Friday 12 August 2016

व्हाट ए इन-टॉलरेंस


शाहरुख खान के इंटरव्यूज पढ़ें तो वे विदेशी शहरों को अपनी पसंदीदा जगह बताते हैं। लंदन उनका प्रिय है। उन्होंने वहां मकान वगैरह खरीदा हुआ है। उनके बच्चे वहीं पढ़ते हैं। वे बार-बार दुबई जाते रहते हैं। अमेरिका भी निश्चित तौर पर उनको खींचता है। आज की फजीहत से पहले पिछली बार उन्हें अमेरिका के एयरपोर्ट पर घंटों बिठाया गया था। तब यूपीए की सरकार थी। उन्होंने पत्रकार से नेता और फिर केंद्रीय राज्यमंत्री बने राजीव शुक्ला को फोन कर अपनी व्यथा बताई। शुक्ला के हस्तक्षेप के बाद शाहरुख को छोड़ दिया गया। चलिए कल्पना करते हैं कि इस बार अमेरिकी इमीग्रेशन डिपार्टमेंट ने उन्हें किस तरह बिठाया होगा। शाहरुख बार-बार उन्हें कह रहे होंगे ‘‘आप गूगल कर लो। माय नेम इज खान एंड आई एम नॉट एक टेरेरिस्ट।’’ शाहरुख ने अपने राजीव शुक्ला टाइप किसी एप्रोच को फोन लगाकर मोबाइल अमेरिकी अधिकारियों को देने की कोशिश की होगी - प्लीज टॉक टू हिम.. ही विल टेल यू हू एम आई (इनसे बात कीजिए, ये बता देंगे मैं कौन हूं)। जैसे हमारे यहां रोड पर चालान कटने पर हम नेता-अधिकारी या पत्रकार को मोबाइल लगाकर हवलदार की ओर बढ़ाते हैं। अमेरिकी अफसर ने मोबाइल नहीं पकड़ा होगा। शाहरुख को इंडिया याद आया होगा। हमारे अधिकारी ना-नुकुर करते हुए भी मोबाइल लेकर बात करते हैं, चाहे सामने शाहरुख हो या समारु। तमाम भारतीय सुरक्षा विभाग सहिष्णु हैं। शाहरुख ने अपने 50वें जन्मदिन पर बड़े न्यूज चैनलों को न्योता भेजकर इंटरव्यू दिया था। जिसमें उन्होंने तकरीबन सभी पत्रकारों से कहा था ‘‘भारत में असहिष्णुता है।’’ उनकी जुबान में इन-टॉलरेंस। वे बड़े गर्व से कहते हैं कि असहिष्णुता वे नहीं बोल पाते। हिंदीभाषी देश में हिंदी फिल्मों से नाम बना चुका सितारा हिंदी के शब्द का मजाक उड़ाता है। उनकी तरह बहुत सी बड़ी हस्तियां उड़ाती हैं। रोमन लिपि में लिखी हिंदी पढ़ती हैं। इससे बड़ी सहिष्णुता दुनिया में कहीं नहीं होगी।  बड़ी हस्तियों के इंटरव्यू फिक्स होते हैं। उन्हें पहले ही बता दिया जाता है कि कौन से सवाल पूछे जाएंगे। अगर सवाल पर ऐतराज होता है तो उसे हटा दिया जाता है। इंटरव्यू के बाद भी कांट-छांट की जाती है। इलेक्ट्रानिक मीडिया में यह चलन अधिक है। वरिष्ठ पत्रकार पुण्यप्रसून बाजपेयी ने केजरीवाल का साक्षात्कार लेने के बाद ऑफ द रिकार्ड जो बातें की थीं, वो वीडियो के जरिए ऑन द रिकार्ड हो गईं और बाजपेयीजी की खूब खिंचाई हुई। बाजपेयीजी के कहे शब्द ‘क्रांतिकारी..बहुत क्रांतिकारी’ आज मीडिया की बातचीत में मजाक बन गए हैं। मैंने राजदीप सरदेसाई वाला शाहरुख का इंटरव्यू देखा था। शाहरुख अपने बिंदास स्वभाववश तड़ातड़ बोल रहे थे। दूसरे दिन इनटॉलरेंस पर शाहरुख का बयान ब्रेकिंग न्यूज बन गया। सभी चैनलों पर। इसके बाद एक और गजब चीज हुई। बरखा दत्त और उनकी शैली के पत्रकारों ने शाहरुख के सपोर्ट में लेख लिखे। शाहरुख के बयान को ब्रीफ किया गया।
आज कुछ न्यूज चैनलों ने शाहरुख के साथ अमेरिकी दुव्र्यवहार पर पट्टी चलाई- शाहरुख से अमेरिका ने माफी मांगी। हमने सोचा वही पुराना मामला होगा। यह नया निकला। शाहरुख को फिर बिठा दिया गया। इस बार तो हिरासत में लिया गया, ऐसा बताया जा रहा है। शाहरुख ने ट्विट कर इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा ‘‘बार-बार यह होता है। इस दौरान मैं मोबाइल पर पॉकेमोन खेल रहा था।’’ उन्हें अमेरिका के असहिष्णु होने पर ट्विट करना था ‘‘अब मैं यहां नहीं आऊंगा।’’ उन्हें पॉकेमान खेलते हुए याद आया होगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आए थे तो उन्होंने दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे फिल्म का डायलॉग अपने भाषण में इस्तेमाल किया था ‘‘बड़े-बड़े देशों में छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं।’’ शाहरुख को अमेरिकी अधिकारियों को वो वीडियो क्लिप दिखाना था। और वे बच्चों की तरह पॉकेमान खेल रहे थे जबकि अमेरिकी उनके स्वाभिमान से खेल रहे थे। उन्हें पिछली बार संकट से निजात दिलानेवाले राजीव शुक्ला इस बार मदद नहीं कर पाए। सो कह रहे हैं कि अमेरिका को अपना कंप्यूटर रिकार्ड दुरुस्त करना चाहिए। अब देखिए एक और करामात। कुछ चैनलों ने किस तरह खबरों को पलटा। पहले बताया- अमेरिका ने शाहरुख से माफी मांगी। फिर बताया - शाहरुख को यूएस के इमीग्रेशन दस्ते ने हिरासत में ले लिया था। अंत में बताया -भारत में अमेरिका के राजदूत रिचर्ड वर्मा ने मामले में खेद जताया है।
खेद और माफी में फर्क है। स्पष्ट करें कि यह माफी है अथवा केवल खेद।
आज की खबर से शाहरुख विरोधी खुश हो रहे होंगे। उन्हें खुश होने से पहले मोदीजी को वीजा नहीं दिए जाने के अमेरिकी फैसले के बीते दिन याद करने चाहिए। इस दौर के हमारे महानायक स्व. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ अमेरिकी एयरपोर्ट में हुआ अपमानजनक बर्ताव याद करना चाहिए। शाहरुख देश के लिए इतने महत्वपूर्ण शख्स नहीं हैं कि उनके साथ हुआ बर्ताव देश की अस्मिता से जोड़ा जाए। मोदीजी और शाहरुखजी में एक बड़ी समानता है। अमेरिका ने उनके साथ पहले जो भी किया हो, वे वहां जाने के नाम पर खुश हो जाते हैं। व्हाट ए इन-टॉलरेंस।

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