Monday 26 September 2016

संयुक्त राष्ट्र की पंचायत


संयुक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशन्स) कहने को स्वतंत्र राष्ट्रों की पंचायत है। अमेरिकी जमीन, विदेशी मेहमान, मेल-मिलाप का प्रहसन और हुक्कों की गुडग़ुड़। पंचायत का मुख्यालय न्यूयार्क में है, सो अघोषित सरपंच अमेरिका है। सबसे बड़ा हुक्का उसका है। तंबाकू उसका अपना है। वह अपना तंबाकू सबको देता है, किसी का तंबाकू नहीं लेता। अमेरिका विश्व समाज का ठेकेदार है, सरपंच है, भगवान है। गरीबों को लूटकर उसने अपनी हवेली खड़ी की है। उस हवेली में हर साल गरीब मेहमान विशेष तौर पर बुलाए जाते हैं। वही गरीब मेहमान, जिनका बही-खाता अमेरिकी तिजोरी में बंद है। जिनके पास अपने हुक्के नहीं हैं। वे हथेलियों में खैनी रगडक़र संतुष्ट रहते हैं।

सोमवार को हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के पहले बहरीन के विदेश मंत्री बोल रहे थे। वे क्या बोले, इस पर किसी ने तवज्जो नहीं दी। कुछ बोले होंगे, मसला रहा होगा। नहीं भी रहा होगा! बहरीन देशों के बीच एक देश है। उसके विदेश मंत्री को कौन जानता है? वे हुक्का लेकर आए थे, कि खैनी!

संयुक्त राष्ट्र की पंचायत में होनेवाली भाषणबाजी गरीब देशों को दिलासा देने के लिए होती है। गरीब देश अपनी बात रखते हैं। अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और लाल मुंहवाला चीन तनकर बैठते हैं, अपने-अपने हुक्के लेकर। कहने को संयुक्त राष्ट्र दुनिया की सभा है। इंसाफ का मंदिर है। मंदिर के भगवान अमीर हैं। गरीब, भगवान के कान में अपनी बात डालने चिचियाते रहते हैं। भगवान उनकी चिचियाहट पर राय देते हैं। फैसला नहीं देते। राय देते हैं। मूड अच्छा हो तो वरदान भी देते हैं। फैसला नहीं देते।
मंदिर का भगवान ही पंचायत का सरपंच है, अपनी दुकानदारी देखता है। पंच राय-मशविरा देते हैं, आपस में एकमत नहीं हो पाते। पंचायत उठ जाती है। सभा में हुक्के का धुआं फैला रहता है। गरीब इसमें अंधे हो जाते हैं। एक-दूसरे से टकराने लगते हैं।

यहां कई सालों से दो गरीब सगे भाई आकर अपनी जमीन के बंटवारे के लिए न्याय मांग रहे हैं। वे स्थाई आमंत्रित होना चाहते हैं। बड़ा भाई अधिक शक्तिशाली और उदार है। वह न्याय मांगता है। छोटा भाई कमजोर और कायर है। उसने अपनी कमजोरी ढंकने के लिए सिरफिरे बंदूकधारी पाल रखे हैं। दोनों भाइयों में एक बात समान है। दोनों हुक्काविहीन हैं। दोनों को हुक्के की चाह है। दोनों का मन करता है संयुक्त राष्ट्र की पंचायत में खाट लगाकर अपना हुक्का गुडग़ुड़ाएं। पंचायत में हुक्का गुडग़ुड़ाने का अधिकार मिलना दुष्कर है। अधिकार के लिए सदस्यता आवश्यक है। सदस्यता के लिए वोट वही देंगे, जिनके पास अपने हुक्के हैं। हुक्केवालों को अपने हुक्के के बगल में नया हुक्का देखना नहीं भाता।

पंचायत के सारे चौधरी जानते हैं, पंचायत में बड़ा भाई आतंकवाद का विरोध करेगा। छोटा भाई हथेली में खैनी रगड़ते हुए कहेगा, आतंक से हम भी परेशान हैं। दोनों हुक्का गुडग़ुड़ाने का अधिकार मांगेंगे।

सरपंच की अपनी खुद की हथियारों की होल सेल दुकान है। वह धंधे से दोस्ती बर्दाश्त नहीं करता। दोनों भाइयों के झगड़े पर उसका भाषण किसी को समझ नहीं आएगा। वो किस तरफ है, केवल इशारों में बताएगा। उसके बाद पंचों का नंबर आएगा। वे भी किस तरफ हैं, इशारों में बताएंगे। सीधे ऊंगली नहीं उठाएंगे। हुक्के हर किसी के मुंह नहीं लगते। जिनके लगते हैं, उनका फेफड़ा क्या ईमान तक गिरवी हो जाता है।

बाकी के अमीर-गरीब और मध्यमवर्गीय देशों को इस मसले में दिलचस्पी नहीं है। उनके कान पक गए हैं। वे अपने-अपने हुक्के लेकर आए हैं। जिनके पास नहीं है, वे उधार पर लेकर आए हैं। जिनके पास अतिरिक्त था, उनसे कल वापस कर दूंगा, कहकर लाए हैं। जिनको कहीं नहीं मिला वे खैनी रगड़ते हुए आए हैं। पंचायत में बैठा सारा गांव जानता है कि इस मसले का निर्णायक हल नहीं निकलना है। सालों से यही हो रहा है। भाइयों के प्रतिनिधि बदल रहे हैं, शब्द वही हैं, शिकायत वही है।

बड़ा भाई के कड़वे प्रवचन छोटा भाई सुनता है। छोटे भाई का रोना बड़ा भाई सुनता है। इस बीच दोनों भाई-भाई होने की कोशिश करते हैं। हो नहीं पाते और अगली बार फिर संयुक्त राष्ट्र की पंचायत पहुंच जाते हैं। पहले शरीफ आए , वही बोला जो उन्होंने सीखा है। उन्होंने सीखा है, खुद को बचाना है तो बड़े भाई की खिलाफत करो।
हमारी सुषमा स्वराज आईं। शीशे के घर और पत्थर पर बोलीं। उनके पास हुक्का नहीं था। मसला था। हर कोई जानता है इसका हल सरपंच और पंचों के पास है। हल निकलता नहीं। पंच-परमेश्वर हुक्का गुडग़ुड़ाते रहते हैं। पहले पाकिस्तान ने अपनी पीठ ठोकी। आज भारत की बारी है। पाकिस्तान के लोग उधर खुश, देखा हमारे हुक्मरान ने कैसे बात रखी। इधर भारत में उत्साह, क्या करारा जवाब दिया।

पंचायत चलती रहती है। हुक्कों की गुडग़ुड़ाहट चलती रहती है। संयुक्त राष्ट्र की अमेरिकी हवेली से धुआं निकलता रहता है। गरीब पाकिस्तान और भारत धुआं देखकर खुशफहमी में  रहते हैं। दोनों को लगता है, इस धुएं के नीचे आग हमारी है।

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