कंटीले तारों के पार हरियाले खेत नजर आ रहे थे। खेत इस पार भी थे लेकिन हरापन उस पार ज्यादा था। चार जनों का फिदायीन दस्ता सुरंग में उतरने को तैयार था। सबसे पीछेवाले ने संकरी सुरंग में उतरने से पहले अपने पीछे देखा।
अम्मी दोनों हाथ आगे फैलाकर दौड़ती उसकी ओर आ रही थी 'रुक जा अमानत..रुक जा..’
सबसे सामनेवाले ने उसे डांटा 'क्या देख रहा है एफ-फोर! तेरी अम्मी के सपने खत्म नहीं हुए। ’
अमानत उर्फ एफ-फोर कांपती आवाज में बोला 'गलती हुई जनाब..अम्मी को अब याद नहीं करुंगा।’
-' जनाब नहीं..एफ-वन बोल। मैं तुम सबमें से एक हूं।’
चारों सुरंग के अंदर घुस चुके थे। कंबलों से बने मोटे लबादे सुरंग के अंदर पेट के बल सरकने में मदद कर रहे थे। खरोंचें आ रही थीं, मगर लबादा घर्षण को कम कर रहा था। कोहनियों को मोडक़र उनके सहारे आगे बढऩे में सांसें चढ़ रही थीं। अंदर साफ हवा की कमी थी। अमानत को उबकाई आने लगी। खाली पेट में जलन मच रही थी। लबादे के नीचे पेट से बंधी एके-47 की नाल गर्दन और छाती के बीच अडक़र अलग दर्द दे रही थी। उन्हें छह घंटे लग गए इस पार से उस पार सरकने में।
बाहर निकलने के बाद अमानत ने पाया कि ज्यादा हरे मुल्क का आसमान भी ज्यादा नीला था।
एफ-वन भर्राती फुसफुसाहट में बोला 'यहां की फिजां में खो न जाना, ये कभी हमारी जमीन थी। ’
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चारों सुरंग से बाहर निकल आए थे। ज्यादा हरे खेतों के बीच। खेत इतने हरे और लबालब थे कि उन जैसे दस को छिपा सकते थे। सुरंग में से उनके साथ मोटी रस्सी भी सरकती आई थी। एफ-टू उसे पकड़े हुए बाहर आया था।
एफ -वन फुसफुसाया 'खींच ले तोहफा!’
एफ-टू ने रस्सी को खींचना शुरू किया। रस्सी अटक गई। एफ- वन के आदेश पर एफ- थ्री और एफ -फोर ने उसके साथ रस्सी पर जोर लगाया। रस्सी झटके के साथ बाहर आई।
अमानत ज्यादा ही जोर लगा बैठा और रस्सी ढीली हो जाने से खुद को संभाल नहीं पाया। वो एफ -वन के सीने से पीठ के बल जा टकराया। एफ-वन को जमीन सूंघनी पड़ी। उसने गुर्राते हुए अमानत को परे फेंका।
सुरंग से 'तोहफा’ बाहर आ गया था, जो होल-डॉल जैसी बेल्ट लगी गठरी थी।
उसके अंदर से चार बैग निकले। चारों ने अपने-अपने बैग खोल लिए। तीन बैगों से टिफिन निकले। एफ-वन ने अपना चार खानेवाला टिफिन खोला। पहले खांचे में बिरयानी, दूसरे में रोटियों में दबी सूखी सब्जी, तीसरे में सेवई.. और चौथे में निकला मोबाइल।
