Friday 7 October 2016

मगर ...

इस चित्र को देख कैसा महसूस होता है सोचिए, इसने मुझे रोक लिया ऐसे ही, मानो ये कविता इसके लिए ही बनी हो।

मगर ...

बहुत दर्द दिया उन बातों ने
मगर
तूने रोने कहां दिया,

हम जानते थे उनका मतलब
मगर
तूने बताने कहां दिया,

हालात बेकाबू नहीं थे उतने
मगर
तूने संभलने कहां दिया

आखिरी अंजाम हमें था मंजूर
मगर
तूने भुगतने कहां दिया,

सिलसिले प्यार के रहे थे उफन 
मगर
तूने मिलने कहां दिया,

हमारी रात बाकी थी उतनी ही
मगर
कमबख्त, तूने सोने कहां दिया,

जिंदगी सब पर उधार थी मेरी
मगर
तूने  मरने कहां दिया,


लाश बन  गया था मैं उसी दिन
मगर
तूने जलने कहां दिया !



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