल से नहीं गुज़रा। जोगी का फाइनल रिजल्ट आज तक  नहीं आया। जिन समूहों ने यह किया उन्हें कथित तौर पर उपेक्षित किया गया, वो सरेंडर हो गए। पब्लिक बोर हो गई। हम 16 साल में एक नेता नहीं खड़ा कर पाए!
 हमको 16 साल में दो ही मुख्यमंत्री नसीब हुए। अधिक विकल्प नहीं मिले। कह सकते हैं कि बतौर मतदाता हमारी ईच्छाशक्ति सीमित रही। माना जाता है कि किसी एक का लंबा शासनकाल भ्रष्टाचार को पनपने का मौका देता है। रमन सिंह का सीमा में बने रहना उनके शासनकाल की कमजोरियों पर भारी पड़ता है। केंद्रीय नेतृत्व के सामने अधिक सौम्यता उन्हें कामचलाऊ की श्रेणी से ऊपर रखती है, उनका यही  प्लस ऊपर जाकर माइनस हो जाता है। वे राष्ट्रीय नहीं हो पाए। शायद वे मुख्यमंत्री से अधिक की सोचते नहीं होंगे। वे छ्त्तीसगढ़ को कहाँ ले गए इस पर रिसर्च होगी तो नंबर उनको फर्स्ट डिवीज़न के मिलेंगे। वे कहाँ चूक गए यह पब्लिक बता देगी। छत्तीसगढ़ के शहरों में छत्तीसगढ़ियापन नदारद है। शायद इसलिये  उन्होंने अपने चेहरे को आगे रखने के लिए  गांवों को चुना। वो शराब को बहने से नहीं रोक पाए हैं। प्रशासन को जिम्मेदार नहीं बना पाए हैं।  ईमानदार होने का कोई सबूत पेश नहीं कर पाए हैं। उन्हें ललकारने को खड़ा कोई नैतिक व्यक्ति भी नहीं है जो अपने को साबित कर पाए। मीडिया राजनीतिक हास को लेकर अधिक संवेदनशील नहीं है। उसके पास अधिकार  नहीं है।  कांग्रेस फुसफुसाकर कहती है कि रमन सिंह ने समाचार चयन और  प्रकाशन की जिम्मेदारी भी ले रखी है। परन्तु मीडिया देश में कहाँ स्वतंत्र है? हमारी केंद्र और राज्य  सरकारें इस मामले में चीन की मीडिया पॉलिसी  को फॉलो करती हैं। हम जो चाहेंगे वो छपेगा नहीं तो तुम्हारी रोजगारी गई। रमन ने 'मोदी मुख्यमंत्री सीमा' लांघने के बाद कोई  भव्य आयोजन नहीं किया।
 - नमस्कार
उन्हें किससे डर लगता है? क्या वे अपने इस दौर को अपना चरम मान चुके हैं। वे अपनी विरासत के रूप में क्या छोड़ कर जाएंगे? अभिषेक सिंह अथवा राजेश मूणत!

Monday 16 May 2016

राहत किसी शहर में रहती होगी !- 1

राहत  किसी शहर में रहती होगी !- 1 

यहाँ सीएनजी ऑटो में अब दिल लगता नहीं। तुम आ जाओ । 
"ओह राहत तुम कहां हो! पहले कभी कहा नहीं, सामने नहीं हो तो बोल सकता हूँ ,  कहाँ हो मेरी जान" 
मोबाइल तुम्हारा झंडू था, इसलिए  व्हाट्सअप नामक पापी सॉफ्टवेयर ने तुम्हारे माथे पर लास्ट सीन भी नहीं लिखा होगा। फेसबुक तो तुम्हारा कब से अपडेट नहीं है। 
तुमको मैं फाइंड कैसे करूं? कोई सगा तुम्हारा ... ?? था भी कौन ! 
आओगी तो पाओगी कि यहाँ टिंडा बाजार में टिंडर हो गया है। ओह... तुम टिंडा गर्ल .. कहाँ  हो तुम ? 
तुम टिंडा खानेवाली , पाव किलो बोलने वाली, जबकि मैंने तुम्हें कहा था पाव किलो नहीं होता।
"या तो पाव होता है या किलो होता है " 
टिंडा खरीदने बाजार जाने वाली और मुझसे थोड़ा-बहुत वहीं बतिया लेनेवाली तुम टिंडर क्या जानो ?
हम ना तो घर-घर खेल पाए, और ना टिंडर-टिंडर।  
खैर छोड़ो 
हम लास्ट बार कब मिले थे ??????? 
शायद एक नौकरी की तलाश में ! तुम सुट्टा लगाते लड़कों के बीच से निकलने की कोशिश कर रही थी। 
फिर किसी ने तुम्हें सेक्सी कह दिया। तुम नाराज़ हो गई। मैं खुश था। 
तुम सेक्सी हो। मैं नहीं कह पाया था, उस क्लासिक माइल्ड की अवैध औलाद ने कह दिया।
ये कॉम्प्लिमेंट है !  बड़े शहर में यही होता है!!तुमने खुद को पीछे से नहीं देखा ना ! पीछे से तुम वही हो जो उस लड़के ने कहा।  तुम्हारे साथ होने के बाद तुम्हें जाते हुए देखना .. ओह राहत तुम सेक्सी हो। पीछे से। 
तुम उसके बाद से जाने कहाँ गई ?  एक मिस कॉल भी नहीं छोड़ा। 
तुम्हारे जाने के बाद जिंदगी ऑटो हो गई है। हर चौक पर रुककर आगे बढ़ जाती है। 
किराया अलग बढ़ रहा है। मंजिल है कि सुबह कुछ और होती है... और शाम कुछ और ! 
ये मंजिल क्या है ? 
शायर लोग लिख मारे .. हम मर रहे हैं... मंजिल हर दो -तीन साल में बदल जाती है और हम साले वहीं के वहीं। 
तुम क्या 'कट' ली, अपन तो आवारा  हो गए। कल तुम्हारी सहेली मेट्रो में थकी हुई  मिली थी। पीछे एक विराट कोहली टाइप हेयर कटिंग वाला लौंडा उसकी जींस की पिछली जेब में बटन टांक रहा था।   
मैंने तुम्हारे बारे में पूछा तो फ्रैंकली ... फ्रैंकली करके बोल रही थी।
 वो बोली " फ्रैंकली बोलूं तो राहत का पता नहीं।  वो सेक्सी नहीं थी ना , फ्रस्टेट होकर रहती होगी किसी शहर में , फ्रैंकली बोलूं तो "