Saturday 3 September 2016

तेरे वायदों पर मैंने एक किताब लिखी है

 तेरे वायदों पर मैंने एक किताब लिखी है।


मोहब्बत वायदों के बनने का नाम है। उनके बिखर जाने का भी। साथ वायदों पर टिका होता है। जानते हुए भी कि हर वायदा किसी वक्त टूट जाएगा। तूने जो वायदे किए थे मैंने उनके टुकड़े संभाल कर रखे हैं।
टुकड़ों से तेरे वायदों पर मैंने एक किताब लिखी है।
सूरज के जागकर अलसा जाने के बाद मेरी नींद खुलती है। कमरे का दरवाजा आधा खुला रहता है, जिसके बराबर की रोशनी कमरे में आती है। बाकी का कमरा उसी रंग में होता है जैसा हमारे प्यार के बाद हुआ करता था। उस रंग को मैं समझा नहीं सकता। बस, जान लो शाम सा रंग। जब सूरज संतरी होकर डूबने की कोशिश में रहता है। प्यार का हर रंग शाम सा होता है। शामें ही रातों में बदल जाती हैं। रातें चलती रहती हैं वायदों को लेकर।
उन रातों से तेरे वायदों पर मैंने एक किताब लिखी है।
 जमाने से डरा करते थे हम। पराई आंखों के घूरने से कांप जाया करते थे। रास्तों पर चलते हुए गले मिलकर रोने का मन करता था। प्यार के टूट जाने का दर्द महसूस होता था। हम फिर एक वायदा कर लेते थे,अपने प्यार को बनाए रखने की खातिर।
उन रास्तों से तेरे वायदों पर मैंने एक किताब लिखी है।
बिछड़ जाने का गम एक सदी की कयामत से ज्यादा बुरा रहा। लगता जैसे मैं किसी समंदर में डूबने की कोशिश में हूं। कमबख्त न मौत आती और न जीने का मन करता। सांसें घुटी हुईं सी अंदर-बाहर होतीं। तेरा हर वायदा तब घुटन से बाहर निकालता मुझको। 
उस घुटन से तेरे वायदों पर मैंने एक किताब लिखी है।
 वायदे रुमानी हुआ करते हैं। उनके वजूद में आने का वक्त याद नहीं रहता। टूटने की घड़ी हर वक्त सीने में अपने कांटे लेकर चलती है। दिल का टूटना इसी घड़ी की टिक-टिक का नाम होगा। हम पहले लहरों में उतरने के ख्वाब पाले बैठे थे। देखो अभी किनारों का सफर अकेले कर रहे हैं। आखिरी वायदा यही रहा कि अब के न मिलेंगे किसी किनारे।
दिल के टूटने की घड़ी से तेरे वायदों पर मैंने एक किताब लिखी है।




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