Tuesday 13 September 2016

कांग्रेस नेतृत्व की प्रतिक्रियाओं से लगता है आज-कल में चुनाव होने को है.. .

देश की सबसे पुरानी पार्टी मीडिया मैनेजमेंट का अपना गुर भूल गई है। कांग्रेस का मीडिया विभाग अप्रशिक्षित और पिछले जमाने का व्यवहार करता है। हाईटेक हो रहे राजनीतिक प्रचार तंत्र में कांग्रेस चाय-समोसे के उबासी मारते ढर्रे पर कायम है। जैसे, छत्तीसगढ़ कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के बाहर चले जाने के बाद एक हड़बड़ाहट दिखती है। सियासी घटनाक्रम पर प्रतिक्रियाएं इतनी तेज होती हैं मानो दो-चार दिन में विधानसभा चुनाव होने को है। कांग्रेस ने अपना शुरू किया फार्मूला ही बिसरा दिया है, जो कहता है: - राजनीति में नेतृत्व की त्वरित प्रक्रियाएं ठीक नहीं होती। (नरसिंह राव, सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने सर चढ़ आए विवादों पर टिप्पणियां नहीं दी। राहुल गांधी मामूली बातों पर बरसते हैं। नतीजा सामने है।) - बगावत छोटी हो तो लीडर को ठंडा रहना चाहिए। (उत्तराखंड में हरीश रावत ने इसी तरह काम किया। स्टिंग आपरेशन में फंसने के बाद उन्होंने प्रतिक्रियाओं से दूरी बना ली। संगीन मामला दब गया। ) मैं जब बड़ा हो रहा था, राजनीति को दीवार पर लिखे नारों से समझता था। अटल सरकार के गिरने के बाद कांग्रेस ने एक नारा अपनी पहचान के रूप में अपनाया था ‘जन-जन से नाता है सरकार चलाना आता है’। परिणाम में उन्हें दस साल की केंद्रीय सत्ता मिली। अब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के अंत में विधानसभा चुनाव के माहौल को याद कीजिए। लग रहा था जैसे जोगी की वापसी पत्थर पर लिखी अमिट इबारत है। याद कीजिए: - मीडिया तब क्या कहता था? कांग्रेस तब क्या कहती थी? और भाजपा की क्या स्थिति थी? त्वरित प्रक्रियाएं कहां थीं? - रमेश बैस कहां थे? प्रदेश में भाजपा के सबसे कद्दावर नेता होने के नाते! - रमन सिंह कहां थे? नेतृत्वकर्ता के रूप में लगभग नकारे गए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष! - बृजमोहन अग्रवाल कहां थे? संभावित सबसे लोकप्रिय चेहरे के रूप में! - तीसरा धड़ा उस समय भी था, विद्याचरण शुक्ल के वन मैन शो वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी। नारे, प्रतिक्रियाएं, नेता और सत्ता बदलती रहती है। यह अनिश्चितता साधी नहीं जा सकती। इसे केवल और अनिश्चित बनाया जा सकता है। कांग्रेस से प्रतिक्रिया नहीं विजन चाहते हैं लोग : दिल्ली विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाने के पहले ही प्रयास में आम आदमी पार्टी को 28 या 29 (मुझे याद नहीं) सीटें आ जाने पर राहुल गांधी ने कहा था, हम उनसे सीखने का प्रयास करेंगे। कांग्रेस ने आप को बिना शर्त समर्थन दिया। आज उसका दिल्ली में एक विधायक नहीं है, जहां उसके पास शीला दीक्षित की मैराथन पारी का इतिहास था। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस इतनी बुरी स्थिति में नहीं पहुंच सकती पर उसे सरकार बनाने का सबसे मजबूत दावा करनेवाली पार्टी भी नहीं माना जा सकता। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के मीडिया सेल ने अपने नेतृत्व को आम लोगों के सामने रखने हाईटेक तैयारी नहीं की है, इससे शहरी वोटरों के सामने पार्टी के पास विजन नहीं होने का संदेश जाता है। गांव के मतदाता को भी अब राजनीतिक पार्टियों का क्लीयर विजन चाहिए। कांग्रेस इस मामले में सबसे पीछे है। कांग्रेस का अंदरुनी प्रबंधन इस पर काम करता नहीं दिखता। विजन क्या है: जरूरी नहीं कि पार्टी का विजन बयानों और प्रचार साधनों में साफ हो। विजन में हिडन एजेंडा (जो वोट बैंक को बढ़ाने का सबसे कारगर तरीका है) मुख्य कारक होता है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में अपना विजन स्पष्ट रखा। वह यह दिखाने में कामयाब रही कि युवाओं को रोजगार मिलेगा, कालेधन की वापसी होगी और घोटालों से मुक्ति मिलेगी। उसने यूपीए के मुकाबले भाजपा को अधिक मजबूत बताया। भाजपा के विजन का गुप्त एजेंडा ध्रुवीकरण था। आज छत्तीसगढ़ के स्तर पर भाजपा ने विकास और सुविधाओं के विस्तार को अपना विजन बताया है। भाजपा सरकार का कामकाज देख चुके वोटर के सामने क्लीयर है कि सत्ता पर काबिज पार्टी किस तरह के विजन की बात कह रही है। खुश रहिए कि यहां ध्रुवीकरण के समान छिपा हुआ एजेंडा नहीं है। चतुर अजीत जोगी ने भावनात्मक रूप से बाजी मार ली है। जोगी को मालूम हो गया कि छत्तीसगढिय़ावाद एक बढिय़ा मुद्दा हो सकता है। छत्तीसगढिय़ा को प्राथमिकता उनका चुनावी विजन है। वे इससे अधिक की बात नहीं कर रहे। कांग्रेस के नेतृत्व से पूछ लीजिए, उनके पास स्पष्टता-निश्चितता नहीं होगी। वे वही कहेंगे जो पिछले तीन चुनावों से कहते आ रहे हैं। आज विजन का अर्थ है , आप हमें भविष्य में क्या नया दे सकते हैं।

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