मैं एक मीटिंग में था। प्रोजेक्टर पर स्क्रिप्ट डिजाइन के नए-नए तरीकों का प्रेजेंटेशन चल रहा था। वहां मैं केवल एक श्रोता था। बोलने का अधिकार नहीं था मुझे। कॉफी ब्रेक हुआ और सामने करण जौहर की फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ का ट्रेलर चलने लगा।
ये वही फिल्म है जिसे इस दीपावली में रीलीज होना है लेकिन राज ठाकरे की पार्टी की धमकी की वजह से मुंबई में संशय बना हुआ है। इसमें पाकिस्तानी अभिनेता फवाद खान अभिनय कर रहे हैं।
मैं स्वयं नाट्य संस्थाओं से जुड़ा रहा हूं। कुछ नाटक लिखे हैं। थिएटर में अभिनय के अलावा हर प्रकार का काम किया है। एक लेखक के साथ-साथ थोड़ा-बहुत कलाकार भी हूं। इस नाते मैं फवाद खान के भारत आकर अभिनय करने के खिलाफ नहीं हूं।
फवाद खान ने उड़ी हमले के लंबे समय बाद अपनी चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने फेसबुक पर लिखा है कि वे अगस्त से लाहौर में हैं। इस दौरान उनके नाम पर जितने भी बयान आए हैं, उन पर ध्यान न दिया जाए। उन्होंने उड़ी हमले को एक ‘सैड इंसीडेंस’ माना है।
फवाद खान पाकिस्तानी सीरियलों के स्टार हैं। उन्हें सोनम कपूर की 'खूबसूरत' से बॉलीवुड में मौका मिला, वे बहुत जल्द अपना लिए गए। माशाअल्लाह वे काफी खूबसूरत हैं। स्वाभाविक अभिनय करते हैं।
फेसबुक पर फवाद ने बहुत सफाई से अपनी बात रख दी। मैं फवाद खान की देशभक्ति को सलाम करता हूं। न केवल वे एक अच्छे कलाकार हूं बल्कि एक सच्चे पाकिस्तानी हैं। उनके लिए पहले अपना देश है। पाकिस्तान उड़ी हमले से पल्ला झाड़ रहा है। फवाद ने पाकिस्तान की पॉलिसी का साथ दिया है, यह जानते हुए भी कि गलती उनके देश से हुई है।
और हमारे यहां करण जौहर हैं। मैं उनको लेकर मुगालता पाल भी लूं तो क्या! करण हमारे देश के शीर्ष निर्माताओं और निर्देशकों में शामिल हैं। मेरा एक और मुगालता है कि करण से फवाद जैसी देशभक्ति की उम्मीद बेमानी है। सलमान खान भी इसी श्रेणी के हैं। वे दुनिया से बेखबर रहनेवाले अल्पबुद्धि सा व्यवहार करते हैं। मीडिया के सवालों पर उनकी प्रतिक्रिया भी इसी प्रकार की होती है। रणबीर कपूर, अनुराग कश्यप और ओम पुरी वगैरह की कडिय़ां मिलकर इस चैन को पूरा करती हैं (इन सभी ने पाकिस्तानी कलाकारों का समर्थन किया है)।
करण, सलमान और पाकिस्तानी कलाकारों का समर्थन करनेवाले अन्य बॉलीवुड सेलिब्रिटीज के प्रशंसकों से निवेदन है कि वे कृपया फवाद खान के फेसबुक पेज पर जाकर उन्हें पढ़ें।
अब फवाद से अलग करण जौहर पर आएं। करण की कोई एक फिल्म बताएं जो इस काबिल हो कि आप उस पर एक बौद्धिक बहस कर सकें। करण जौहर की रातें फिल्म जगत की औरतों संग पार्टियों में बीतती हैं। इस पर भी वे कहते हैं कि अकेलापन मुझे डिप्रेस करता है।
बताओ भाई खुलकर तुम्हारे अकेलेपन का कारण क्या है?
लीक से हटकर बननेवाले रियलिटी सिनेमा पर उनका कहना है कि ऐसी फिल्मों के दृश्यों का साइलेंस समझ नहीं आता।
करण जौहर की सभ्यता से भी सभी का परिचय है। वे टीवी के रियलिटी शो में डबल मीनिंग शब्दों का प्रयोग बेधडक़ करते हैं। अपने टॉक शो में कलाकारों से उनके सेक्स रिलेशनशिप पर सवाल करते हैं। एआईबी रोस्ट जैसे निहायत घटिया शोज में अपनी मां के सामने सेक्स पोजीशन की बात करते हैं।
इस आदमी की ‘ऐ दिल है मुश्किल’ से आप कितनी उम्मीद लगा सकते हैं? जिसको लंदन के फाइव स्टार होटलों में बैठकर स्टोरी सूझती है। जिसकी फिल्में विदेशों में ही (खासकर लंदन ही) शूट होती हैं। जिसके मन में भारतीयता के प्रति सम्मान ‘कभी खुशी कभी गम’ में काजोल के फूहड़ चरित्र से अधिक नहीं है। उससे आपको उम्मीद होगी तो आप उनकी पिछली सारी फिल्में दोबारा देखें।
ऐसा नहीं है कि मैं करण जौहर या ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के खिलाफ हूं। मैं सोच रहा हूं कि पाकिस्तान को गर्व हो रहा होगा फवाद खान पर जिसने अपनी मंशा शब्दों की बारीकी से सही, व्यक्त कर दी। कितनी अजीब बात है कि पाकिस्तानी कलाकारों में फवाद खान ही बॉलीवुड के मोस्ट फेवरेट हैं।
