Sunday 16 October 2016

शमीना और डरपोक बादल

 

 

ये एक कहानी है बचपन की। इसको बचपने में ही पढ़ें।  


मेरी झोपड़ी से होकर जाती नीली नदी के पार हरी घास का मैदान था। उसमें एक किला था। किले के ऊपर मीनार थी जिसके पास एक बादल रहता था। छोटा सा, सफेद और डरपोक बादल। बादल थोड़ा मोटू भी था। किला ऊपर की ओर खूब लंबा तना हुआ था। डरपोक बादल उसके सिर पर खरगोश के फर से बने कनटोप सा रहता। हल्के रंग के पत्थरों को चौकोर घेरों से जोडक़र किला बनाया गया था। लगता था हर पत्थर को एक फोटो फ्रेम मिला है।

किले के नीचे हरी घास का मैदान बहुत आलसी था। मैंने उसे कभी करवट लेते हुए नहीं देखा। मैं और शमीना उस पर दौड़ते। दौड़ते हुए हम जान जाते कि मैदान को गुदगुदी हो रही है। हंसी के मारे उसका फूला पेट हिलता मगर वो हंसते-हंसते वहीं पड़ा रहता। पलटी नहीं मारता था। शमीना ने बताया कि उसने हरी घास के मैदान को टांगें उठाकर पेट पर हाथ रखकर हा..हा..हंसते देखा है। मैंने भी उससे झूठ में कह दिया ‘मैदान के पेट में राक्षस सोता है। किले के अंदर भूत है और डरपोक बादल उसका बेटा है। ’

मैं और शमीना हरी घास के मैदान दौडऩे आते गांव चाचा को पीछे छोडक़र। गांव चाचा बुरे नहीं थे। मगर लड़कियों को लडक़ों के साथ खेलने से रोकते थे। कहते थे ‘लडक़ी और लडक़ा साथ खेले तो एक दिन भाग जाएंगे।’
मैं शमीना का दोस्त था। बारह साल का था। शमीना दस की थी। उसके अम्मी-अब्बू गांव चाचा से डरते थे। शमीना कहती ‘ मैं एक दिन इन सबको छोडक़र भाग जाऊंगी। ’

एक दिन दौड़ते हुए हम किले तक पहुंच गए। शमीना ने कहा ‘देखो मुंशी.. .वो डरपोक बादल हंस रहा है।’
 मुझे डरपोक बादल की हंसी नहीं दिखी। मुझे डरपोक बादल से चिढ़ थी।  मैं और शमीना किले के अंदर घुस गए। अंधेरा था। बीच-बीच में उजाला भी था। हम दोनों को डर लग रहा था। वहां कोई नहीं दिखा। शमीना ने मेरे एक हाथ को अपने दोनों हाथों से दबोच लिया।

किला बहुत प्यारा निकला। उसने हमें खीर और पूड़ी खाने को दी। बाद में मीठी गोलियां भी दीं। नींद आने लगी। मैंने देखा बड़े झरोखे के पास जाकर शमीना डरपोक बादल को देख रही है। डरपोक बादल उसे देखकर हाथ हिला रहा है। डरपोक बादल मुस्कुरा रहा था। किले ने हमें सोने के लिए सूखी घास के गट्ठर  दिए। मुझे लगा डरपोक बादल को शमीना अच्छी लगी। मुझे वो डरपोक बादल अच्छा नहीं लगा। बात-बात पर सुबकता था।

दूसरे दिन किले के बाहर गांव चाचा खड़े थे। उनको गुस्सा आ गया था। गांव चाचा किले पर चिल्ला रहे थे। किला चुप रहा। डरपोक बादल किले से पहले से ज्यादा चिपट गया। गांव चाचा बहुत ताकतवर थे। किले और डरपोक बादल को एक साथ पीट देते। डरपोक बादल को तो अपनी मुट्ठी  में बंद कर लेते या उसे चींटी बनाकर मसल देते।
गांव चाचा ने किले को दो लट्ठ  लगाए। इधर मैंने शमीना को उठाने की कोशिश की। उसके सब तरफ सफेद पंख बिखरे थे। बहुत  सारी सफेद चिडिय़ों ने वहां पंख छोड़े थे। उन सारी चिडिय़ों का घर भी किले में ही था। सफेद चिडिय़ों ने फडफ़ड़ाना शुरू कर दिया।