उसने लबादे के अंदर हाथ डालकर 'आका के लिखे हुए फरमान’ में लिपटा सिम निकाला।
मोबाइल में सिम फिट किया और आका से बात करने लगा ' खैरियत है भाईजान अभी तक..ये एफ-फोर कमजोर बंदा लग रहा है। देखते हैं.. काम नहीं हुआ तब हमेशा के वास्ते रवाना कर देंगे।’ आका से बात बंद हुई और उसने अपनी अम्मीजान को कॉल लगाई। अम्मी से बात पूरी कर एफ-वन ने टंगड़ी उठाकर मुंह में डाली। उसने अमानत को देखा, जिसके सामने टिफिन नहीं था।
- ' क्या हुआ तेरा खाना नहीं आया बैग में? भूखा जाएगा दुनिया से! ’
फिर एफ-वन ने अपने तीनों सहयोगियों को एक साथ संबोधित करते हुए कहा
'जानते हो मेरी अम्मी का पैगाम..कह रही थी मरने से पहले खाना खा लेना। अम्मी को हमेशा ख्याल रहता है मेरे पेट का। ’ तीनों जल्दी-जल्दी अपना खाना खत्म करने लगे। अमानत उन्हें बोटियां चबाते देख रहा था। उसके मुंह में लार थी और पेट में चूहे घूम रहे थे। किसी ने उसे अपने साथ खाने को नहीं कहा।
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खाना
खत्म हुआ। पीठ में बैग बांधकर चारों सावधानी से खड़े होने लगे। इस कोशिश
में अमानत पीठ के बल पलटी खाता हुआ गिर गया। उसके पैर हवा में आ गए।
एफ-वन ने उसके कूल्हे पर चिढ़भरी ठोकर लगाई ‘गलती कर दी तुझे लाकर।’
अमानत
ने उसे अपना दम दिखाते हुए पैर जमाए और सट से उठ खड़ा हुआ। इससे उसकी
एके-47 लबादे के अंदर से नीचे सरक गई और उसके पंजों में सीधी आ गिरी।
दमदारी दिखाता अमानत शर्मिंदा हो गया।
एफ-वन की सुर्ख आंखें फैलने
लगीं। गुस्सा निगल जाने की कोशिश में चेहरे की नसों में इतना तनाव आया कि
नकाब का काम कर रहा मफलर खुल गया। उसकी आंखें सुर्ख होने के साथ-साथ हल्की
पीली थीं, जो बता रहीं थीं कि उसे नींद नहीं आती। चेहरा बिखरी हुई दाढ़ी से
भरा हुआ था।
उसने थूक निगलते हुए खुद पर काबू पाया और बाएं हाथ को कमर से आगे फेंककर चलने का इशारा दिया।
खेत
में खड़ी फसल के बीच कमर से नीचे तक झुककर चारों आगे बढऩे लगे। उनका पहला
पड़ाव दरिया का किनारा था। छोर के खेत की मेड़ से दस कदम की दूरी पर दरिया
का बहाव था। खेत और दरिया के बीच संकरी नाली बनी हुई थी। खेतों का अतिरेक
पानी उससे बहकर दरिया में जाता था। चारों उस नाली के पास बिना रुकावट पहुंच
गए।
अमानत के खाली पेट से आवाज निकली-
टूंऊऊऊऊऊऊऊऊ..ट्वें..
एफ-वन ने उसे हिकारत से घूरा ‘ खाकर नहीं आया हराम..गोलियों का पट्टा कस ले..तेरे गुर्दों की आवाज काफिरों को हमारे पास बुला लेगी..’
