Saturday 17 September 2016

अफ्रेड टू बी रांग part 2

अफ्रेड टू बी रांग

2. विचार खोज यात्रा

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- ‘‘ममंत्र, पहाड़ी से मेरे गिरने के बाद मेरे दोस्त क्या सोच रहे थे? ’’
- ‘‘मुझे लगता है वे सभी तुम्हारे गिरने में अपनी या तुम्हारी गलती ढूंढ़ रहे थे। अर्थ यह नहीं कि वे दुखी नहीं थे। दुख से पहले ज्यादातर लोग अपने गलत साबित होने की वजह   को  मिटा देना चाहते हैं। वारिका को महसूस हो रहा था कि तुम उसकी आवाज पर उठने को हुए और गिर पड़े थे। वत्र्यसेन के चिंतन में गलती तुम्हारी असावधानी थी। उसे तुमसे अधिक विचार खोज यात्रा की चिंता थी। वह बुद्धिमान है, जानता है कि यात्रा अलौकिक ज्ञानप्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन है। वह अपने जीवन को दूसरों से श्रेष्ठ बनाने के अभियान को प्राथमिकता देता है। कह सकते हो कि वह स्वार्थी है।
तुम्हारा सच्चा मित्र गौरव मान रहा था कि विचार खोज यात्रा का नायक इतनी ऊंचाई से गिरकर बचा नहीं होगा। वो तुम्हें मृत अवस्था में देखने के लिए मन कड़ा कर चुका था।’’
-‘‘ ममंत्र, गौरव गलत होने के विषय में नहीं सोच रहा था क्या?’’
- ‘‘हां, वह सोच रहा था। उसकी सोच का दूसरा पक्ष भी था, जिस बारे में उसे बाद में ध्यान आया होगा। दूसरा पक्ष यह है कि उसने लगभग मान लिया था कि तुम मर गए होगे। उसका सामान्य ज्ञान कह रहा था कि इतनी ऊंचाई से गिरकर बचना संभव नहीं। उसके अवचेेतन मस्तिष्क में यह बात जरूर बैठी होगी कि अपने प्रिय मित्र की मौत को लेकर स्थायी मानसिक भाव बना लेना भी एक गलती है। यह उस प्रकार का अनुभव है जिसमें हम अपने गलत साबित होने पर खुश होते हैं और अपनी छोटी व नकारात्मक सोच पर खीझते हैं।’’
ममंत्र का कहना जारी रहा- ‘‘मैं जानता हूं, तुम यह जानते हो कि अवचेतन मस्तिष्क हमारे अनुभव का सार समेटे होता  है। अनुभव, जिंदगी में हुई अच्छी-बुरी घटनाओं द्वारा दिया गया अनमोल उपहार है। अनुभव हमारा अपना खजाना होता है, जिसे हम बांट सकते हैं, किसी को पूरी तरह प्रदान नहीं कर सकते। ’’
- ‘‘आपने यह नहीं बताया कि जिंग और त्रिशा गलती के बारे में क्या सोच रहे थे!’’
- ‘‘जिंग ने गलती के बारे नहीं सोचा। वह परिणाम देखना चाहता था। तुम्हारे गिरने पर वह नीचे की ओर भागा। दौड़ते हुए वह स्वाभाविक सोच में था, जिसे हम सामान्य कह सकते हैं। दौड़ते हुए वह सोच रहा था कि तुम्हारा क्या हुआ होगा?  वह जल्द से जल्द तुम तक पहुंच जाना चाहता था। वह गलती के बारे में नहीं सोच रहा था। उसे इसकी परवाह नहीं थी कि किसकी गलती थी। वह अपनी सुविधानुसार इसके लिए किसी को भी गलत ठहरा सकता था। वह तो खुश था कि तुम्हारे नहीं रहने पर विचार खोज यात्रा प्रारंभ नहीं होगी। तुम जान लो आयन कि जिंग ने तुमसे पहचान के बाद किसी क्षण तुम्हें अपने मित्र की दृष्टि से नहीं देखा। उसे त्रिशा में रुचि थी। वह तुम सबके बीच केवल त्रिशा के लिए होता था।’’
- ‘‘ममंत्र, त्रिशा .. . वो कहां है?’’
-‘‘ त्रिशा के बारे में तुम अपनी यात्रा के दौरान जान जाओगे आयन। ’’
- ‘‘आशंका है मुझे ममंत्र, मेरे साथी एक न एक दिन मेरा भी सच जान लेंगे। ’’
- ‘‘तुम गलत साबित होने के डर को मौत के बाद भी जी रहे हो आयन। तुम मृत हो यह मत सोचो। तुम यात्रा करो। ’’
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शाम होने का संकेत मिल रहा था। चारों मित्र उस झरने के पीछे पहुंच चुके थे, जहां से पहाड़ी खत्म होती थी। वे चले थे तब दोपहर थी। हरे-भरे इलाके में शाम झट से रात में बदल जाती थी। पहाड़ी के किनारे पर उन्हें मोटी जंगली रस्सियों पर झूलता एक पुराना पुल दिखा। वह पुराना जरूर था लेकिन कमजोर प्रतीत नहीं हो रहा था। पुल के उस ओर पहाड़ों में तैरने वाला सफेद कोहरा फैला हुआ था। वीरान नजारा रहस्यमयी था।
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कुत्सित विचार

