Monday 17 October 2016

ए दिल को शिवाय से मुश्किल नहीं



एक ही फिल्म के बारे में यह दूसरी बार लिखना पड़ रहा है। दीवाली में ‘ऐ दिल है मुश्किल’  के साथ अजय देवगन की शिवाय भी आएगी। निगेटिव पब्लिसिटी से ‘ऐ दिल’ को ज्यादा चर्चाएं मिल रही हैं, कोई मुश्किल नहीं है। फिल्म के लिए यह अच्छा है। अजय देवगन को चिंता होगी। कुछ दिनों पहले अजय आश्वस्त रहे होंगे देश का माहौल देखकर। अब भावनाओं का मौसम बदल रहा है।

चार राज्यों क्रमश: गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक में ऐ दिल का परदे पर आना फिलहाल मुश्किल दिखता है। बाकी राज्यों में भी तोडफ़ोड़ की आशंकाएं हैं। फिर भी चूंकि भावनाओं का मौसम बदल रहा है फिल्म के समर्थकों और विरोधियों को सबकुछ भगवान के हाथ में नहीं छोडऩा चाहिए। उन्हें ऐ दिल को दर्शकों के भरोसे  छोड़ देना चाहिए।
अब आते हैं अजय देवगन की चिंता पर। शिवाय और ऐ दिल के ट्रेलर में कौन ज्यादा आकर्षक है? सरल सवाल का उससे भी आसान जवाब, ऐ दिल है मुश्किल का ट्रेलर अच्छा लगता है।
 रणबीर कपूर कोई बहुत अधिक नया किरदार करते नहीं दिख रहे। वे चिकने हैं और ऐश्वर्या राय सुंदर लग रही हैं। रणबीर से उनके रोमांस के सीन कितने गहरे हैं!  छिपा हुआ अर्थ समझ जाइए। फिल्म के ट्रेलर में करण जौहर किस्म के रोमांस का ऑफर है। फिल्म के प्रोमो में पाकिस्तानी एक्टर फवाद खान भी नजर आते हैं। डीजे लुक लिए। करण जौहर ने अपने स्तर का पूरा ‘इंडियन कान्टिनेंटल’ तैयार किया है। गाने बेहतरीन हैं।

 अजय देवगन कमजोर डायरेक्टर हैं। यह बताने की जरूरत नहीं पडऩी चाहिए कि शिवाय का निर्देशन उन्होंने किया है। सो डायरेक्शन की तुलना होगी। फिल्म का टाइटिल सांग बता देता है कि वे अभी  कच्चे हैं। त्योहारी डेट पर रीलीज होनेवाली फिल्मों की सबसे बड़ी यूएसपी उनका संगीत रहा है। अजय ने काजोल और खुद को लेकर यू, मी और हम डायरेक्ट की थी। फिल्म का स्क्रीनप्ले इतना वाहियात था कि उस पर शोध होना चाहिए कि यदि हम किसी विदेशी फिल्म से इंस्पायर होकर अपना माल तैयार करें तो स्क्रीनप्ले में क्या नहीं होना चाहिए। शिवाय अजय देवगन की डायरेक्टर बनने की ‘ठरक’ मिटा सकती है (अजय मुझे गलत साबित कर दें तो मुझे गर्व होगा) ।

अभी मैंने एनडीटीवी में देखा कि अनुराग कश्यप ने ऐ दिल है मुश्किल की रीलीज को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डिप्लोमेसी का लेक्चर दिया है ट्विटर पर। करण जौहर ने कुछ नहीं कहा है, कश्यप ज्ञान दे रहे हैं। मैं उनका ट्विटर फॉलोवर नहीं हूं। ज्यादा लिख नहीं सकता। इतना कह सकता हूं कि यह फिल्म को नए तरीके से प्रमोट करने का तरीका है। करन ने अनुराग को यह करने को नहीं कहा होगा । अनुराग अपनी भक्ति दिखा रहे हैं। एक औसत निर्देशक विद्रोही तेवर दिखाकर सुर्ख़ियों में बने रहने का हुनर जानता है। वे राजकुमार हीरानी से अधिक पापुलर हैं मीडिया में उनकी फिल्मों ने कितने पैसे डुबाए यह छोड़िये।

 अनुराग और करण की जुगलबंदी से सभी वाकिफ हैं। अनुराग की उड़ता पंजाब रीलीज के पहले लीक हुई और उम्मीद से अधिक चली। गैंग्स  ऑफ वासेपुर के दोनों पार्ट विरोध से चर्चा में आए। फिल्म अनगढ़ डाक्यूमेंट्री के समकक्ष बनी। दृश्यों में सामंजस्य नहीं था। पात्र फिल्म के विषय के अनुरूप थे लेकिन उनका चित्रण विरोधाभासी था। इस फिल्म को मैंने देखा है। अभिनय और संवाद खुश कर देते हैं। इतना खुश कि हम यही भूल जाते हैं कि फिल्म का विषय क्या है? क्यों है? पात्र चाहते क्या हैं? हालांकि दोनों फिल्म के दोनों पार्ट ठीकठाक चल गए। परिणामस्वरूप नए सितारे नवाजुद्दीन का जन्म हुआ। अनुराग की सनक पर ठप्पा लग गया। उन्हें क्रिएटिव की संज्ञा मिल गई। अनुराग अपने से ठीक उल्टे करण जौहर के साथ फिल्मी पार्टियां शेयर करते हैं। इस तरह उन्होंने बाम्बे वेलवेट को भी शेयर किया। डार्क फिल्मों के इतिहास में इतनी डैमेजिंग फिल्म नहीं आई।