नाली
में उन्हें डेढ़ सौ मीटर दूर सडक़ तक उसी तरह सरकना था जैसा उन्होंने सुरंग
में किया था। चारों अपने-अपने कोड नेम के क्रम में लेट गए। नाली का पानी
और पतला कीचड़ अमानत की नाक में भरा जा रहा था। कैंप में उसे पानी में नाक
डालने की ट्रेनिंग नहीं मिली थी। अमानत की नाक से बुलबुले छूटने लगे।
बुड़बुड़़ होने लगी। आगे से एफ-थ्री ने उसे नाक और चेहरे को हथेली से ढंकना
बताया।
अमानत को राहत मिली। मगर अब भी अंतडिय़ां उसे बैचैन कर रही थीं। उसी
पल उन्हें नाली में घिसटना बंद करना पड़ा। पुलिया के ऊपर बख्तरबंद गाड़ी
आकर रुकी, जिसमें से दर्जनभर जवान कूदे। उन्होंने टार्च लगे हेल्मेट पहन
रखे थे। हाथों में एके-103 थी। जवान अत्यधिक सतर्क थे। उनके बूटों की धमक
अमानत को पास आती सुनाई देने लगी।
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किसी का निर्देश फैलाता भारी स्वर
बता रहा था कि फोर्स को खबर हो चुकी है-
‘खेत की सुरंग सियारों का काम नहीं
है। इंटेलीजेंस से मिली टिप सही है। दूर नहीं गए होंगे वो।’
अगुवाई
कर रहे एफ-वन ने खास हल्के तरीके से पैर हिलाया। इससे पानी की सतह में हलचल हुई। यह हमले का इशारा था! अब बचने का मौका नहीं था।
चारों को एक साथ उठ खड़े होकर फोर्स के जवानों पर गोलियां चलानी थीं।
अमानत
को ट्रेनिंग कैंप में आए बड़े पेट वाले लीडर महमूद की बात याद आई। महमूद
ने उसकी उम्र के सारे लडक़ों के कांधों में हाथ रख-रखकर यह बात कही थी-
"हम
कौन हैं..जानते हो ना..हमको तबाह करने की साजिश करते हैं काफिर। उन्हें
लगता है ये दुनिया उनके इशारे पर चलनी चाहिए। वो हमको हिकारत से देखते हैं।
उनको बताना है कि हमारा ईमान जिंदा है..हम उनका सर उड़ाकर यह
बताएंगे..जेहाद ..कुर्बान हो जाओ.."
अमानत को अब तक समझ नहीं आया था कि महमूद को कैंप में क्यूं ‘मौलाना’ बुलाया जा रहा था।
तब एफ-वन भी वहां था। उसने महमूद के हाथ चूमे थे। अमानत नहीं चाहता था कि उसे
भी यह करना पड़े क्योंकि महमूद उसे बूढ़े भालू का भतीजा दिखता था।
ट्रेनिंग कैंप से निकल वो सीधा एफ-फोर के साथ चला आया था। अम्मी से दो मिनट
के लिए मुलाकात हो पाई थी। इतने समय में बेचारी कहां से खाना लाती और कहां
से टिफिन भरता।
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अमानत का पेट फिर बजने लगा। लेकिन नाली के पानी में आवाज
दबी रह गई। एफ-वन के इशारे बाद भी वो तीस तक की गिनती करना भूल गया था। कैंप में सबसे पहले 30 तक की गिनती सिखाई जाती है, गिनती खत्म हमला शुरू ।
बचपन से उसका दिमाग ऐसा ही था। मौके पर कहीं गुम हो जाता था।
सूबे
में सैलाब आया पड़ा था और वो अपनी अम्मी को गजलें सुनाता रहता। अम्मी
अब्बू के गुम हो जाने से बुत बन गई थीं, उसकी गजलों ने ही अम्मी को असली
दुनिया में लौटाया था।
एफ-वन, एफ-टू और एफ-थ्री की गिनती पूरी हो
चुकी थी। तीनों नाली से उछलकर गोलियां चलाने लगे। फोर्स के जवान तैयार थे।
उनकी गोलियों ने दस तक की गिनती से पहले ही तीनों को ढेर कर दिया।
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नाली
से तीन लाशें निकाली जा चुकी थीं। सर्चिंग जारी थी। बड़ी-बड़ी मूछोंवाला
एक छह फुटा अफसर बल्देव सिंह वहां आया। जवान उसे सैल्यूट देने की कोशिश में
अपने शरीर की पूरी ऊंचाई में तन गए। लाशों को देखते हुए उसने अपनी मोटी मूंछों को ताव दिया। उसके बोलने में आह्वान की गूंज थी ‘अभी यहां हमारे
पच्चीस बाज (जवान)उतरेंगे। किसी को नहीं हिलना है। दो-तीन घंटे में सुबह
होने वाली है। किसी को कोई सवाल पूछना है?’
समवेत स्वर गूंजा ‘नो सर..’
