Monday 7 November 2016

न्यूट्रल आदमी


भावुक होना, जज्बाती होना, इमोशनल होना क्या है? अगर आप मेरे इस सवाल को समझ रहे हैं, और मन ही मन उत्तर दे रहे होंगे तो मौखिक बताइए बहकना क्या है?
मुझे आपकी आवाज नहीं आई। क्या मेरी आवाज आप तक पहुंच रही है। मैं न्यूट्रल आदमी हूं माई-बाप। मेरी आवाज दब गई है। कभी कोई पकड़ लेता है, कभी किसी को लगता है इसकी गर्दन मरोड़ दूं। इस चक्कर में अकेला पड़ गया हूं। पुराने न्यूट्रलिटियों ने हार मानकर चुन-चुनकर पक्ष चुन लिए हैं। इससे उनका पेट भर रहा है, जुबान चल रही है। इस बीच मैं भूखा-नंगा अपनी बात रखने की भरपूर कोशिश करता हूं और नकार दिया जाता हूं।

 बैन करने वाले और बैन का विरोध करने वाले कहते हैं- " तुम्हारा तो कोई पक्ष ही नहीं है।"  हर कोई पूछता है कि तुम किसके साइड हो। मैं कहता हूं " फैसला नहीं कर पा रहा।"  इतने में ही मेरी बखिया उधेड़ दी जाती है। कहा जाता है " कैसे आदमी हो कोई एक स्पष्ट गुट नहीं, पक्ष नहीं? तुम तो रीढ़हीन प्राणी हो।"

कई बार तो डर लगता है कि मेरे न्यूट्रल आदमी होने की वजह से कहीं आप लोगों ने मुझे पढऩा छोड़ दिया फिर क्या होगा? यही रोजी-रोटी है हे मेरे पाठक, मेरे दाता। पढऩा मत छोडि़एगा। मैं न्यूट्रल नहीं रहने की जी-तोड़ कोशिश में लगा हूं। डर लगा रहता है, कब कौन सी बात किस पक्ष को बुरी लग जाएगी! लिखते हुए हाथ कांपते हैं, पता नहीं पक्ष नहीं होने से लिखी बात समझ आएगी-नहीं आएगी। जिनको समझ आई ठीक, परंतु जिन्हें नहीं समझ आई वे तो अपनी विचारधारा लेकर मेरा मर्डर कर देंगे।

वर्तमान परिवेश में न्यूट्रल आदमी वो अवांछित तत्व है जो आर्टिफिशियल धाराओं में नहीं बह पाता। विचारधारा-पार्टी, आंदोलन, समर्थन-विरोध उसके पल्ले नहीं पड़ते। वह बात-बात पर सेंटी हो जाता है। समर्थन जताते हुए कब विरोधी हो जाता है और विरोध दर्ज कराते किस क्षण समर्थक हो जाता है, पता नहीं चलता।
डॉक्टर कहता है " यह दिल का मामला है। दिमाग पर दिल का भारी होना दिल की बीमारी है। इसे मेडिकल साइंस की भाषा में सेंटीरिया (सेंटी हो जाना)कहते हैं। कभी भी हार्ट-अटैक आ सकता है। "
डॉक्टर कहता है " सेंटी होकर आप बहक सकते हैं। बहक कर सेंटी भी हो सकते हैं। लेकिन बहकना, बहकना ही है। सेंटी होना न्यूट्रल आदमी के लिए कॉलेस्ट्राल बढ़ाना है। "

बहकने का सवाल ही नहीं पैदा होता। जिनके पास अपने पक्ष हैं वे बहकें फिक्र नहीं, उन्हें गुटबाजी का अधिकार मिला हुआ है। गनीमत है संविधान में बहकने को मौलिक-नागरिक अधिकारों की लिस्ट में नहीं रखा गया है। इमोशन चूंकि दिखता नहीं। जो चीज नजर न आए उस पर अनुच्छेद-धारा आदि-इत्यादि लागू नहीं होते। इस स्थिति में एक न्यूट्रल आदमी क्या करे? ऊपर से उसे सेंटीरिया ने जकड़ रखा है। गुटबाज कहेंगे 'एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा।' न्यूट्रल आदमी कहेगा " एक तो न्यूट्रल ऊपर से गुटबाजों से बहस में पड़ा।"

