Thursday 8 September 2016

मैं सैलानी हूं फकीरों सा, देख लिया करो मुझे बादलों के पार.. . नदी के संग

मैं सैलानी हूं फकीरों सा, देख लिया करो मुझे बादलों के पार.. . नदी के संग


मैं बादल हूं.. . तुम नदी हो .. .मैं तरसता बादल हूं.. .तूफान के आने से डरा हुआ .. .जाने कब बह जाऊं.. . जाते-जाते जब हाथ छूटते हैं हमारे .. . दिल फंसा धक्क सा रह जाता है.. .  एक बहती हुई नदी रुक जाती है मेरे अंदर.. . मेरी परछाई चमकती है बिजली की कौंध में.. . तुम चली जाती हो तो परछाई रह जाती है.. . मैं नहीं होता.. . मुझसे दूर जाते हर कदम पर देखती जाया करो मुझे.. .नजर नहीं छूटनी चाहिए .. .

मैं सैलानी हूं फकीरों सा, देख लिया करो मुझे बादलों के पार.. . नदी के संग

देखो खिडक़ी पर अपनों से पीछे छूटा कोई बादल निकल रहा होगा.. .देखो उस बादल से मिलकर आई ठंडी हवा तुम्हारे गले को चूम रही होगी.. . देखो उन पत्तों को जो कांप रहे हैं तुमसे लिपट जाने को.. .देखो तुम कैसी लग रही हो आईने में.. .देखो दीवार पर झरना बह रहा है.. . देखो वहां एक इंद्रधनुष है.. . देखो वहां तलहटी में हम लेटे हैं किसी चट्टान पर आसमां को देखते हुए.. .. अब मेरी जान.. . देखो खिडक़ी से दूर होते अकेले बादल को.. .उसकी अपनी मर्जी नहीं है.. . तेज हवा ले जा रही है उसे तुमसे दूर

मैं सैलानी हूं फकीरों सा, देख लिया करो मुझे बादलों के पार.. . नदी के संग

मैं तुम्हें रोता हुआ दिखना चाहता हूं.. .रातों को खालीपन का दर्द फूटता रहता है मेरी आंखों से.. . बांहों में पसर आए अपने आंचल को झटको.. .मेरे आंसू निकलेंगे.. .तुम्हारे आंचल में मैंने अपने आंसू भरे हैं तुमसे छिपाकर.. .बता न सका.. .और कुछ था भी नहीं तुम्हें देने को... नींद नहीं आती मुझे .. .भले झूठा सपना हो.. .तुम आगोश में आ जाया करो.. .तुम्हारी गोद पर सर रखकर फफकना चाहता हूंं जोर..जोर से.. .तब आवाज मेरी गंूजे उमड़ते बादलों जैसी.. .किनारे तोडक़र बौराती नदी के उफान सी.. .अपनी हथेलियां भीगते तक रोने देना मुझे.. . मेरे चेहरे को सहलाती तुम्हारी ऊंगलियां नहीं रुकनी चाहिए.. . उन ऊंगलियों ने रोक रखा है मुझे.. .नहीं तो मैं गुम हो जाऊंगा.. .

मैं सैलानी हूं फकीरों सा, देख लिया करो मुझे बादलों के पार.. . नदी के संग



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