बल्देव सिंह ने आंखों को बड़ा करते हुए हुंकार भरी ‘और जोर से बोलो..आवाज बार्डर पार जानी चाहिए।’
‘नोऽऽऽऽऽऽऽऽसरऽऽऽऽऽऽऽऽ’
जवानों की हुंकार खेत की चोर सुरंग में वापस जा छिपे अमानत के कानों में पड़ी। उसने आंखें बंद ली और चेहरा मिट्टी में धंसा दिया।
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सडक़
पर फौज की गाड़ी देखकर ही उसने मौत को महसूस कर लिया था। उसके साथियों को
मार गिराने के बाद फोर्स की सर्चिंग सडक़ में होने लगी थी। सांस
बंद किए देर तक नाली में लेटे रहने के बाद तकदीर उस पर मेहरबान हुई थी।
जवान उस तक पहुंचने ही वाले थे कि बल्देव सिंह आ गया। अमानत को नाली से
बाहर जाकर सुरंग में घुसने का मौका मिल गया था।
किस फुर्ती से वो नाली से
सुरंग तक पहुंचा था, उसके फरिश्ते ही जानते थे।
" अम्मी की दुआ ने साथ दिया होगा..जो पराए मुल्क के सिपाहियों को आहट न मिली। "
उसने
अपनी अल्पविकसित समझ से यह सोचा था कि सुरंग से वापस वो अपने मुल्क निकल
जाएगा। वो सुरंग में आगे बढ़ा। आधी सुरंग तक सरकने के बाद उसे ढेलों का ढेर
मिला। उसने पंजों से ढेर को हिलाया। धेले उसकी ओर लुढक़ने लगे। वो जितनी
बार ढेर में हाथ घुसाता, धेले लुढक़ते।
उसके मुल्क की ओर से उन चारों के हिस्से की मिट्टी डाल दी गई थी।
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कैंप में उसे सिखाया गया था ‘काफिरों के हाथ पडऩे से बेहतर है अपनी गर्दन काट लेना।’
उसने चाकू अपनी गर्दन पर टिकाया। चाकू में धार नहीं थी। गर्दन कट तो जाती! दर्द इतना होता कि जान अटक जाती।
दर्द
में मौत भी किस काम की, इससे अच्छा तो जीना है। अब्बू ऐसा कहते थे। अब्बू
सैलाब के बाद से गुम थे। ऊपरवाले से आखिरी फरियाद है कि उनको दर्द न मिला
हो।
उसने चाकू कलाई से लगा लिया। तीन तक गिनकर कलाई काटना मंजूर किया।
एक..दो.. .. तीन।
सुरंग के बाहर फोर्स की गश्ती थी। जवान अपनी गनों की नाल से पौधों और झाडिय़ों को टटोल रहे थे।
- ‘ ओए..सुरंग को खुला किसने छोड़ा है? साहब का आर्डर नहीं सुना था तूने। तीनों यहीं से निकले थे। बंद कर इसे अभी।’
- ‘ सोच रिया हूं कोई आ जावे..यहीं गिन दूं.. ओजी..ओजी..अंदर मरा पड़ा है ..अंदर है कोई!’
शक्तिशाली
टार्च की रोशनी चोर सुरंग के अंदर फेंकी गई। अंदर कीचड़ सने लबादे में
अमानत पड़ा था। आंखें उलटी हुई थीं। उसे खींचकर बाहर निकाला -
‘ ओजी..ओए
होए..लॉटरी लाग गी..जिन्दा है। बल्देव सिंह शबासी देंगे।’
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आतंकियों
को मुर्दा देखने से सौ गुना बेहतर उनका जिंदा पकड़ा माना जाता है। अमानत
के पकड़े जाने की खबर अंदर ही रखी गई। स्पेशल आपरेशन टीम के चुनिंदा सदस्य
ही इस बारे में जानते थे। बल्देव सिंह उनमें से एक था। अमानत को मीडिया से
बचाकर रखने की जिम्मेदारी उसकी थी। बंद कमरे में सीएफल को तिरछा लटकाया गया
था। रोशनी दीवार में आ रही थी। केंद्र में अमानत था।
उसे बांधा नहीं गया था। उसके हाथ कुर्सी से नीचे झूल रहे थे, जिनमें पट्टियां बंधी थीं।
बल्देव सिंह ने सवालात शुरू किए
‘तूने कलाई चाक्क ली..साइनाइड कैप्सूल नहीं खाया..बाम्ब से नहीं उड़ाया ..गोली नहीं मार ली’
अमानत मरी हुई आवाज में बोला ‘भूख लगी है जी..खाने को दे दो। ’
उसकी
कटी कलाई से काफी खून बह चुका था। जिस्म में हरकत नहीं बची थी। कर्नल ने
एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसे रसीद किया ‘तू हमें मारे, हम खाना दें।’
अमानत फरियाद करता हुआ बोला
‘ आपका ’ ज़्यादा हरा मुल्क है जी.. हमारे यहां तो सैलाब आ जाता है। खाना दे दोगे जी..सब बता दूंगा..’
