Tuesday 6 September 2016

हमारे बीच कोई जी ‘रियो’ है

reliance jio के लिए चित्र परिणाम.
(हरियाणावाले महान हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा से प्रेरित, वे तुलसी मैं उनका दास)

भाई हम बूढ़े टाइप के जवान हैं। दिमाग नोकिया है। मोबाइल सैमसंग। हम अपनी मैडम संग। हमारी मैडम यानी पत्नी। हम शादी के पहले सर हुआ करते थे। अब भी हैं। लेकिन केवल सर हैं। पहले सर सरीखे सर थे। आजकल सर..सर..हैं। क्योंकि हमारी एक मैडम है। मैडम का मोबाइल महंगा है। हम उनके मोबाइल से भी सस्ते हैं। स्मार्ट कार्ड (छत्तीसगढ़ में इलाज का खर्चा सरकारी कार्ड से होने का फार्मूला)बनवाने के इंतजार में मोबाइल स्मार्ट नहीं हो पाए। 
अब देखो मैडम को जियो चाहिए। हमसे कहा उन्होंने- हमको जियो चाहिए। हमने तनकर कहा- अब लगा कि तुम और हम एक हैं। अपनी भी यही फिलॉसपी है। जियो और जीने दो। 
पत्रकार हैं ना। फिलॉसपी जुबान के नीचे से निकलने को छटपटाती रहती है। 
मैडम चिढ़ गईं- जियो का सिम चाहिए। फोर जी है। फ्री है। तुम तो बड़ी-बड़ी बात करते हो। दिलाओ जियो। 
मैंने कहा कि मैंने तो इस हफ्ते एक ही बड़ी बात कही है। वो ये है कि सैमसंग के संग कौन था? और जब वो सैम के संग था, तो वो कौन था? आखिर सैम किसके संग था? 
मैडम भडक़ गई। कहा- मसखरी ना करो। मैंने कहा- मैं मोबाइल से डरता हूं लेकिन तुम पर मरता हूं। वो नहीं मानी। कहा-जियो चाहिए मतलब चाहिए। 
मेरा टैरिफ प्लान खत्म हो चुका था लेकिन फोन लगाना ही पड़ा। 
- कैसे पिचकारी.. जियो है बे? (पिचकारी मेरे दोस्त का नाम है। इंजीनियरिंग करने के बाद एमबीए किया। बेंगलुरु-पुणे में रहा। अब बस स्टैंड में मोबाइल कम गुटखा दुकान चलाता है। शॉप नंबर 5 में उसकी दुकान है और उसके मुंह में गुटखे की। इसलिए उसका नाम पिचकारी रखा दोस्तों ने) 
- उसने कहा यार पहले तो तुम इंट्रो में कोष्टक लगाकर इतना लंबा ब्रीफ मत किया करो। अपने में इनवर्टेड लगाते हो। देखी तुम्हारी दोस्ती। तुम लेखक क्या हुए हो दुनिया भूल गए। जियो ट्रेंड है बे। बड़े अंबानी ने फोकट प्लान वाला पुर्जा मार्केट में उतारा है। 
मैंने कहा- हमको दिलाओ एक!  उसने कहा-पता था फोकटिये। तेरे टाइप लोगों के लिए ही बड़े अंबानी ने जियो लाया है। बचा नहीं है एक भी। देखते हैं। निकला तो तुम्हारा। 
मैंने फोन काट दिया। मैसेज आया कि तीन रुपए दस पैसे कटे हैं पिचकारी से पिचपिचाने में। माथा गरम हो गया। मैंने मैडमजी को ओर प्यारभरी निगाह से देखा। कहा- हो गया जियो का इंतजाम। जियो और जीने दो। 
मैडम मेरा सच जानती थीं, कहा- कब मिलेगा? मैंने कहा- कल सुबह। 
उन्होंने पड़ताल की- किसे फोन लगाया था? मैं भरभराया - अंबानी को। बड़े अंबानी को। 
दूसरे दिन सुबह मैडम चाय के साथ अपना हैंडसेट लेकर आईं थीं, जिसके दोनों सिम बाहर थे। साफ था कि वो चाय के साथ बिस्कीट का भान देते हुए एसएमएस में शेड्यूल पूछ रही हैं- कहां है मेरा जियो?  मैंने पिचकारी को फिर फोन लगाया। उसने नहीं उठाया। दिनभर नहीं उठाया। अब तो उठा ही नहीं ‘रियो’ है। उसकी दुकान में गए। पता चला कमबख्त आ ही नहीं ‘रियो’ है। दुकान में जमानेभर के मरे हुउ सिम हैं, एक भी नहीं जी ‘रियो’ है। 
मैडम गुस्सा हैं। हफ्तेभर हो गए हमारे बीच ठन ‘रियो’ है। हमारे बीच कोई जी ‘रियो’ है। वो जियो है। हम मर ‘रियो’ है। 





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