मैंने कभी खुशी कभी गम के बाद करण जौहर की एक फिल्म ‘माय नेम इज खान’ देखने की भूल की थी। माय नेम इज खान का एक सीन है- शाहरूख खान अचानक काजोल से कहते हैं कि उन्हें सेक्स करना है। शाहरूख के चेहरे में इसका भाव नहीं दिखता। शाहरूख एकदम से बेमौके-गैररूमानी लहजे से अपनी अदम्य ईच्छा जाहिर करते हैं। काजोल चौंकने का सहज अभिनय करती हैं और शाहरूख के साथ कमरे में चली जाती हैं। दृश्य यूं बन पड़ा है मानों यह उन दोनों के लिए यह एक रुटीन वर्क है। सेक्स विदाऊट फीलिंग टाइप।
करण जौहर बताना चाहते हैं कि सेक्स की कोई टाइमिंग नहीं होती। फिल्म का हीरो (शाहरूख) भावना से भरा हुआ अर्धविकसित बुद्धि का इंसान है। पूरी फिल्म धार्मिक भेदभाव को मिटाने की भावनात्मक पृष्ठभूमि पर खड़ी है। लेकिन जिस दृश्य में भावना का सबसे अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता था, वहां करण चूक गए। फिल्म भी अत्यधिक नाटकीय बन पड़ी। अभिनय में इमोशन को आंखों से दिखाया जाता है। करण जौहर को साइलेंस की जुबान समझ नहीं आती। बेसिकली करण इस सीन में कहना चाहते हैं कि फिल्म का शाहरूख भोला और साफ दिमाग का है। वो जैसा सोचता है, बिना दुर्भावना के उसकी मांग रखता है।
करण जौहर ने अगर रियालिटी सिनेमा का साइलेंस समझा होता तो माय नेम इज खान का यह दृश्य बहुत ही प्रभावी बनता। यह भौंडा नहीं लगता। वे ऑफबीट सिनेमा नहीं देखते होंगे लेकिन स्क्रीनप्ले तो जरूर परखते होंगे। करण स्क्रीनप्ले पर अपनी सेक्सुअल सोच को दरकिनार कर काम करते तो यह सीन क्लासिक बनता। उनकी सोच की वजह से शाहरूख एक मासूम अधेड़ के रोल में सेक्स की अपील करते हुए बहुत ज्यादा असामान्य लगते हैं। सीन ऐसा है मानो शाहरूख का किरदार अपनी ही पत्नी से दुष्कर्म का मन बनाकर आया है। ठीक है कि शाहरूख एक अधिकार के तहत यह कहते हैं क्योंकि फिल्म में काजोल उनकी पत्नी हैं। उनकी डिमांड पर काजोल शानदार प्रतिक्रिया देती हैं। मगर क्या यह सीन हल्का नहीं बन पड़ा। क्या होता यदि इसके स्क्रीनप्ले में संवाद ही नहीं होते! इशारों में शाहरूख अपनी आकांक्षा प्रदर्शित करते। आंखों से अभिनय करते। चेहरे को हल्का उठाकर आंखों में गहराई लाते हुए प्यार दिखाते।
इरफान खान की लंच बॉक्स फिल्म देखिएगा। नवाजुद्दीन सिद्दीकी के एक सवाल के जवाब में इरफान खान तकरीबन 30 सेकंड तक चुप रहते हैं। उनकी आंखें जवाब ढूंढ़ती लगती हैं। दर्शक बंधा रहता है।
करण को सेक्स और प्यार में अंतर नजर नहीं आता। मैंने स्टूडेंट ऑफ द ईयर के बारे में यही सब सुना था। सौभाग्य से फिल्म नहीं देखी।
करण जौहर की सो कॉल्ड सुपर हाई क्लास सोच उन्हें सीमाओं से बाहर ले जाती है। उनकी सोच में उदारता का अर्थ खुला सेक्स है। एआईबी रोस्ट को होस्ट करने के पीछे यही कारण रहा होगा।
करण जौहर से निवेदन है कि एक बार सही, फवाद खान को फोन कर बोलें कि वे अपने फेसबुक पेज पर कुछ ऐसा लिखें जिससे हमारे दिल को तसल्ली मिले। लगे कि हमने पाकिस्तान के एक टीवी कलाकार को भारत की सिल्वर स्क्रीन पर पसंद कर, गलत नहीं किया।
निवेदन राज ठाकरे और उनके गुंडों से भी है कि ऐ दिल है मुश्किल को रीलीज होने दें।
करण जौहर को उनकी सोच और फिल्मों के साथ जीनें दें। हम भारतीय फिल्मी हैं। ऐ दिल है मुश्किल से पहले देश में चाहे कितनी भी मुश्किलें हों, चाहे वो मुश्किलें बार्डर पर पाकिस्तान से भेजी जाती हैं, हमें मंजूर हैं। हम करण जौहर की इस फिल्म को देखकर सब भूल जाएंगे। उड़ी हमले का हमारा दर्द जाता रहेगा।
करण की फिल्मों में मिडिल क्लॉस का मजाक बनाया जाता है। हमें यह भी स्वीकार है। हम अपनी मीडिल ‘क्लासियत’ के साथ ऐ दिल है मुश्किल देखेंगे। आखिर करण कामुकता के मसीहा जो ठहरे, हमारी सेक्स की भावनाओं को आराम देनेवाले।
हमारा पाखंड फिल्में ढंक देती हैं।
अंत में करण जौहर ने फवाद खान के मुंबई में विरोध पर जो कहा था उसका एक अंश ‘पाकिस्तानी कलाकारों को वापस भेजने से आतंकवाद रुक जाएगा क्या? ’
तुम्हारी देशभक्ति से मैं प्रभावित हूं फवाद,
और मुझे तुम पर दया आती है करण
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