- ‘ खाना खाने आया है यहां! उमर दस्स तेरी?’
- ‘ उमर ..शोला..’
- ‘ शोला! ओ.ओहो. सोल्ला। इत्ती कम उमर।’
- ‘ नाम बोल?’
-
‘ एफ फोर..अमानत।’
बल्देव सिंह अपने तजुर्बे को औजार बनाकर अमानत से पूछताछ करने लगा।
अमानत
ने बताया कि उसका बाप बेकरी चलाता था। चार भाई थे और एक बहन। अम्मी बीमार
रहती थी। सूबे की बाढ़ अब्बू को ले गई। बेकरी का काम नहीं संभला। तीनों
भाइयों का निकाह हो गया था। अब्बू की गुमशुदगी के बाद सब अलग-अलग रहने लगे।
बहन के निकाह के वक्त बाजार में गोलियां चल गईं। बहन भी गुजर गई। अम्मी का
जिम्मा अमानत पर आ गया। अमानत को पैसे एक ही जगह से मिल सकते थे। ट्रेनिंग
कैंप।
कैंप पहुंचा तो उसने जाना कि सैलाब को पड़ोसी मुल्क ने साजिशन उसके सूबे में भेजा था।
अब्बू को इंसाफ जेहाद से मिल सकता था।
अमानत
कैंप में रहने लगा। अम्मी से मिलना नहीं हो पाता था। उसके गांव से आए एक
लडक़े ने बताया कि अम्मी को कैंप चलाने वाले मौलाना के आदमियों ने पैसे नहीं
भिजवाए थे। उसने मौलाना के बंदों से पैसे मांगे। बंदों ने कहा- अम्मी को पैसे चाहिए या अब्बू के लिए इंसाफ।
बल्देव
सिंह ने घुमा-फिराकर बीसियों सवाल कर लिए। अमानत ने ऐसा कुछ नहीं बताया, जो
इतने दिनों की फौजी नौकरी में उसे नहीं पता हो। सारे घुसपैठिए आतंकी
तकरीबन एक सी जानकारियां देते हैं। घंटेभर हो चुके थे। रात के दस बजने लगे।
बल्देव सिंह का मोबाइल बजा। जाने से पहले उसने अमानत से सबसे महत्वपूर्ण
सवाल किया ‘तूने गोलियां क्यों नी चलाई हमारे सिपाहियों पर ’
- ‘ मुझे अम्मी के पास जाना था।’
- ‘ तो कलाई किसलिए कट्टी?’
जवाब नहीं मिला। अमानत बेहोश हो चुका था।
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घंटेभर
बाद बल्देव सिंह अपना टिफिन लेकर कमरे में ही आ गया। पंजाबी खाने की खुशबू
फैल गई। बल्देव ने हाथ का कड़ा ऊपर कर सरदारों के विशिष्ट अंदाज में रोटी
को तोड़ा। अमानत की तरफ देखा, जिसका शरीर हिल रहा था। वो बेहोशी और होश
के बीच में लटकी आंखों से टिफिन को देख रहा था। बल्देव सिंह उठकर उसके पास
गया। उसने कुर्सी से बाहर झूलते अमानत के हाथों हवा में उठाकर छोड़ दिया।
अमानत के हाथ झट से नीचे गिरे और पहले की हालत में झूलने लगे। बल्देव सिंह
ने अपना टिफिन रखा स्टूल उस तक खींच लिया।
उसने रोटी का टुकड़ा आलू-मेथी की सब्जी में लपेटा और अमानत के मुंह में डाल दिया।
............समाप्त ...............