शमीना आंखें मींचकर सोई थी। मैं उसे नहीं उठाना चाहता था। नहीं तो गांव चाचा मुझे भी लट्ठ  मारते। मैं अकेले ही बाहर निकला। किले की छत पर पहुंचा। डरपोक बादल डरा हुआ सुबक रहा था। मैंने उससे कहा ‘रोओ मत, डरो मत।’ डरपोक बादल ने बताया ‘ मां की याद आ रही है। ’ उसकी मां उसे छोडक़र चली गई थी। तब से डरपोक बादल किले के पास रहता था क्योंकि उसे आसमान में अकेले डर लगता था।

मैंने नीचे देखा। गांव चाचा लट्ठ घुमाने लगे थे। किले की बहुत पिटाई होनी थी। मैं चिल्लाया - ‘गांव चाचा, गांव चाचा .. .मैं यहां हूं।’  गांव चाचा को मैं दिख गया। उन्होंने मुझे नीचे आने को कहा। गांव चाचा ने मेरा हाथ पकड़ा और किले को धमकाते हुए मुझे लेकर चल दिए।

मैंने डर के मारे उन्हें नहीं बताया कि किले के अंदर शमीना भी  है।

शमीना को मैंने वहां छोड़ दिया। किसी को नहीं बताया। उसके अम्मी-अब्बू अपने बाल खींचकर खूब रोए। मैं अगले दिन किले के पास गया। वहां शमीना नहीं मिली। किले ने कुछ नहीं बताया। मैं सोचता रहा शमीना किले से बाहर क्यों नहीं आई!

उसी शाम गांव चाचा ने मुझे काम पर लगा दिया। पता नहीं उन्हें कैसे मालूम हो गया था कि शमीना किले के अंदर है। मेरा काम था ‘किले से उस डरपोक बादल को दूर भगाने का। ’

मैं किले के बाहर पहुंचा। उससे धमकाया ‘बता दे शमीना कहां है? नहीं तो मैं तेरे बादल को भगा दूंगा।’ किला चुप रहा। डरपोक बादल कांपने लगा। उस गोल-मटोल बादल ने अपने हाथ सिकोड़ लिए। उसने आंखें बंद कर लीं। उसके मोटे गालों के बीच आंखें छिप गईं।  वो किले से लिपट गया।

किले से सफेद चिडिय़ों की आवाजें आने लगीं। सारी सफेद चिडिय़ों ने बाहर आकर इधर-उधर उडऩा शुरू किया। उनके पीछे से शमीना बाहर आई। शमीना ने बताया कि उसने बादल को अपना दोस्त बना लिया है। वह उसके साथ भाग जाएगी। चाहे गांव चाचा उसकी लट्ठ  से पिटाई करें। डरपोक बादल शमीना की बात सुनकर खुश दिखने लगा।

मैंने शमीना के हाथ खींचकर उसे किले से नीचे उतारने का मन बनाया।  मुझे न देखते हुए शमीना डरपोक बादल से लिपटकर उसे समझा रही थी। डरपोक बादल सुबक ही रहा था।

मैं गांव चाचा के पास लौट आया। उनसे झूठ कह दिया ‘ चाचा, बादल भाग जाएगा, उससे कह दिया है। ’

उस रात चांदनी बिखरी हुई थी। हरी घास के मैदान में किला सफेद दिख रहा था। अचानक डरपोक बादल और शमीना आसमान में उड़ते नजर आए। कभी डरपोक बादल शमीना हो जाता,  कभी शमीना डरपोक बादल बन जाती।

 दोनों मेरे और गांव चाचा के ऊपर से भी उड़े, सफेद चिडिय़ों के साथ।

अगले दिन किले के ऊपर डरपोक बादल नहीं था। मैंने किले से सवाल किया। किला चुप रहा। शमीना उस डरपोक-मोटू बादल के साथ भाग गई थी। गांव चाचा अब उसका क्या कर लेंगे?

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