चलिए आप पढ़ रहे हैं तो न्यूट्रलिटी को थोड़ा और विवेचित करता हूं। जरूरी नहीं कि मैं जो कह रहा हूं वो आप मान लें। आप उसकी अच्छी जांच-पड़ताल करने के बाद ही निष्कर्ष पर पहुंचे। आपका यह बंदा फेसबुक और व्हाट्सएप की दुनिया में न्यूट्रल होने की वजह से जलील होता पड़ा रहता है। निष्कर्ष तक पहुंच जाएं तो आप अपना एक संदेश भेजकर मुझे जीवन रहते मोक्ष प्रदान कर सकते हैं। गौरतलब है कि मेरे फोन में एसएमएस भी स्वीकार किए जाते हैं।

लौटकर आते हैं न्यूट्रल आदमी पर। दुनिया बनानेवाले ने जो पहला आदमी बनाया था वो न्यूट्रल था। हम सब उसकी ही संतानें हैं। मतलब हमारा जींस न्यूट्रल है। हमारा डीएनए न्यूट्रल है। दुनिया के रचनाकार ने न्यूट्रल आदमी की रचना करने के बाद फुर्सत पा ली। उसने पक्ष-विपक्ष का नहीं सोचा और इस मुताबिक उसके फ्यूचर पर ध्यान नहीं दिया। न्यूट्रल आदमी ने परिवार नियोजन को धता बताते हुए जमकर संतानें पैदा कीं। वह भी सेंटीरिया से पीडि़त था। हो सकता है यह उसका जन्मजात रोग रहा हो। इसका एक लक्षण रोमांस है। रोमांस संतान उत्पत्ति का मुख्य स्रोत है। क्या अफ्रीका, क्या अमेरिका और क्या इंडिया। उस जमाने में देश थे भी नहीं। पूरी दुनिया ही न्यूट्रल थी। पहले न्यूट्रल आदमी ने संसार को रोमांस और अपने बच्चों से फुलफिल कर दिया।

न्यूट्रल आदमी के पोषित बच्चे आदमियत में खुश न रह पाए। बहक गए। उन्होंने बहकाऊ धाराएं बनाईं। कठोर विचारधाराएं बनाईं। और बंट गए। उन्होंने सेंटीरिया से मुक्ति का उपचार खोज लिया। सेंटीरिया के संक्रमण से बचने उन्होंने राजनीति का टीका लगवा लिया। कुपोषित न्यूट्रल संतानें देखती ही रह गईं।
न्यूट्रल विचारों को छोडक़र सभी विचारों ने अपनी दिशाएं बनाईं। दसों दिशाओं पर कठोर विचारधाराओं का कब्जा हो गया। दिशाओं के नाम के साथ 'पंथ' का प्रत्यय जोड़ दिया गया। ऐसा नहीं था कि न्यूट्रल आदमी की सारी औलादें ही गुटबाज हो गईं। उसकी थोड़ी-बहुत बची हुई वास्तविक इमोशनल संतानों ने निरपेक्षता को सिद्धांत मानकर जिंदगी आगे बढ़ाई। न्यूट्रल आदमी के वंशजों ने मिडिल क्लास का होना पसंद किया। आज के जमाने में हम मिडिल क्लास को गरीब कह सकते हैं (सातवें वेतनमान की विसंगतियों पर बाद में बात की जाएगी)। दुनिया के प्रारंभ में मिडिल क्लास नहीं था। इसे न्यूट्रल आदमी की संतानों ने ही बनाया है जिन्हें लगा न्यूट्रल रहकर खुश रहा जा सकता है।

