Friday 23 September 2016

'बमफटाक फडफ़डिय़ा' को इस्लामाबाद के ऊपर क्यों उड़ाया जा रहा था?


इस्लामाबाद के आसमान में एफ-16 विमान उड़ रहे थे। हो सकता है आज रात भी उड़ रहे होंगे, कौन मना कर सकता है? एफ-16 अमेरिका में बना विमान है, जिससे परमाणु हमला किया जा सकता है। अमेरिका एक तरफ न्यूक्लीयर ट्रीटी की बात कहता है, दूसरी तरफ युद्धक हथियार के धंधे में उसका सबसे बड़ा ब्रांड एफ-16 है। अमेरिका ने इसे दो परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों को तगड़ी कीमत वसूल कर बेचा है।
 सोचिए जरा,  इस टाइप के "बमफटाक फडफ़डिय़ा" को इस्लामाबाद के ऊपर क्यों उड़ाया जा रहा था? उनके पत्रकार भी कैसे अन्तर्यामी और जानकार हैं कि आसमान में उड़ते विमान के पर गिन लिए उन्होंने, फट से बता दिया भैया ये एफ-16 विमान हैं, कर्जा-बाड़ी करके खरीदा है।
यहां हमारा एक सीन देखो -अतिप्रिय मित्र ने एक बार मुझे अपनी विमान यात्रा के बारे में पूरे चार बिना विज्ञापनवाले पेज बराबर जानकारी दी। अंत में मैंने पूछा- कौन सा था ? उसने कहा- हमने देखा नहीं; वही रुसवाला रहा होगा! मिग-विग टाइप कुछ।
मैंने कहा- अरे मूर्ख, वो लड़ाकू विमान है। उसने करारा जवाब दिया- अबे तो हम क्या नार्मल टाइप के स्लीपर क्लास में जाते। हम जिसमें गए वो दूरंतो से भी फास्ट था।
खैर, अपनी-अपनी किस्मत। पाकिस्तान के पत्रकार जरूरत से ज्यादा लबाड़ हैं। सरकार का मुंह बनकर बताने की कोशिश में लगे हैं कि देखो लड़ाई की तैयारी हम भी कर रहे हैं। पाकिस्तानी सरकार अपनी मीडिया को इसी तरह यूज करती है। दोनों देशों के बीच बार्डर पर तनातनी होने के बाद उनके मीडिया का रूख हमेशा यही रहता है कि भारत अब तो हमला करने ही वाला है। इस बार तो हद हो गई, हमारे कुछ बौड़म चैनल पाकिस्तान की परोसी गई खबर को सजाकर सामने रख रहे हैं। एफ-16 का उडऩा युद्ध के संकेत देता है लेकिन आधी रात अपनी राजधानी का हाईवे ब्लॉक कर उसे टेक ऑफ कराना (जैसा के हामिद मीर सरीखे पत्रकार बता रहे हैं) भारत से ज्यादा अपने नागरिकों को संदेश देने के लिए है।
अब सीरियस बात: पाकिस्तानी आर्मी अपने ही देश में आतंकवाद को नहीं रोक पा रही। बीते जून के पहले हफ्ते में कराची एयरपोर्ट पर पाक तालिबान नामक एक आतंकी संगठन ने हमला कर दिया था। इसमें 29 लोग मारे गए थे। पाक तालिबान ने सीना ठोककर जिम्मेदारी भी ली। तालिबान अफगानिस्तान को दबाने के लिए उपजाया गया था, अब उसके दो हिस्से हैं। पाकिस्तान में दहशतगर्दी फैलानेवाला पाक तालिबान उनमें से एक है। हो सकता है कई और भी हों, मुझे जो जानकारी है उसके मुताबिक पाकिस्तान की गुड तालिबान और बैड तालिबान की परिभाषा इस संगठन के वजह से ही अधिक परिष्कृत हुई है। इस तरह के एक दर्जन से ज्यादा आतंकी संगठन वहां सक्रिय हंै, जो भारत में अपने फिदायीन नहीं भेजते, वे अपने  पाकिस्तान में ही  बम फोड़ते रहते हैं।  