पुल के नजदीक आकर आयन पीछे पलटा। वत्र्यसेन का चेहरा कौतुहल का नक्शा बना हुआ था, वह इच्छुक था। गौरव को आयन के बोलने की प्रतीक्षा थी। वारिका में स्थिरता समाई थी। मानो वह मोहपाश में बंधी आई हो।
- ‘‘इस पुल के बारे में मुझे इतनी ही जानकारी है कि उस पार विचारों का भंडार है। हम सभी के लिए एक विचार बना है जो हमें वहां कहीं मिलेगा। हमें शाम होने के पहले उस धुंधलके में प्रवेश कर जाना है। ध्यान रहे, डरना नहीं है। ’’
- ‘‘हम शुरुआत से ही तुम पर भरोसा करते आए हैं। हमने कभी नहीं पूछा कि तुम्हारी जानकारियों का स्रोत क्या है। तुम इस तरीके से क्यों बोल रहे कि शाम से पहले धुंधलके में जाना होगा, हमें तो केवल यह पुल पार करना है!’’

-‘‘नहीं वत्र्यसेन, कठिनाई यहीं से आरंभ होती है। हम सभी को अपने कपड़े यहीं छोडऩे होंगे। हम वहां बिना कपड़ों के पूरी तरह निर्वस्त्र प्रवेश करेंगे। यही नियम है।’’
वारिका ने झल्लाते हुए आयन को देखा। आयन ने धीरे से पलकें नीची कीं। वत्र्यसेन अपने कपड़े उतारने लगा। गौरव ने झिझकते हुए अपनी चमकदार शर्ट से शुरुआत की। इसके बावजूद सबसे पहले आयन निर्वस्त्र हुआ। वह वारिका की ओर देखे जा रहा था।
वारिका ठिठकी हुई थी।
- ‘‘मुझे जहां तक मालूम  है लड़कियों के लिए यह नियम लडक़ों के बराबर ही है। तुम कपड़े उतार लो। हम तुम्हारी ओर नहीं देखेंगे। समय के सबसे छोटे से छोटे अंश के लिए भी नहीं। बहुत जरूरत हुई तो मैं देख लूंगा लेकिन किसी भी प्रकार का संकट आए, चाहे प्रलय हो, ये दोनों तुम्हारी ओर नहीं देखेंगे। अन्यथा इन्हें गलत साबित होने का पाप भोगना होगा। ’’
वारिका को छोडक़र सभी के चेहरों पर हंसी आ गई। वत्र्यसेन ने आगे जोड़ा- ‘‘और हम फिलहाल तो गलत साबित होने से डरते हैं, समझ लो कि यह भय ही हमारी आंखों से तुम्हारी रक्षा करेगा।’’
अब तो हंसी ठहाकों में बदल गई।
वारिका भी मुस्कुराने से खुद को रोक न पाई। आयन की ओर विश्वास से देखते हुए उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए। सभी लडक़ों ने उसकी ओर अपनी पीठ कर ली थी।
आयन के अंतर्मन में ममंत्र का स्वर गंूजने लगा- ‘‘सुंदर
स्त्री को बिना वस्त्रों के देखना भी एक विचार है। यह मनुष्य की मानसिकता पर है कि वह एक वस्त्रविहीन नारी को किस विचार के प्रभाव में आकर देखता है। स्त्री का साथ उसका जीवन उद्देश्य है तो वह उसे साथी के रूप में देखेगा। उसका रूप निहारेगा। स्त्री उसका स्थायी विचार हो जाएगी। पुरुष उसके समक्ष गलत साबित होने के भय से मुक्ति पा लेगा। संसार ऐसी करोड़ों प्रेम कहानियों से भरा पड़ा है जिनमें एक पुरुष किसी स्त्री का जीवनभर के लिए साथ पाने के स्थायी विचार को अपना लेता है। वह अपनी संगिनी के अलावा किसी दूसरी स्त्री की कल्पना नहीं करता। यह जीवनसंबंध में  मोक्ष है। ’’