करण जौहर और अनुराग समानता रखते होंगे। अनुराग की फिल्में उनका टेस्ट बताती हैं, या बताती हैं कि अनुराग वास्तविक जीवन में कैसे हैं? करण की फिल्में उनके पकाऊ अकेलेपन में पैशनेट लव का मैसेज लिए होती हैं।  ‘इट्स ऑल अबाउट लविंग एवरी-वन’। अनुराग कश्यप की हीरोइन घर में आनेवाले धोबी से भी सेक्स कर सकती है। करण की हीरोइनें क्लास का ख्याल रखती हैं।

इतना सब बताने के बाद यह भी बता दूं कि शिवाय से ऐ दिल है मुश्किल ज्यादा चलनेवाली है, विरोध कितना भी हो। ऐ दिल है मुश्किल देखकर निकलनेवाला हमारा लिबरल यूथ कहेगा ‘ ओह मॉय गॉड। रणबीर इज जस्ट ऑवसम। आई लव यू ऐश। शी इज मोर हॉटर देन अनुष्का। बट अनुष्का आलसो प्लेड गुड..हां। ’

इधर शिवाय देखने टिपिकल देवगन फैन जाएंगे। बुल्गारिया की बर्फलदी पहाड़ी में औंधे मुंह कपड़े निकालकर पड़ा आदमी शिवाय हो सकता है! यह मेरा अनुमान है। हो सकता है कोई और शिवाय निकल आए! फिल्म का पहला पोस्टर क्लासिक था। बाद में ट्रेलर ने कचरा कर दिया। टाइटिल सांग मोहित चौहान की आवाज में शुरू होता है। आध्यात्मिक फीलिंग आती है। अचानक सुखविंदर गाने की जगह चीखने लगते हैं। और इसके बाद बादशाह का रैप सुनाई पड़ता है। इतना गंदा फ्यूजन। फिल्म का नाम शिवाय, इसके अजीब टाइटिल ट्रैक को जस्टीफाई नहीं करता।  ट्रेलर त्योहारों की पारम्परिक पब्लिक को सिनेमा देखने नहीं बुला रहा।  देवगन की किस्मत रातोंरात सलमान खान सी हो जाए तो मेरे विश्लेषण का क्या रह जाएगा, इस पर बाद में चिंतन करूंगा।
अब रहा सवाल ओपनिंग का। मुझे लगता है कि ऐ दिल है मुश्किल इसमें भी आगे रहेगी। मल्टीप्लेक्स में यूथ फिल्म चलाता है। करण का सिनेमा मल्टीप्लेक्स का दर्शनशास्त्र है। सिंगल स्क्रीन से मल्टीप्लेक्स की कमाई तिगुनी होती है।  यह दर्शनशास्त्र का अर्थशास्त्र है।
वैसे भी अजय देवगन के निर्देशन से मुझे चमत्कार की उम्मीद नहीं है। करण जौहर पक्के कमर्शियल डायरेक्टर हैं। अजय देवगन भी कमाना चाहते हैं और करण जौहर भी। दोनों का मकसद कमाई है। जौहर  फिल्मशास्त्र  में देवगन के पापा हैं।
देशभक्ति और देशविरोधी की बहस में पडऩे की बजाय सिर्फ मैं एक विचार रखना चाहूंगा कि यदि फवाद ने उड़ी हमले पर अपना ओपिनियन खुलकर रखा होता तो आज करण का यह हाल नहीं होता। मैं गलत साबित हो सकता हूं यह कहकर कि उन्हें इस हालत में पडऩे की आदत पड़ चुकी है। मॉय नेम इज खान के बाद से उनकी फिल्मों को लेकर एक नकारात्मक जिज्ञासा उपजती रहती है। कलाकारों पर सरहदों के लागू न होने पर तर्क करनेवालों से सिर्फ एक सवाल है -पाकिस्तान और भारत में युद्ध हो जाए तो क्या वे न्यूट्रल रहेंगे? क्योंकि उन्हें मालूम है भावनाओं का मौसम बदलता रहता है।

फिल्मों का विरोध नहीं होना चाहिए, पर क्या फिल्म देखना किसी व्यक्ति की अंतिम इच्छा हो सकती है? मतलब इस टाइप की इच्छा कि मैं फिल्म न देखूं तो मर जाऊंगा। मैं दीवाली नहीं फ़िल्में मनाता हूं।



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