Wednesday 7 September 2016

क्यों थक रहे हो



क्यों थक रहे हो
कहां पड़े हो? सिटी में। प्रेशर कुकर की सीटी में। मेट्रो में। क्यों पड़े हो? किसने कहा पड़े रहो? गांव गए हो कभी..! गाय देखी है? एकदम बिंदास किस्म की। पूंछ को इंडीकेटर बनाकर चलती है। शहर में पैदा हुए हो? यहीं मरोगे! यहां गाय नहीं देखी। उसका इंडीकेटर नहीं समझा। शहर की गाय गांव की गाय की मौसेरी बहन है। आईक्यू अलग है दोनों का। यहां की गाय जगह मिलने पर भी साइड नहीं देती। उसको शहर का ट्रैफिक पता है। वो साइड देगी। तुम अंधाधुंध हो जाओगे। गांववाली रिसपेक्ट देती है। तुम भक्त हो जाओगे। इन गायों के पापा रिश्ते में साढ़ू हैं। घूमते रहते हैं पहलवानी का गोल्ड मैडल लेकर। गांववाला सांड मस्त तगड़ा है। जाओ देखो ‘कैटल क्लास’ को। सुनकर अब भी गांव नहीं जाओगे। चलो जाओ गांव। ठीक है। आदमी देखना है। बता दें तुमको वहां आदमी ही रहते हैं। केवल आदमी।  देखना है! अभी निकलो। जाते हुए शहर को यहीं छोड़ जाना। गांव में शहरी होकर न दिखाना। तुम किसी फिल्म के हीरो नहीं हो। फुटपाथ का स्वीटकार्न खाकर हाईलाइफ जी रहे हो। तुम्हारे बाप-दादा, वो नहीं तो उनके बाप-दादा, सब गांव से शहर आए थे। झपाझप। धकाधक। तुम शहर से गांव जाओ। झपाझप। धकाधक।
क्यों थक रहे हो!
क्या कहा! तुम्हारा कोई गांव नहीं है। तुमने तालाब में भैंस को बटरफ्लाई बने नहीं देखा। शाम में नहर किनारे की बैठी हुई पंक्तियां नहीं देखी। वैसे अब बंद हो गई है बैठकी। एक बात बताओ। शिट समझते हो। समझते क्यों नहीं होगे! और बुलशिट समझते हो! तुम गांव निकल लो यू बुलशिट। सही बोल रहे हो..सवाल ये सही है। तुम वहां रुकोगे कहां? गांव में दो-चार घर यूं ही जज्बाती होकर खाली पड़े रहते हैं। सरपंच से बात-वात करके आक्यूपाई कर लेना। देख लेना उसमें कुंआ जरूर हो। इमरजेंसी में वही काम आएगा। सुबह तालाब में नहाना। बटरफ्लाई स्विमिंग विथ भैंस। मांग-वांग के खा लेना। गांव में सब चलता है। रात में पत्ते पीटना। बीड़ी फूंकना। पौव्वा मार लेना। चौपाल में दोस्त बनाकर उसके घर जाकर कस के खाना। फैल के कहीं चबूतरे पर सो जाना।
क्यों थक रहे हो!
पिया बसंती रे गाना सुना है। ये गाना डाउनलोड कर लेना। कान में इयरफोन ठूंस लेना। सुनना। ये पिया बसंती की प्रजाति शहर में नहीं मिलती। गांव में जाओ। पिया बसंती वहीं हवा में घूमती रहती है। लडक़ी नहीं है वो। उससे कम भी नहीं है। उसे छेड़ लेना। जान में जान आ जाएगी। ये क्या!! कनाट प्लेस के पालिका बाजार में खरीदा हुआ बरमूडा पैक करने की जरूरत नहीं है। वहां सब मिलेगा। गिरधारी, राजेंद्र, गुरुदेव, रहमान क्लाथ स्टोर्स में। वहां यहीं का बरमूडा जाता है। सिलाई खुले तो मुन्ना दर्जी बैठा रहता है अपने बरामदे में। दिव्या भारती और संजय दत्त की फोटो लगाए। सलमान जैसी जींस भी सीता है। सारे गांव की कहानी सुना देगा तुमको। अजनबीपन नहीं लगेगा। जाओ निकलो।


क्यों थक रहे हो!
गांव में हर चीज बड़ी खास है। वहां मेट्रो नहीं है। सिटी बस नहीं है। ये टटह..टटह..टैंपो कम रिक्शा नहीं है। ठेले नहीं हैं। ठेका नहीं है। है तो देसी है। लगा नहीं पाओगे। पौव्वा मारने की सलाह को सीरियली नहीं लेना। वहां दिन कटता नहीं। रातें लंबी होती हैं। दो-चार दिन बाद सब बोरिंग लगता है। हफ्तेभर में धीमा-धीमा सा महसूस होगा। बस बेटा!! यहीं थम जाना। जानोगे अपने अंदर को। पूस की रात को। मैला आंचल को। नोट में छपे गांधी से अलग गांधी को। वहां चौक पर बापू हैं। हंसते रहते हैं। तुम ये जो चमगादड़ का ईगो लिए फिरते हो। गांव में जाकर असली चमगादड़ देखो बेटा। तुम्हारी पहनी हुई बैटमैन की टी शर्ट और शॉर्ट्स  गीली हो जाएंगी। जब बिल्ली घप्प से तुम्हारे सामने कूदकर बाड़ी में चली जाएगी। डरने के मजे लो। शहर छोड़ दो। गांव जाओ।
क्यों थक रहे हो!




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