 ‘‘इस विचार का दूसरा पक्ष कुरूप है। मनुष्य यदि वासना के वश में हो तो उसे सर से पांव तक ढंकी औरत भी वस्त्रविहीन नजर आएगी। यह कुत्सित विचार है। इसका समाधान नहीं है। अत: हमें कुत्सित विचारों का त्याग करना चाहिए।’’
‘‘विचार खोज यात्रा का अर्थ यह नहीं है कि हम स्थायी विचार चुनकर उन्हें अच्छाई और बुराई के मापदंड पर न परखें। कुत्सित विचार अपराध होते हैं।’’
ममंत्र का स्वर बंद हो गया। आयन पीछे घूम गया। उसने निर्विकार भाव से वारिका को देखा। मन में उसके साथ की कामना जागी। अच्छा विचार, पर स्थायी नहीं। आत्मा को जीवित का साथ नहीं मिल सकता। वारिका लजा गई - ‘‘तुमने अपना बनाया नियम ही तोड़ दिया आयन? ’’
- ‘‘नहीं वारिका, मैंने गलत साबित होने के एक भय पर विजय पा ली है। ’’
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वत्र्यसेन ने भी वारिका की ओर चेहरा घुमा लिया। तुरंत ही गौरव पलटा। वारिका हाथों से शरीर को छिपाते हुए नीचे  बैठ गई।
सहज लहजे में गौरव बोला-‘‘ घबराओ नहीं वारिका, तुम मेरी और इस कंकाल वत्र्यसेन की बहन जैसी हो। जान लो कि हम  चेहरे से नीचे तुम्हें नहीं देख पाएंगे। हां, तुम अद्वितीय सुंदरी हो। इसमें हमारी एकराय है। दुख है कि हम एक सुंदरी खोजने की यात्रा पर नहीं निकले हैं। हमें अपने लिए विचार खोजना है। ’’
वारिका को खिलखिलाने का अवसर मिला।
एकबारगी  आयन को लगा कि क्या ममंत्र का स्वर उन दोनों के दिमाग में भी गंूज रहा था। फिर उसे याद आया कि ममंत्र ने कहा था मैं केवल तुमसे संपर्क में रहूंगा। ममंत्र झूठ नहीं कह सकते। वे विश्वगुरु के समान हैं।
आयन ने सोचा उसके दोनों मित्र उद्देश्य प्राप्ति के प्रति उससे अधिक सचेत हैं। स्त्री शरीर उनके लिए गलत साबित होने का भय नहीं उत्पन्न करता। वे इस कुत्सित विचार से मुक्त हैं।
तीन नौजवानों के इस व्यवहार से वारिका में दृढ़ता आ गई थी। निर्वस्त्र होने का संताप उसके मन से जाता रहा।
शायद उन चार नौजवान यात्रियों को अपने-अपने अनुभव और ज्ञान से विचार खोज यात्रा का अर्थ समझ आ गया था।
कुत्सित विचारों का त्याग भी गलत साबित होने के भय पर विजय प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।
चारों पुल पर धीरे-धीरे चलने लगे। पहाड़ों को लांघकर आ रहीं ठंडी हवाएं उनके शरीर को कंपकंपा दे रहीं थीं। पुल एकाएक जोर-जोर से हिलने लगा। संतुलन बनाना मुश्किल हो रहा था। सबसे पहले पुल पर उभरती आकृति को गौरव ने देखा।
वो चिल्लाया-‘‘ हे भगवान, ये तो गैंडा है। हमारी तरफ ही आ रहा है ..बच नहीं सकते.. ’’
क्रमश:
क्या हुआ आगे, पढि़ए अगले अंक में
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