दुनिया के सबसे निरपेक्ष देश में न्यूट्रल वर्ग बड़ा न्यूट्रल-न्यूट्रल सा चल रहा था कि फेसबुक आ गया, ट्विटर आ गया, इधर-उधर का सब इन दोनों में आ गया। वर्चुअल वर्ल्ड  बन गया। वर्चुअल वर्ल्ड  आदमी ने बनाया है,  भगवान ने नहीं, अतएव इसमें न्यूट्रीलिटी वर्जित कर दी गई। न्यूट्रल समाज के बचने के चांस जाते रहे। डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने कहा-" इन्हें अब भगवान भी नहीं बचा सकते, क्योंकि भगवान पर भी कब्जा है। उन्हें गुटविशेष में शामिल कर लिया गया है बिना उनकी एनओसी के। "

आगे की कहानी है - भगवान की बनाई दुनिया में जिस तरह देश बने। मनुष्य के वर्चुअल वर्ल्ड  में भांति-भांति के पेज बने। हर पेज पर एक चौराहा बनाया गया। चौराहे के बीचोंबीच बोर्ड लगाकर सवाल चिपकाया गया- " आपको किधर जाना है? कौन सा पंथ आपका है? किस पार्टी की विचारधारा के हो? राष्ट्रवादी हो, नहीं हो?  देशभक्त हो, नहीं हो? सेक्युलर हो, नहीं हो? वामपंथी हो, नहीं हो? समाजवादी हो, नहीं हो? " न्यूट्रल आदमी के मुंह से  सारे सवालों का जवाब एक ही निकल गया " नहीं भैया इनमें मेरी कैटिगिरी नहीं है। मैं तो आम टाइप का आदमी हूं। आप न्यूट्रल कह सकते हैं।"  करारा जवाब मिला " नहीं हो, तो हम पक्ष को तुम्हारे अंदर इंजेक्ट कर देते हैं। बताओ क्या बनना चाहते हो। फेसबुक का हैश टैग चुन लो। ट्विटर का ट्रेंड  चुन लो। भाजपा चुन लो। कांग्रेस चुन लो। दोनों नहीं पसंद, ऐसे में आगे से राइट जाकर लेफ्ट चुन लो। लेफ्ट में कुछ राइट नहीं लगे तो बेझिझक बोलना हमारे पास नया माल है आम आदमी पार्टी। इसको चुनने में सनकी होने का खतरा है मगर पापुलारिटी कम नहीं है। हमारे पास हर प्रकार का इंजेक्शन है। बस न्यूट्रल मत बने रहो।"

न्यूट्रल आदमी ने पूछा " यह क्यों?"  चौराहे की जमीन पर लकीर खींच रहे गुटबाजों ने कहा " न्यूट्रीलिटी किसी कीमत पर बचनी नहीं चाहिए। न्यूट्रल आदमी कमजोर होता है। उसे मृत्युदंड दिया जाना चाहिए। उसके बच जाने से न्यूट्रलिटी का संक्रमण फैल जाएगा। "

अंतत: नए सिरे से सॉफ्टवेयर पर मानव मूल्य उकेरे गए। लिखा गया, न्यूट्रल होना वर्चुअल वर्ल्ड में अपराध है। आप भावुक नहीं हो सकते किंतु पूरे अधिकार के साथ बहक सकते हैं। आपको एक पक्ष चुनना ही होगा। पक्ष आपको संकटों से बचाएगा। एक पक्ष आप को बैन करने का अधिकार देगा, दूसरा पक्ष आपको बैन से बचाएगा। अगर कोई एक पक्ष नहीं रखा तो न्यूट्रलिटी का बच्चा मारा जाएगा। उसकी लाश को वहां दफनाया जाएगा जहां से उसके शरीर से निकलता सेंटीरिया संक्रमण वहीं दबा रह जाएगा। न्यूट्रल होना किसी सूरत में नहीं स्वीकारा जाएगा।
 
इसलिए मैं न्यूट्रलिटी से निजात पाने का उपाय ढूंढ़ रहा हूं। मुझे सेंटीरिया से छुटकारा चाहिए। आप कुछ उपाय बताएं, ये कमबख्त दिल बड़ा न्यूट्रल है, दिमाग की सुनता नहीं।
ऐ (न्यूट्रल) दिल है मुश्किल

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