Thursday 28 July 2016

राहुल गाँधी और मेरी कल्पनाएं

राहुल गाँधी को अगस्त में कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने का समाचार एबीपी न्यूज़ में एक्सक्लूसिव है। मैं समझने की कोशिश में हूं कि  भारत की अतिप्रचारित युवा आबादी में आज राहुल गाँधी क्या हैं? नए-नवेले युवा उन्हें साइबर चुटकुलों के आइने से तो नहीं देखते! और क्या कांग्रेसी भी अपने युवराज पर बनने वाले चुटकुलों को पढ़कर हंसते होंगे? हालाँकि कांग्रेसियों ने मोदी पर चुटकुले बनानेवालों को काम दे रखा होगा! मैं समझता हूं ये चुटकुलाकर्मी वही पुराने युवा हैं जो कभी मोदी समर्थक थे और पिछले लोकसभा चुनाव में कॉलेज में पढ़ते रहे होंगे।  मोदी अच्छी नौकरी दिला  देंगे उनको भरोसा रहा होगा। अच्छा पैकेज तो दूर जब नौकरी नहीं मिली तो मोदी के खिलाफ चुटकुले बनाने लगे। हाँ, लेकिन उनका काम और बेहतर होना चाहिए। क्योंकि आज भी मोदी पर उनके बनाये  चुटकुले राहुल पर बननेवाले चुटकुलों से अच्छे नहीं हैं। जनता चुटकुलातंत्र का मज़ा ले रही है। उसे इस महंगाई में इससे सस्ती चीज़ मिल भी नहीं सकती। राहुल के अनन्य सलाहकार दिग्विजय सिंह आजकल टीवी पर नहीं आ रहे हैं। नहीं तो बता देते कि राहुल गाँधी को ये नहीं करना चाहिए। मेरा अनुमान है वो अपना पुराना वीडियो ही देख रहे होंगे जिसमें वो डॉ. जाकिर नाइक के साथ मंच पर नज़र आ रहे हैं। राहुल ने उनसे कहीं यह तो नहीं कहा "आपको यह नहीं करना चाहिए था!"
मसला है -राहुल की वर्तमान छवि को सुधारने के लिए उनकी पार्टी कोई नया सलाहकार लेकर आएगी क्या?
 संसद में आँखे मूँद लेने को उनकी क्षमता से कैसे जोड़ा जा सकता है! क्या पता वो सोच रहे हों कि  इस बहस का कोई मतलब नहीं निकलनेवाला इसलिए निष्क्रिय मुद्रा धारण कर ली हो। वक़्त आ गया है कि राहुल को अपना सलाहकार खोजना चाहिए। नहीं तो उन्हें सोता हुआ नेता ही समझ लिया जायेगा। कांग्रेस अभी अपनी रणनीति को लेकर निश्चित नहीं है। राहुल का यूँ नज़र आना उसकी रणनीति को दिशाहीन कर देता है। इस बीच प्रियंका गाँधी का नाम हवा में तैरा दिया जाता है जैसे राहुल नहीं तो प्रियंका तो हैं। लगता है कि प्रियंका सीधे सक्रिय होंगी कि तुरन्त बाद कांग्रेस राहुल को ही आगे रखती है। देश के नए युवाओं को जो कांग्रेस के इतिहास से ज्यादा वाकिफ नहीं हैं , को लगता होगा कि कांग्रेस के पास सिर्फ राहुल हैं। कांग्रेस ने गाँधी परिवार को अपनी मज़बूरी बनाया।  इसके विपरीत मोदी भाजपा की मज़बूरी बन गए। असलियत में  मुलायम, मायावती और लालू यादव एक दृष्टि में मोदी की शैली के ही एकाधिकार बनाये रखनेवाले नेता हैं जो चाहते हैं कि उनके साथ उनकी पार्टी उसी तरह पेश आये जैसे गाँधी परिवार के साथ कांग्रेस पेश आती है। मोदी ने यह काम अमित शाह को सौंप रखा है। जबकि राहुल को विरासत में एकाधिकार मिला है। इस पर भी वे सांसारिक बातों से अनजान दिखते हैं। सांसारिक बात यह है कि संसद में बहस चल रही हो तो कैमरा एंगल देखना चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी एंगल से वे सोते हुए नहीं दिखें। अगले दिन चुटकुला बन सकता है।  वैसे कैमरा एंगल पर एक सलाह यह हो सकती है - 'अगला चुनाव जीतने के बाद लोकसभा टीवी का कैमरा एंगल कांग्रेस तय करेगी'। क्या यह कल्पना सच हो सकती है कि अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिल जाये और राहुल कहें  " मैं नहीं बनना चाहता प्रधानमंत्री" ।  सोनिया गाँधी ने यह किया है।
मैं यह शोध के बाद तय किया गया सदियों पुराना दादी माँ की घरेलू रैसिपी सरीखा वाक्य नहीं लिखना चाहता- ये तो आनेवाला वक़्त ही बताएगा। -नमस्कार


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