पाकिस्तान की यह बनावटी समस्या लंबे समय से है। पाकिस्तान अपने को एक ही सूरत में एक कर सकता है, भारत से लड़ाई का माहौल पैदा कर। कश्मीर उसका पहला निशाना होता है। उड़ी हमले के बाद आजकल जो चल रहा है, वैसा पहले भी दो-चार दफे हुआ है। पाकिस्तान कुछ दिनों के लिए सही, यह फिक्स फार्मूला अपनाकर अपने लोगों और आतंकी समूहों के बीच तनाव पैदा करता है। भारत से सीधे युद्ध की बात सुनकर वहां के सारे आतंकी संगठन अपना-अपना बमफोड़ू अभियान चंद दिनों के लिए बंद कर देते हैं। इस तरह से पाकिस्तान मामूली वक्त के लिए एक हो जाता है। यह पाकिस्तान की सिंपल स्ट्रेटजी है। जब भी आतंकी वारदातों के बाद भारत भडक़ता है, पाकिस्तान में ऑटोमैटिक ढिंढोरा पिट जाता है कि कभी भी जंग हो सकती है।
भारत के नेताओं को क्या करना चाहिए:
पहले तो अपना मुंह बंद कर  लेना चाहिए। देश की अंतरराष्ट्रीय छवि के बारे में सोचकर चुप हो जाना चाहिए। भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए बड़ी-बड़ी बातें की थीं, आज सत्ता में आकर 'वाइब्रेट' करती दिख रही है। नेशनल मीडिया को भी इस तरह की रिपोर्ट दिखाने से परहेज करना चाहिए कि पाकिस्तान के आसमान में परमाणु बम गिरानेवाले वाले विमान उड़ रहे हैं।
भारत का सच्चा दोस्त-  फिलहाल कोई नहीं है। रूस और फ्रांस का आतंक विरोधी अभियान में समर्थन केवल दिखावा है। रूस को एशिया में अपनी सामरिक पहुंच बढ़ानी है। इस नजरिए से पाकिस्तान भी उसके लिए महत्वपूर्ण देश है। रूस इन दिनों अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अकेला खड़ा दिख रहा है। उसकी अर्थव्यवस्था में गिरावट है। चीन ने रूस से हथियार खरीदकर उसे बड़ी मदद दी है। चीन को पाकिस्तान पसंद है। सीधा है कि रूस पाकिस्तान के खिलाफ सामरिक मदद करने नहीं आएगा। अमेरिका से उम्मीद बेमानी है। बाकी के देश किनारे ही रहेंगे। युद्ध की स्थिति में हमारा साथ कोई नहीं देगा। वे देश भी नहीं, जिन्होंने यूएन में हमारा समर्थन किया है। वैसे आप गौर कीजिएगा, ब्लादीमीर पुतिन के राष्ट्रपति बनने के बाद से रूस को लेकर भारत के व्यवहार में एक संकोच दिखा है। पुतिन हाल ही में तमिलनाडु के एक परमाणु संयंत्र के उद्घाटन में वीडियो कान्फ्रेंसिंग करते दिखे थे, मगर इस पर ठप्पा लग चुका है कि अब हिंदी-रूसी, भाई-भाई नहीं रहे। एक औपचारिकता के तहत रूस ने भारत को उड़ी मुद्दे पर सपोर्ट दिया है। आज शनिवार से उसी रूस की सेना पाकिस्तानी फौज के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास करने जा रही है।
कूटनीति-  मकसद खुलकर सामने आ जाए तो किस बात की कूटनीति? हमारे विदेशी मामलों के महामानव बात-बात में कहते हैं- कूटनीति यह कहती है, कूटनीति वह कहती है। नई दुनिया (अखबार नहीं, बदली हुई  दुनिया की बात कह रहा हूं। ) में आजकल इतने रिसर्चर बैठे हैं कि कूटनीति को कूट डालेंगे। कूटनीतिक तौर पर हम केवल दूसरे देशों से निंदा करा सकते हैं। यूएन की भाषणबाजी से भरी बैठकों में पाकिस्तान को सीधे ही आतंकी देश घोषित करने का प्रस्ताव गिराने के लिए अकेला चीन ही काफी है। अब दो देशों के बीच बिजनेस ही कूटनीतिक संबंध हैं। कूटनीति के मोर्चे पर घेराव जैसी रणनीति मायने नहीं रखती।






No comments: