Tuesday 25 October 2016

बेपरदा ख्याल


बेपरदा ख्यालों ने मेरी बात रख दी
गुजारिश मगर उनसे जुदा नहीं थी 
कहा होगा जर्रे को दोस्त मिला नहीं
उसकी ख्वाहिशें दबी रह जाती हैं 

मेरे हाथों खाक हुए हैं जलते चिराग
इसलिए सिरहाने जला रखे  हैं रातों में
और जल मैं भी जाऊं तो अंधेरा होगा
पेशानी पर कब्र बना रखी है ऐसी 

किस्मत से रुठकर बैठना छोड़ दिया
आंसू बह रहे मौजों के थपेड़ों से    
आहटों ने फैलाई होगी खुशफहमी
 पुराना आशिक लौटा है शहर में 

बेमुरव्वत होकर देखना राहों को
मेरे कत्ल का हो पक्का चश्मदीद 
धोखेबाज कागजों में नज्म लिखी है
अक्स तेरा खुद में समाता देखकर 

आरजू का फासला है बेखुदी से
लेकिन बेपरदा ख्याल हकीकत हैं 
सजा इनको भी मुझसे ही मिलेगी
इनका जुर्माना मेरी जिंदगी भरेगी   

-tapas


{-: नाचीज़ आवारा  आशिक़ी का शायर है, रवानी उसकी मोहब्बत में भी है मगर लफ्जों ने किनारा कर लिया तो बेचारा क्या करे ! }

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