Saturday 6 August 2016

ज़्यादा हरा मुल्क 3 ( अंतिम)


 ज़्यादा हरा मुल्क ३ ( अंतिम)


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आतंकियों को मुर्दा देखने से सौ गुना बेहतर उनका जिंदा पकड़ा माना जाता है। अमानत के पकड़े जाने की खबर अंदर ही रखी गई। स्पेशल आपरेशन टीम के चुनिंदा सदस्य ही इस बारे में जानते थे। बल्देव सिंह उनमें से एक था। अमानत को मीडिया से बचाकर रखने की जिम्मेदारी उसकी थी। बंद कमरे में सीएफल को तिरछा लटकाया गया था। रोशनी दीवार में आ रही थी। केंद्र में अमानत था।
उसे बांधा नहीं गया था। उसके हाथ कुर्सी से नीचे झूल रहे थे, जिनमें पट्टियां बंधी थीं।
बल्देव सिंह ने सवालात शुरू किए ‘तूने कलाई चाक्क ली..साइनाइड कैप्सूल नहीं खाया..बाम्ब से नहीं उड़ाया ..गोली नहीं मार ली’
अमानत मरी हुई आवाज में बोला  ‘भूख लगी है जी..खाने को दे दो। ’ 
उसकी कटी कलाई से काफी खून बह चुका था। जिस्म में हरकत नहीं बची थी। कर्नल ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसे रसीद किया ‘तू हमें मारे, हम खाना दें।’
अमानत फरियाद करता हुआ बोला ‘ आपका ’ ज़्यादा हरा मुल्क है जी.. हमारे यहां तो सैलाब आ जाता है। खाना दे दोगे जी..सब बता दूंगा..’
- ‘ खाना खाने आया है यहां! उमर दस्स तेरी?’
- ‘ उमर ..शोला..’
- ‘ शोला! ओ.ओहो. सोल्ला। इत्ती कम उमर।’
- ‘ नाम बोल?’
- ‘ एफ  फोर..अमानत।’
बल्देव सिंह अपने तजुर्बे को इनफारमेशन निकालने का औजार बनाकर अमानत से पूछताछ करने लगा।
अमानत ने बताया कि उसका बाप बेकरी चलाता था। चार भाई थे और एक बहन। अम्मी बीमार रहती थी। सूबे की बाढ़ अब्बू को ले गई। बेकरी का काम नहीं संभला। तीनों भाइयों का निकाह हो गया था। अब्बू की गुमशुदगी के बाद सब अलग-अलग रहने लगे। बहन के निकाह के वक्त बाजार में गोलियां चल गईं। बहन भी गुजर गई। अम्मी का जिम्मा अमानत पर आ गया। अमानत को पैसे एक ही जगह से मिल सकते थे। ट्रेनिंग कैंप।
कैंप पहुंचा तो उसने जाना कि सैलाब को पड़ोसी मुल्क ने साजिशन उसके सूबे में भेजा था।
 अब्बू को इंसाफ जेहाद से मिल सकता था। 
अमानत कैंप में रहने लगा। अम्मी से मिलना नहीं हो पाता था। उसके गांव से आए एक लडक़े ने बताया कि अम्मी को कैंप चलाने वाले मौलाना के आदमियों ने पैसे नहीं भिजवाए थे। उसने मौलाना के बंदों से पैसे मांगे। बंदों ने कहा- अम्मी को पैसे चाहिए या अब्बू के लिए इंसाफ।
बल्देव सिंह ने घुमा-फिराकर बीसियों सवाल कर लिए। अमानत ने ऐसा कुछ नहीं बताया जो इतने दिनों की फौजी नौकरी में उसे नहीं पता हो। सारे घुसपैठिए आतंकी तकरीबन एक सी जानकारियां देते हैं। घंटेभर हो चुके थे। रात के दस बजने लगे। बल्देव सिंह का मोबाइल बजा। जाने से पहले उसने अमानत से सबसे महत्वपूर्ण सवाल किया  ‘तूने गोलियां क्यों नी चलाई हमारे सिपाहियों पर ’
- ‘ मुझे अम्मी के पास जाना था।’
- ‘ तो कलाई किसलिए कट्टी?’
जवाब नहीं मिला। अमानत बेहोश हो चुका था।
घंटेभर बाद बल्देव सिंह अपना टिफिन लेकर कमरे में ही आ गया। पंजाबी खाने की खुशबू फैल गई। बल्देव ने हाथ का कड़ा ऊपर कर सरदारों के विशिष्ट अंदाज में रोटी को तोड़ा। उसने अमानत की तरफ देखा जिसका शरीर हिल रहा था। वो बेहोशी और होश के बीच में लटकी आंखों से टिफिन को देख रहा था। बल्देव सिंह उठकर उसके पास गया। उसने कुर्सी से बाहर झूलते अमानत के हाथों हवा में उठाकर छोड़ दिया। अमानत के हाथ झट से नीचे गिरे और पहले की हालत में झूलने लगे। बल्देव सिंह ने अपना टिफिन रखा स्टूल उस तक खींच लिया।
उसने रोटी का टुकड़ा आलू-मेथी की सब्जी में लपेटा और अमानत के मुंह में डाल दिया।

                                            ............समाप्त ...............



(अमानत मरा, जिन्दा रहा ! बल्देव सिंह ने उसके साथ आगे क्या किया! यह कहानी का हिस्सा हो सकता था मगर अंत यही है। यहां मुल्कों का फर्क है।  अमानत पाकिस्तान की सूरत है और बल्देव सिंह भारत की। फर्क भूख और रोटी का भी है।)



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